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अमूल, दूधसागर डेयरियों के पशु चिकित्सक यहां लेते हैं प्रशिक्षण, प्रदेश का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र

अमूल दूधसागर डेयरियों के पशु चिकित्सक यहां लेते हैं प्रशिक्षण प्रदेश का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र उदयपुर में संचालित

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 09:56 AM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 09:56 AM (IST)
अमूल, दूधसागर डेयरियों के पशु चिकित्सक यहां लेते हैं प्रशिक्षण, प्रदेश का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र
अमूल, दूधसागर डेयरियों के पशु चिकित्सक यहां लेते हैं प्रशिक्षण, प्रदेश का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र

उदयपुर, सुभाष शर्मा। आपको यकीन नहीं होगा, किन्तु यह सच है कि अमूल, दूधसागर जैसी कई बड़ी डेयरी कंपनियां अपने पशु चिकित्सकों को प्रशिक्षण लेने उदयपुर भेजती हैं। राजस्थान का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र उदयपुर से हर साल लगभग सैकड़ों पशु चिकित्सक एवं पशुधन सहायक प्रशिक्षण लेकर पांच से दस लाख रुपये सालाना कमा रहे हैं।

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प्रदेश का इकलौता पशु बांझपन निवारण केंद्र पशुपालन विभाग राजस्थान एवं विद्याभवन के कृषि विज्ञान केंद्र के संयुक्त प्रयास से उदयपुर में संचालित है। जहां पशु चिकित्सकों एवं पशुधन सहायकों को पशुओं में विशेषकर गाय-भैंस के बांझपन के निवारण के लिए प्रशिक्षित कराया जाता है। पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. भूपेंद्र भारद्वाज एवं कृषि विज्ञान केंद्र में पशुपालन विभाग के वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ प्रफुल्ल भटनागर के देखरेख एवं निर्देशन में यह पाठ्यक्रम संचालित हैं।

मौजूदा साल में इस केन्द्र से दो सौ पशु चिकित्सक एवं दो सौ पशुधन सहायक प्रशिक्षण ले चुके हैं। इनमें बड़ी दूध डेयरियों में शामिल अमूल, दूधसागर सहित देश की कई प्रमुख दूध उत्पादक डेयरियों के पशु चिकित्सक इनमें शामिल हैं। अमूल के चार बैच में 70 तथा दूधसागर के दो बैच में तीस पशु चिकित्सक यहां से प्रशिक्षण ले चुके हैं।

वरिष्ठ विशेषज्ञ भटनागर बताते हैं कि यूं तो राजस्थान में पशुधन सहायकों को प्रशिक्षण के 76 केंद्र हैं लेकिन वहां प्रायोगिक सुविधा नहीं मिलती। यहां उनके पास सैकड़ों गाय-भैंस हैं। यहां से प्रशिक्षण लेकर गए पशु चिकित्सक एवं पशुधन सहायक हर माह चालीस हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति महीने तक कमा रहे हैं।

सफलता का ग्राफ बेहतर

कृषि विज्ञान केंद्र के पशुपालन विभाग के वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ प्रफुल्ल भटनागर बताते हैं कि यहां पशु बांझपन के निवारण में सफलता का ग्राफ बेहतर है। यहां पशुओं में बांझपन को लेकर साठ फीसदी से अधिक सफलता मिलती है। वह बताते हैं कि वह उपचार करने से पहले पशु के बांझपन के स्टेज का पता लगाते हैं। जिससे उनकी सफलता का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है।

पशुओं में बांझपन के लिए वह उनके खान-पान को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि आजकल पशुपालक अपने पशु को वही खाना खिलाते हैैं, जो उसके पास उपलब्ध है। जबकि पहले आसपास जंगलों से उसे आवश्यक ऐसी चीजें भी खाने को मिल जाया करती थी, जो उसके लिए आवश्यक है। अब इसके विपरीत या तो पशु को एक ही जगह बांधकर रखा जाता है या शहरी क्षेत्र में उसे खुला छोड़ दिया जाता है। इसके चलते उनमें बांझपन बढऩे लगा है। 


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