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PM Modi Fit India Dialogue: पैरालिंपिक झाझड़िया बोले-मां ने मुझे नई जिंदगी दी, लकड़ी के भाले से करते थे प्रैक्टिस

Devendra Jhajharia देवेन्द्र झाझड़िया ने पीएम मोदी से संवाद के दौरान कहा कि मेरा मानना है कि जिंदगी में कभी हार नहीं मानना चाहिए। मेरी मां जीवनी देवी ने मुझे नई जिंदगी दी। उन्होंने मुझे खेलने के लिए जबरदस्ती बाहर भेजा।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 03:28 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 03:28 PM (IST)
PM Modi Fit India Dialogue: पैरालिंपिक झाझड़िया बोले-मां ने मुझे नई जिंदगी दी, लकड़ी के भाले से करते थे प्रैक्टिस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चूरू जिले के पैरालिंपिक देवेन्द्र झाझड़िया से रूबरू हुए।

जागरण संवाददाता, जयपुर। Devendra Jhajharia: "फिट इंडिया मूवमेंट" की पहली सालगिरह पर गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चूरू जिले के पैरालिंपिक देवेन्द्र झाझड़िया से रूबरू हुए। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देवेंद्र झाझड़िया की जिंदगी संघर्ष, मेहनत और कामयाबी पर चर्चा की। झाझड़िया ने मोदी से संवाद के दौरान कहा कि मेरा मानना है कि जिंदगी में कभी हार नहीं मानना चाहिए। जब मैं नौ साल का था तो अपने गांव में ही पेड़ पर चढ़ रहा था। पेड़ से एक हाईटेंशन वायर जा रहा था। मुझे उससे करंट लगा और मेरा बायां हाथ कोहनी से काटना पड़ा। उसके बाद से घर से बाहर निकलना मेरे लिए चुनौती बन गया था। ऐसे में मेरी मां जीवनी देवी ने मुझे नई जिंदगी दी।

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उन्होंने मुझे खेलने के लिए जबरदस्ती बाहर भेजा। वो चाहतीं तो मुझे पढ़ाई करने के लिए भी कह सकती थीं। उस दिन मां ने मुझे घर से बाहर नहीं निकाला होता तो शायद मैं भी पैरालिंपिक में दो गोल्ड मेडल जीतने में सफल नहीं होता। उन्होंने कहा कि शोल्डर इंजरी होने पर खेल छोड़ने का मन बनाया। लेकिन फिर अपने आप पर विश्वास किया, व्यायाम किया। अब भी हाथ की इंजरी को एक घंटा देना होता होता है। झाझड़िया पैरा ओलिंपिक से दो बार स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं। पैरा ओलिंपिक गेम्स में दूसरा स्वर्ण भी झाझ़ड़िया ने खुद का ही विश्व रिकॉर्ड तोड़कर हासिल किया है।

उन्होंने बताया कि साल कि 1995 की बात है। जब झांझड़िया झुंझुनूं के रतनपुरा के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। वहां कुछ बच्चे जैवलिन की प्रैक्टिस करते थे। उनमें कई स्टेट लेवल के प्लेयर भी थे, लेकिन अपने साथ नहीं खिलाते थे। वे उन्हें देखते रहते। फिर उन्होंने एक दिन घर में ही लकड़ी का भाला बनाया और प्रैक्टिस करने लगे। इसके बाद डिस्ट्रिक्ट चैंपियन बने। वहीं से उनके खेलों का सफर शुरू हुआ। साल, 2004 एथेंस पैरालिंपिक में गोल्ड जीतने के बाद देवेंद्र को ज्यादा पहचान नहीं मिली थी। साल, 2016 में एक बार फिर झांझड़िया ने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता। इसके बाद उन्हें पहचान और सम्मान दोनों मिले। 


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