Coronavirus: महासंकट में राजस्थान की टैक्सटाइल इंडस्ट्री, भीलवाड़ा,सांगानेर व कोटा के कपड़ा उद्योग की बढ़ी मुश्किल
कोरोना महामारी के कारण राजस्थान का कपड़ा उघोग संकट में है। देशभर में टेक्सटाइल सिटी के नाम से मशहूर भीलवाड़ा में अब टेक्सटाइल इंडस्ट्री संकट में आ गई है।
जयपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी के कारण राजस्थान का कपड़ा उद्योग संकट में है। देशभर में टेक्सटाइल सिटी के नाम से मशहूर भीलवाड़ा में अब टेक्सटाइल इंडस्ट्री संकट में आ गई है। वहीं कोटा डोरिया की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध कोटा व सांगानेरी प्रिंट के कपड़ों लिए मशहूर जयपुर के सांगानेर की छोटी इकाईयां पिछले डेढ़ माह से बंद है। इसके चलते श्रमिकों के साथ ही उघोगपतियों को भी काफी मुश्किल हो रही है।
वहीं सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। प्रदेश में सबसे पहले कोरोना का हॉटस्पॉट रह चुके भीलवाड़ा में 400 से अधिक कपड़ा इकाइयों में उत्पादन लगभग बंद है। प्रतिदिन 26 लाख मीटर कपड़े का उत्पादन करने वाली यहां की कपड़ा इंडस्ट्री का सालाना टर्न ओवर 15 हजार करोड़ रुपए का है। लेकिन कोरोना संकट काल में इस इंडस्ट्री का करीब 1500 करोड़ रुपये का भुगतान अटकने से अब संकट के बादल छाने लगे हैं। यहां पिछले 20 मार्च से कर्फ्यू लगा हुआ है।
इसी तरह कोटा में हर साल करीब एक लाख साड़ियां छोटी इकाईयों में बनती है। 100 रुपये से 50 हजार रुपये तक की कोटा डोरिया की साड़ियों का सालाना टर्नओवर करीब 40 करोड़ रुपये है। गर्मी के मौसम में यहां की साड़ियों की मांग अधिक होती है,लेकिन इस बार यहां के कारीगरों व व्यापारियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। वहीं जयपुर के सांगानेर में बनने वाला सांगानेरी प्रिंट का कपड़ा बनना भी बंद है।
सांगानेरी प्रिंट के कपड़े का साला टर्नओवर 100 करोड़ रुपये के आसपास है। इस इंडस्ट्री में करीब 3 हजार मजदूरों को रोजगार मिला है। उधर राज्य के उधोग मंत्री परसादी लाल मीणा का कहना है कि लॉकडाउन के बाद सभी उधोगों को राहत देने के प्रयास होंगे। राज्य सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार से पैकेज मांगा है।
भीलवाड़ा की फैक्ट फाइल
टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की चिंता है कि इकाइयां बंद हैं। आधा तैयार माल पड़ा हुआ है, बेचे गए कपड़े का भुगतान रुका हुआ है। लेकिन बैंक के ब्याज का मीटर लगातार चल रहा है। बकाया राशि लॉकडाउन खुलने के बाद कब मिलेगी यह कहना मुश्किल है। विविंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय पेड़ीवाल कहते हैं कि हमें बैंकों से कम से कम 20 से 40 प्रतिशत अतिरिक्त वर्किंग कैपिटल मिलना चाहिए।
एक साल तक के लिए छोटे और मध्य श्रेणी के उद्योगों की ब्याज दर कम करनी चाहिए,नहीं तो यह उद्योग चल नहीं पाएंगे। यहां 400 छोटी-बड़ी कपड़ा फैक्ट्रियां हैं,जिनमें 26 लाख मीटर कपड़ा प्रतिदिन बनता है। यहां 96 करोड़ मीटर कपड़े का सालाना उत्पादन होता है वहीं 14 स्पिनिंग यूनिट में धागा बनाया जाता।
यहां से करीब 400 करोड़ रुपये के धागे का निर्यात होता है। 70 देशों में कपड़ा और धागा निर्यात होता है। कपड़ा इंडस्ट्री का 15 हजार करोड़ रुपये का सालाना टर्न ओवर है और 1 लाख से अधिक लोगों को इससे मिला हुआ है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है।
कोटा डोरिया व सांगानेरी प्रिंट इंडस्ट्री का विवरण
कोटा डोरिया की साड़ियां पूरे देश में प्रसिद्ध है। गर्मी में इनकी काफी मांग होती है। हर साल 1 लाख सेअधिक साड़ियां बनती है। छोटी-छोटी इकाईयों में ये बनती है। इससे करीब 25 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसका टर्नओवर 35 करोड़ सालाना है। इसी तरह जयपुर के साांगानेरी प्रिंट के कपड़े की मांग भी काफी है। इसकी करीब 100 छोटी-बड़ी इकाईयां यहां लगी हुई है,जिनमें करीब 20 हजार मजदूर काम कर रहे हैं। 100 करोड़ रुपये वार्षिक का कारोबार इस इंडस्ट्री का है। इस इंडस्ट्री से जुड़े विधायक अमीन कागजी का कहना है कि कोरोना के चलते लॉकडाउन के कारण सांगानेरी प्रिंट इंडस्ट्री को काफी नुकसान हुआ है।