चुनावी साल में सवालों के घेरे में क्यों है राजस्थान पुलिस?
कई बड़े मामलों में राजस्थान पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे है।
जयपुर, जागरण संवाददाता। राजस्थान में करीब 4 माह बाद विधानसभा चुनाव होने है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे,मंत्री और भाजपा नेता पूरे प्रदेश में लोगों के पास जाकर अपने शासन काल की उपलब्धियां बता रहे है। लेकिन प्रदेश में शांति,कानून-व्यवस्था बनाये रखने तथा अपराधों की रोकथाम और उल्लंघन पर सजा दिलाने की जिम्मेदारी उठाने वाले सरकारी तंत्र पर ही सवाल उठ रहे है। कई बड़े मामलों में राजस्थान पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस संबंध में पिछले दिनों संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब तलब किया है। प्रदेश के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कुछ समय पहले दावा किया था कि राजस्थान देश का पहला राज्य है, जहां संगीन अपराधों में कमी आई है और लगातार अपराधों में कमी दर्ज की जा रही है। लेकिन कई मामलों में राजस्थान पुलिस सवालों के घेरे में है।
दरअसल, अलवर में मॉब लिंचिंग की घटना में अकबर खान की हिरासत में मौत के बाद पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही,इससे पहले पहलू खां की मौत को लेकर भी पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठे। पिछले साल आनंदपाल सिंह एनकाउंटर पर भी पुलिस सवालों के घेरे में आई थी। फेक एनकाउंट को लेकर सरकार की अर्जी के बाद अब पुलिस एनकाउंटर की जांच सीबीआई कर रही है।
डांगावास घटना में पुलिस अधीक्षक, कलेक्टर, मेड़ता एसडीएम, एडीशनल एसपी नागौर की भूमिका भी संदिग्ध बताई गई। यही नहीं हाल ही हिस्ट्रीशीटर खरताराम की मौत भी सुर्खियों में रही। कथिततौर पर खरताराम ने पुलिस के डर से खुद को गोली मार कर आत्महत्या की थी ।
कोर्ट ने जेल में मौत पर रिपोर्ट मांगी
संगीन अपराधों में पुलिस कार्रवाई और हिरासत में मौतों पर आखिर राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रसंज्ञान लेते हुए डीजी जेल को आदेश दिए कि 30 जुलाई तक पुलिस हिरासत में हुई मौतों की रिपोर्ट पेश करें। हिरासत में कैदियों की मौत को लेकर 20 अगस्त को ही सीजे प्रदीप नंद्राजोग की खंडपीठ ने स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश आदेश दिए है। इन आदेशों में कहा गया है कि हिरासत में हुई अप्राकृतिक मौतों पर सरकार रिपोर्ट पेश करे। साल 2012 से 2018 तक ऐसी कितनी मौत हुई हैं इसकी रिपोर्ट 10 दिन में पेश करने के आदेश दिए गए ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को किया दरकिनार
सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर 2017 को जेल सहित पुलिस हिरासत में मौत के मामले में दिशा-निर्देश जारी किए थे । लेकिन राज्य सरकार और जेल प्रशासन द्वारा उन निर्देशों का पालन नहीं किया गया। हाल ही हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार एवं जेल प्रशासन द्वारा सु्प्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं करने पर नाराजगी जताई है। उल्लेखनीय है कि देशभर में 2017-18 के दौरान हिरासत में 1664 मौतें हुई है।