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Ajmer News: सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम महिला को मिली राहत, 20 हजार रुपये प्रतिमाह मिलेगा गुजारा भत्ता

Rajasthan सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत में लंबित मामले के निपटारे होने तक मुस्लिम महिला के पति शाहिद हुक चिस्ती को 20 हजार रुपये प्रति माह गुजरा भत्ता देने का आदेश दिया। आगे सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या मुस्लिम महिला का मामला फैमिली कोर्ट सुन सकता है या नहीं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 22 Sep 2022 09:10 PM (IST)Updated: Thu, 22 Sep 2022 09:10 PM (IST)
Ajmer News: सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम महिला को मिली राहत, 20 हजार रुपये प्रतिमाह मिलेगा गुजारा भत्ता
अजमेर की मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, 20 हजार रुपये प्रतिमाह मिलेगा गुजारा भत्ता।

अजमेर, संवाद सूत्र। Ajmer News: राजस्थान में अजमेर (Ajmer) की मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत मिली है। निचली अदालत में लंबित मामले के निपटारे होने तक मुस्लिम महिला के पति शाहिद हुक चिस्ती को 20 हजार रुपये प्रति माह गुजरा भत्ता देना पड़ेगा। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ की तीन जजों की बेंच ने आदेश दिया है। आगे सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या मुस्लिम महिला का मामला फैमिली कोर्ट सुन सकता है या नहीं। 

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जानें, क्या है मामला

आठ मार्च, 1998 को एक मुस्लिम महिला राणा नाहिद ने अजमेर के एक शाहिदुल हक चिश्ती से शादी की। 16 अक्टूबर, 2000 को उसे एक बच्चे का जन्म हुआ। बाद में पति ने 23 अप्रैल, 2005 को पत्नी को तलाक दे दिया। इसलिए 24 मार्च, 2008 को पत्नी ने अजमेर फैमिली कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन दायर किया। पत्नी द्वारा दावा की गई कुल राशि 8,500 प्रति माह थी। आठ दिसंबर, 2008 को फैमिली कोर्ट ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आवेदन स्वीकार कर लिया और बेटे के लिए 2000 रुपये प्रति माह भरण पोषण जब तक वह वयस्क नहीं हो जाता और 3,00,000 रुपये एकमुश्त रखरखाव के रूप में देने को कहा।

पहले हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

बाद में राजस्थान उच्च न्यायालय ने 28 जुलाई, 2010 को पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और पत्नी के पुनरीक्षण को खारिज कर दिया और मजिस्ट्रेट के समक्ष मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा तीन के तहत एक आवेदन दायर करने का आदेश दिया। बाद में आठ सितंबर, 2014 को राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अंतरिम भरण पोषण को 2000 से 7000 रुपये तय किए। हालांकि पति ने 2018 से भरण-पोषण देना बंद कर दिया। 2011 में पत्नी ने सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की, जिस पर खंडपीठ ने 18 जून, 2020 को असहमतिपूर्ण राय दी और मामला बड़ी पीठ को भेजा गया। 22 सितंबर, 2022 को मामला सर्वाेच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, जिसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अभय एस ओका शामिल थे। मामले की लंबी सुनवाई के बाद पीठ ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में एक लाख रुपये देने का आदेश दिया। 20,000 प्रति माह जब तक कि मामला निचली अदालत में लंबित न हो। मामले की पैरवी अधिवक्ता सुनील कुमार सिंह ने की। मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं है।

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