Rajasthan Lok Sabha Election 2019: इस बार कड़े मुकाबले में फंसा है जयपुर शहर का मुकाबला
Rajasthan Lok Sabha Election 2019 जयपुर शहर लोकसभा सीट पर इस बार कड़े मुकाबले की गर्मी महसूस हो रही है।
जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगर जयपुर में इन दिनों गर्मी कुछ ज्यादा ही है। मौसम तो गर्म है ही, राजधानी होने के कारण सियासत की गर्मी भी पूरी है। यह शहर पूरे प्रदेश की राजनीति का केंद्र तो है ही, जयपुर शहर लोकसभा सीट पर भी इस बार कड़े मुकाबले की गर्मी महसूस हो रही है।
इस सीट पर चुनाव मैदान में नजर आ रहे प्रत्याशी राष्ट्रीय स्तर पर भले ही चर्चित न हों, लेकिन राजधानी होने के कारण यहां के मुकाबले पर सबकी नजर टिकी हुई है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां सभा की है तो कांग्रेस भी यहां पूरा जोर लगा रही है। पिछली बार मोदी लहर पर सवार भाजपा के प्रत्याशी रामचरण बोहरा ने 5.39 लाख वोटों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की थी।
इस बार भी भाजपा की ओर से बोहरा ही मैदान में हैं लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा दिख रहा है क्योंकि कांग्रेस ने यहां की महापौर रह चुकीं ज्योति खंडेलवाल को मैदान में उतारा है। ऐसे में करीब 35 वर्ष बाद इस सीट पर दो बड़े जाति समुदायों ब्राह्मण और वैश्य समुदाय के प्रत्याशियों में टक्कर है। इसके अलावा भाजपा का गढ़ रही इस सीट के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है।
ये दो ऐसे बड़े कारण है जिनसे इस सीट का मुकाबला रोचक हो गया है। 20.88 लाख मतदाताओं वाले इस शहर के मुद्दे तो कई हैं लेकिन बोहरा अपने काम से ज्यादा एक फिर मोदी सरकार के नाम पर वोट मांगते दिख रहे हैं, वहीं ज्योति खंडेलवाल खुद को जयपुर की बेटी और बहू बताते हुए वोट मांगती नजर आती हैं।
प्रचार का माहौल-
राजस्थान में अब दूसरे चरण का प्रचार अंतिम दौर में है इसलिए माहौल में कुछ चुनावी रंगत दिख तो रही है लेकिन चुनाव का माहौल बनाने वाले झंडे, बैनर नदारद है। दोनों प्रत्याशियों का जोर जनसंपर्क, छोटी सभाओं और छोटे रोड शो पर है।
बुधवार को शहर के झोटवाड़ा इलाके में जब बोहरा अपने रोड शो पर निकले तो वहां पान की दुकान पर खड़े रामकिशोर भदौरिया बोले कि चलो पांच साल में शक्ल तो दिखी। पान की दुकान मालिक बोले, अरे साब कोई भी नेता हो चुनाव के समय ही दिखते हैं। अभी ये हाथ जोड़ रहे हैं, फिर हम हाथ जोड़ेगे। कुछ दूरी पर पेशे से शिक्षक आबिद हुसैन खड़े थे, उनसे पूछा तो बोले इस चुनाव में पहली बार कोई वोट मांगने के लिए इस तरफ आया है। शहर के पुराने हिस्से परकोटे के बाजारों और गलियों में भी चुनाव की चर्चा तो है, लेकिन इसका कारण प्रत्याशियों के प्रचार से ज्यादा सोशल मीडिया पर आने वाली खबरें हैं।
जयपुर की बड़ी चौपड़ पर एक चाय की दुकान पर चर्चा कर रहे प्रभाती लाल और महेश शर्मा कहते हैं, अब यहां पहले जैसा चुनावी माहौल नहीं बनता। अब तो सब कुछ सोशल मीडिया पर चलता है और उसी को लेकर चर्चाएं भी हो जाती हैं।
सीट का भूगोल
जयपुर शहर मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पुराना शहर परकोटे में सिमटा हुआ है और यहां की ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। नया शहर परकोटे के बाहर चारों तरफ करीब 30 किमी का विस्तार पा चुका है। आबादी तीस लाख से ज्यादा हो चुकी है, जबकि मतदाता हैं 20.88 लाख।
सीट का इतिहास
1952 से लेकर अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यहां से केवल चार बार जीत पाई है। भाजपा के अस्तित्व में आने से पहले यहां स्वतंत्र पार्टी और अन्य दल जीतते रहे और भाजपा के बनने के बाद सात बार यहां से भाजपा ने जीत हासिल की है। इनमें से छह बार 1989 से लेकर 2004 तक तो एक ही व्यक्ति गिरधारी लाल भार्गव यहां से सांसद रहे हैं। वर्ष 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण में बंट गई। जयपुर शहर में 2009 का चुनाव कांग्रेस ने जीता, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में सीट वापस भाजपा के पास आ गई।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप