Rajasthan: अब मार्बल स्लरी बनेगी कमाई का जरिया, रेलवे से मिली सौगात
Marble Slurry बिजनेस डेवलपमेंट प्लान के तहत रेलवे ने उदयपुर से मोरबी के लिए मार्बल स्लरी की ढुलाई की मंजूरी दे दी है। इसकी ढुलाई किस स्टेशन से की जानी है यह तय करना बाकी है।
उदयपुर, संवाद सूत्र। मार्बल स्लरी के निस्तारण के लिए उदयपुर संंभाग के मार्बल कारोबारियों को हर माह लाखों रुपये का खर्चा उठाना पड़ता है लेकिन अब यही स्लरी उनके आय का जरिया बनने वाली है। यह सब रेलवे की उदयपुर से गुजरात के मोरबी के लिए शुरू होने वाली मालगाड़ी से संभव होने जा रहा है। जहां मार्बल स्लरी अब टाइल्स तथा सेनेट्री आइटम तैयार करने में उपयोग ली जाएगी। बिजनेस डेवलपमेंट प्लान के तहत रेलवे ने उदयपुर से मोरबी के लिए मार्बल स्लरी की ढुलाई की मंजूरी दे दी है। इसकी ढुलाई किस स्टेशन से की जानी है, यह तय करना बाकी है। हालांकि शहर के प्रतापनगर स्थित रेलवे स्टेशन अलावा देबारी रेलवे स्टेशन में से किसी एक का चयन किया जाना है।
दोनों ही रेलवे स्टेशनों से पहले से माल ढुलाई का काम होता आया है। अब इन स्टेशनों से मार्बल स्लरी के साथ फेल्सपार मोरबी तक पहुंचाने की योजना है। इसको लेकर बिजनेस डवलपमेंट प्लान के नोडल अधिकारी एवं मंडल वाणिज्य प्रबंधक महेंद्रचंद्र जेवलिया का कहना है कि पिछले दिनों मंडल रेल प्रबंधक नवीन परसुरामका ने उदयपुर यात्रा के दौरान उदयपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स के पदाधिकारियों से इस संबंध में चर्चा करने के बाद इसके लिए हरी झंडी दी थी। उन्होंने खनन उद्यमियों को माल ढुलाई के दो मार्ग बताए। राणा प्रतापनगर या देबारी से माल लदान करने पर वाया रतलाम, पालनपुर होकर मोरबी जाएगा। रेलवे उदयपुर से सोपस्टोन, सिंगल सुपर फास्फेट, लूज और बैग्जपैक्ड रॉक फास्फेट की ढुलाई पहले से कर रहा है। राणा प्रतापनगर से रासायनिक खाद के कट्टे भी मालगाड़ियों में लदान किए जाते हैं।
टाइल और सेनेट्री आइटम बनाने में है उपयोगी स्लरी उदयपुर क्षेत्र की खनन इकाईयों में निकलने वाला फेल्सपार और मार्बल कटिंग के दौरान वेस्ट मटेरियल के रूप में निकजने वाली स्लरी की गुजरात की टाइल इंडस्ट्रीज में डिमांड है। ये दोनों मटेरियल मोरबी स्थित सेरेमिक टाइल इंडस्ट्रीज में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होते हैं। अभी उदयपुर से स्लरी गोगुंदा के स्लरी पार्क में की जाती है निस्तारित उदयपुर के मार्बल व्यापारी स्लरी का निस्तारण करने के लिए ट्रकों के माध्यम से लगभग चालीस किलोमीटर दूर गोगुंदा के स्लरी पार्क ले जाते हैं, जहां उसे डाला जा रहा है। अरावली पर्वतमाला के बीच उसे डाला जा रहा है। जहां यह स्लरी डाली जा रही है, वह चट्टानी मरूस्थल की तरह हो जाता है, जिस पर ना तो पेड़-पौधे पनपते और ना ही जीव-जंतु रहते। इस स्लरी के निस्तारण में मार्बल कारोबारियों को एसोसिएशन की ओर से तय टैक्स के अलावा निजी वाहन उपयोग में लेने होते हैं। जो उनके लिए बेहद खर्चीला पड़ता है।