Laxmi Vilas Palace Udaipur: 18 साल की लड़ाई से बचाई 252 करोड़ की सरकारी संपत्ति
झीलों की नगरी उदयपुर के पांच सितारा होटल लक्ष्मी विलास पैलेस को औने-पौने दाम पर बेचने के खिलाफ 18 साल की कानूनी लड़ाई अंजाम तक पहुंचती दिख रही है। धोखाधड़ी कर निजी हाथों में बेचा गया यह होटल अब सरकार के पास है।
नरेन्द्र शर्मा, जयपुर। उदयपुर के लक्ष्मी विलास पैलेस के विनिवेश के खिलाफ 18 साल तक जोधपुर कोर्ट और सीबीआइ कोर्ट में केस चला। इस पांच सितारा होटल के विनिवेश को जोधपुर की विशेष सीबीआइ अदालत ने गलत करार दिया, जिसके पीछे अंबालाल नायक का जुनून काम आया। कोर्ट ने विनिवेश को रद करते हुए कहा कि तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरुण शौरी, तत्कालीन विनिवेश सचिव प्रदीप बैजल, भारत होटल लिमिटेड की ज्योत्सना सूरी व लाजार इंडिया लिमिटेड के आशीष गुहा के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तारी वारंट से तलब किया जाए। कोर्ट के आदेश पर उदयपुर जिला कलेक्टर ने होटल का कब्जा ले लिया।
18 साल के इस केस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अंबालाल नायक ने। उदयपुर के कालका माता इलाका निवासी अंबालाल नायक विनिवेश से पहले लक्ष्मी विलास पैलेस में स्वागत सहायक के रूप में तैनात थे। फरवरी 2002 में होटल का विनिवेश करने की प्रक्रिया शुरू हुई तो सबसे पहले उन्होंने ही इसके खिलाफ संघर्ष शुरू किया। 2004 में जब तत्कालीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 252 करोड़ रुपये की कीमत के होटल को मात्र 7.5 करोड़ में ललित ग्रुप को बेचने का निर्णय लिया तो अंबालाल सीबीआइ दफ्तर और जोधपुर स्थिति हाई कोर्ट की मुख्यपीठ में पहुंच गए।
विनिवेश फैसले को गलत बताते हुए उन्होंने केंद्र सरकार के विनिवेश मंत्रालय के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि विनिवेश में घोटाला और भ्रष्टाचार हुआ है। इस फैसले के खिलाफ उन्होंने 18 साल तक दो तरह से संघर्ष किया। एक तरफ तो हाई कोर्ट में दस्तावेज प्रस्तुत कर दलील दी कि जिस जमीन पर होटल बना है वह राज्य सरकार की है ना की केंद्र सरकार की। इस कारण केंद्रीय विनिवेश मंत्रालय को इसे बेचने का हक नहीं है। वहीं, दूसरी तरफ विनिवेश में भ्रष्टाचार की बात कही। इस मामले में कोर्ट ने तीन दिन पहले फैसला दिया है।
प्राचीन धरोहरों को बचाने का संघर्ष : लक्ष्मी विलास पैलेस को लेकर 18 साल का संघर्ष सफल होने के बाद अब अंबालाल उदयपुर की शान माने जाने वाले लेक पैलेस होटल और जग मंदिर का कब्जा राज्य सरकार को दिलाने में जुटे हैं। ये दोनों संपत्तियां फिलहाल उदयपुर के पूर्व राज परिवार के कब्जे में हैं। पिछोला झील में स्थित लेक पैलेस और जग मंदिर को सरकारी संपत्ति बताते हुए अंबालाल ने गिर्वा के उपखंड अधिकारी के समक्ष वाद दायर किया है। अंबालाल का कहना है कि 20 अप्रैल, 1949 को रियासतों की संपत्तियों की जो सूची बनी थी उसमें लेक पैलेस और जग मंदिर को राज्य सरकार की संपत्ति माना गया था। इस मामले में 1982 में गिर्वा की तत्कालीन उपखंड अधिकारी अदिती मेहता ने दोनों संपत्तियों से पूर्व राज परिवार का कब्जा हटाने का फैसला भी दिया था, लेकिन ऊंची पहुंच के चलते ऐसा नहीं हो सका। इसके बाद उदयपुर के पूर्व महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ ने लेक पैलेस को होटल चलाने के लिए ताज ग्रुप को दे दिया और जग मंदिर में खुद होटल चला रहे हैं। जग मंदिर में विवाह होते हैं।
अंबालाल पर कोर्ट से मामला वापस लेने को लेकर काफी दबाव बनाया गया। धमकी के साथ लालच भी दिया गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। वह जुनून के साथ इस लक्ष्मी विलास पैलेस के विनिवेश के विरोध में कोर्ट में लड़ाई लड़ते रहे। इस पैलेस को उदयपुर की शान बताते हुए नायक का कहना है कि जोधपुर की सीबीआइ कोर्ट के फैसले से वह बेहद खुश हैं।