धनतेरस पर देशी टकसाल निर्मित चांदी के सिक्कों की बढ़ी डिमांड
धनतेरस और दिवाली के मोके पर जोधपुर शहर की देसी टकसाल में इस बार रिकॉर्ड 1200 किलो चांदी के सिक्कों की ढलाई की उम्मीद है। पिछले साल यहां लगभग 1000 किलो चांदी के सिक्के बने थे।
जोधपुर, रंजन दवे। धनतेरस और दिवाली के मोके पर जोधपुर शहर की देसी टकसाल में इस बार रिकॉर्ड 1200 किलो चांदी के सिक्कों की ढलाई की उम्मीद है। पिछले साल यहां लगभग 1000 किलो चांदी के सिक्के बने थे। शहर के भीतरी परकोटे स्थित इन देसी टकसाल में ढलने वाले चांदी के सिक्कों की अपनी अलग पहचान है। अपनी बेहरतीन गुणवत्ता की वजह से इन सिक्कों की मांग पूरे देश में रहती है। मशीनी युग में देशी तकनीक का क्रेज कम हुआ है फिर भी जोधपुर की देशी टकसालों ने अपना वजूद बनाये रखा है।
अच्छे मानसून से दीवाली की रौनक बढ़ने की उम्मीद जगी है। हलांंकि मंंहगाई तो जरुर है लेकिन परंपरा और मान्यताओंं के आगे ये बोनी साबित होती आयी है, लिहाजा पिछले साल की तुलना में चांंदी के सिक्कों की मांग लगभग 25 प्रतिशत बढ़ने के मद्देनजर इस बार तकरीबन एक टन से अधिक चांंदी के सिक्कों की ढलाई हुई है।
इस बार सरकारी कर्मचारियों को जहाँ डीए और बोनस मिलने से भी आस जगी है तो वही बाज़ार में भी धनतेरस पर पैसा आने की उम्मीद है। प्रदेश में इस बार अच्छी बरसात और मानसून होने से भी खुशहाली का वातावरण है। ऐसे में परंपरागत रूप से समृद्धि के प्रतीक चांदी के सिक्कों की खरीदारी में वृद्धि की उम्मीद है। देसीटकसाल में बनने वाले सिक्के 99 प्रतिशत टंच चांदी के हैं। जाहिर है इन सिक्कों की खरीददारी करने के लिए व्यापारी दुसरे राज्यों से भी जोधपुर आते है।
त्रिमूर्ति वाले सिक़्क़ो की रहती है डिमांड
रोशनी के इस त्यौहार पर खासकर उन सिक्कों की मांग रहती है जिन पर लक्ष्मी जी की तस्वीर होती है, धनतेरस के दिन इनकी खरीद एवं दीपावली को पूजा होती है। जैन समाज में स्वास्तिक चिह्न् वाले सिक्कों की खरीद एवं पूजन की परंपरा भी है। धनतेरस पर चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा मुस्लिम समुदाय के कुछ तबकों में भी है। जिनके लिए 786 अंकित चांदी के सिक्के विशेष रूप से बनाए जाते हैं।
इनका कहना है
जोधपुर में बने त्रिमूर्ति के 99% मार्क के सिक्के पूरे भारत मे अपनी शुद्धता के लिए मशहूर है। देशी टकसाल में बने सिक्को को परम्परागत रूप से धनतेरस पर सिक्के खरीदने की परम्परा है। यहां की सिक्का टकसाल में शुद्धता से सिक्के बनते है।
राजस्थान ऑल इंडिया बुलियन एन्ड ज्वैलरी एससोशिएशन, उपाध्यक्ष नवीन सोनी ने कहा धनतेरस पर चांदी के सिक्के खरीदकर उनकी दिवाली पर पूजा करने की परंपरा है। इसकी वजह गुणवत्ता और शुद्धता है। इसके लिए जोधपुर के स्थानीय सुनारों को आर्डर देकर भी सिक्के बनाये जाते हैं जो देने लेने में काम आते हैं।