Rajasthan: जबर्दस्त आर्थिक संकट में फंसे कोटा के होस्टल संचालक, मोरेटेरियम बढ़ाने की उठाई मांग
राजस्थान की कोचिंग सिटी कोटा की अर्थव्यवस्था पर कोविड का सबसे ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है। कोचिंग संस्थान बंद होने के कारण कोटा के होस्टल और पेइंग गेस्ट हाउसेज खाली पड़े हैं
जयपुर, राज्य ब्यूरो। राजस्थान की कोचिंग सिटी कोटा की अर्थव्यवस्था पर कोविड का सबसे ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है। कोचिंग संस्थान बंद होने के कारण कोटा के होस्टल और पेइंग गेस्ट हाउसेज खाली पड़े हैं और इनके संचालक जबर्दस्त आर्थिक संकट में फंस गए हैं। पिछले दिनों इन्होंने एक बैठक कर मोरेटेरियम बढ़ाने की मांग की और मांग नहीं माने जाने पर इच्छा मृत्यु देने की तक की मांग उठा दी।
राजस्थान के कोटा शहर की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कोचिंग के काम पर निर्भर करती है। कोविड के चलते कोचिंग संस्थान बंद हैं, हालांकि ऑनलाइन पढ़ाई जारी है, लेकिन यहां छात्र नहीं हैं। मई में लगभग सभी छात्र अपने राज्यों में चले गए।
कोटा में देश भर से औसतन डेढ़ से दो लाख छात्र पढ़ने आते है। शहर के तलवंडी, महावीर नगर प्रथम, आरकेपुरम, कोरल पार्क सहित एक बहुत बड़े हिस्से में ज्यादातर व्यवसाय कोचिंग छात्रों के भरोसे ही चलते हैं। इन इलाकों में इन दिनों वीरानी छाई हुई है। ऑनलाइन पढ़ाई के कारण कोचिंग संस्थानों का काम तो चल रहा है, लेकिन छात्र नहीं होने के कारण इनसे जुड़े ज्यादातर व्यवसाय जैसे होस्टल, पीजी, टिफिन सेंटर, चायवाले, स्टेशनरी की दुकान वाले, रेडिमेड गारमेंटस आदि बुरी तरह प्रभावित हुए है। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है होस्टल संचालक। कोटा में करीब ढाई हजार होस्टल और करीब 25 हजार पीजी हाउसेज चल रहे है। एक होस्टल में औसतन 40 छात्र रहते हैं और हर छात्र से औसतन दस हजार रुपये महीने किराया लिया जाता है।
वहीं पीजी हाउसेज में चार से पांच छात्र रहते हैं और ये चार से छह हजार रुपये प्रतिमाह तक का किराया लेते है। पीजी हाउसेज असंगठित है, क्योंकि ज्यादातर घरों में संचालित हैं, लेकिन होस्टल संचालकों की अलग-अलग एसोसिएशन बनी हुई है। इन्होंने मिल कर एक संयुक्त संघर्ष समिति का गठन कर लिया है। इन्हीं में से एक चम्बल होस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष शुभम अग्रवाल ने बताया कि पिछले दस वर्ष में होस्टलों में करीब 12 हजार करोड़ का निवेश हुआ है और ज्यादातर होस्टल बैंकों के कर्जदार हैं, क्योंकि कोचिंग के कारण कोटा में प्राॅपर्टी सस्ती नहीं है और होस्टल चलाने में भी काफी खर्च आता है। छात्रों को सभी तरह की सुविधाएं देने के लिए स्टाफ, मेंटेनेंस आदि पर काफी खर्च करना पड़ता है।
अग्रवाल ने बताया कि हमारे यहां हर वर्ष जनवरी से छात्रों का किराया आना बंद होता है, क्योंकि फरवरी मार्च के आस-पास छात्र अपने घरों को लौटना शुरू करते हैं और अगले सत्र के लिए मार्च से बुकिंग शुरू होती है, तब हमारे पास पैसा आना शुरू होता है। इस बार जनवरी से पैसा आना बंद हुआ और मार्च मे कोविड आ गया। ऐसे में पिछले आठ महीने से कोई पैसा नहीं आ रहा है। छात्रों की सिक्योरिटी डिपाॅजिट आदि सब खप चुका है और होस्टल संचालक बाजार से मोटी ब्याज दर पर पैसा लेकर या कोई दूसरा काम कर के घर खर्च चला रहे हैं। हर होस्टल में जहां पहले आठ से दस कर्मचारी होते थे, वहीं अब एक कर्मचारी रखा हुआ है। सामान खराब और चोरी होने लगा है और सबसे ज्यादा परेशानी बैंक की किश्त चुकाने में आ रही है।
उन्होंने बताया कि हम सरकार के सभी जनप्रतिधियों से मिल चुके है। राजस्थान सरकार में स्वायत्तशासन मंत्री शांति धारीवाल से लेकर क्षेत्र के सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तक सबसे मुलाकात कर चुके है, लेकिन राहत नहीं मिल रही है। हम सब की मांग यही है कि सरकार मोरेटोरियम की अवधि 31 मार्च तक बढ़ाए, ताकि कुछ राहत मिल सके।
उन्होंने बताया कि लोग इतने परेशान हैं कि पिछली बैठक में तो यह मांग उठ गई थी कि सरकार मोरेटेरियम नहीं बढ़ा सकती तो हम सभी को इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दे, क्योंकि मौजूदा स्थिति में बैंक का कर्ज चुकाने की स्थिति में हम लोग नहीं हैं।