कोरोना तो बहाना ,असली मकसद पायलट खेमे के विधायकों की सदस्यता समाप्त कराना है
कोरोना तो बहाना असली मकसद पायलट खेमे के विधायकों की सदस्यता समाप्त कराना है -गहलोत को विधानसभा सत्र से फायदा होगा भाजपा नहीं दिखा रही दिलचस्पी
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान का सियासी संकट विधानसभा स्पीकर, राज्यपाल, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई में अब मुख्य मुद्दा विधानसभा सत्र हो गया। विधानसभा सत्र के मुद्दे को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आमने-सामने हो गए। करीब एक माह पहले तक राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच काफी मधुर संबंध रहे हैं। दोनों के बीच लगभग हर सप्ताह मुलाकात होती थी। लेकिन अब सचिन पायलट खेमे के कांग्रेस से बगावत करने के बाद राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनातनी हो गई। हालात यह हो गए कि मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से सीधा टकराव ले लिया ।
मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कांग्रेस विधायकों ने राजभवन में राज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी की। खुद मुख्यमंत्री ने राजभवन का जनता द्वारा घेराव करने व राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री तक जाने जैसे बयान दिए। 31 जुलाई को विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते हैं, लेकिन राज्यपाल ने उनके इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। राज्यपाल पहले कुछ सवालों एवं आशंकाओं का जवाब चाहते हैं। वहीं मुख्यमंत्री है कि जल्द से जल्द विधानसभा बुलाना चाहते हैं।
गहलोत मंत्रिमंडल ने कोरोना महामारी पर विधानसभा मे चर्चा व 6 विधेयक पारित कराने का प्रस्ताव दिया । लेकिन यह बात खुद गहलोत और कांग्रेस नेता भी जानते हैं कि सत्र बुलाने का मुख्य मकसद कोरोना पर चर्चा नहीं,बल्कि सचिन पायलट खेमे के विधायकों की सदस्यता समाप्त कराना है। दरअसल,गहलोत चाहते हैं कि विधेयक पारित कराने के लिए कांग्रेस विधायकों के लिए व्हिप जारी कराया जाए। इसके बाद यदि पायलट खेमे के विधायक विधेयक के खिलाफ वोट करते हैं या सदन से अनुपस्थित रहते हैं तो व्हिप का उल्लंघन करने पर उनकी सदस्यता स्पीकर के माध्यम से समाप्त करा दी जाएगी। वहीं भाजपा नहीं चाहती है कि विधानसभा सत्र बुलाकर पायलट खेमे के खिलाफ एक्शन लिया जाए। भाजपा चाहती है कि पायलट और उनके खेमे के विधायकों की सदस्यता बची रहे,जिससे आगे अगर जरूरत पड़े तो गहलोत सरकार को हिलाया जा सके ।
किनारे पर गहलोत सरकार
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है नंबर गेम। सचिन पायलट सहित 19 कांग्रेस विधायकों ने अशोक गहलेत के खिलाफ बगावत कर दी है। 3 निर्दलीय विधायक भी इनके साथ हैं। सचिन पायलट के इस कदम से गहलोत सरकार खतरे में आ गई। हालांकि अभी तक गहलोत सरकार बचाने में कामयाब रहे हैं। गहलोत ने राज्यपाल को 102 विधायकों का समर्थन पत्र सौंप दिया है, लेकिन गहलोत सरकार एकदम किनारे पर है । अगर 1-2 विधायक भी इधर-उधर हो गए तो सरकार संकट में आ जाएगी,इसलिए उन्हे भविष्य की चिंता उन्हें सता रही है । एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता का कहना है कि गहलोत विधानसभा सत्र बुलाकर विधेयक पेश करने की योजना बना रहे हैं। विधेयक के बहाने व्हिप जारी होगा,ऐसे में पायलट खेमे के 19 विधायकों को विधानसभा में मौजूद रहना होगा । अगर वो नहीं पहुंचेंगे तो स्पीकर के पास इन सभी विधायकों को अयोग्य घोषित करने का अधिकार होता । ऐसा होने पर सदन में विधायकों की कुल संख्या कम हरे जाएगी । कुल 200 में 19 विधायक कम होते ही बहुमत का जादुई आंकड़ा कम हो जाएगा । इससे गहलोत को यह फायदा होगा कि उनकी सरकार बहुमत की बेहतर स्थिति में आ जाएगी । हालांकि राज्यपाल गहलोत की इस योजना के सफल होने में रोड़ा बने हुए हैं।
राज्यपाल यदि विधानसभा सत्र की अनुमति देंगे तो गहलोत की योजना सफल हो जाएगी । वहीं सत्र नहीं होने पर सचिन पायलट को अपना खेल करने का पूरा मौका मिल जाएगा । यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट को ज्यादा समय मिलेगा तो गहलोत को उतना ही नुकसान होगा । गहलोत खेमे के कुछ विधायक भी सचिन पायलट के पास जा सकते हैं ।
200 सदस्यीय विधानसभा की स्थिति
- सियासी संग्राम से पहले कांग्रेस के कुल 107,13 निर्दलीय,1 रालोद व 2 बीटीपी विधायकों का समर्थन ।
- माकपा के दो विधायक ।
- भाजपा के 72 और सहयोगी आरएलपी के 3 विधायक ।
-अब पायलट खेमे खेमे के 19 और 3 निर्दलीय विधायकों के अलग होने के बाद गहलोत के पास पार्टी के 88,10 निर्दलीय,2 बीटीपी,1 आरएलडी व 1 माकपा का विधायक हैं । यह कुल संख्या 102 होती है । माकपा के एक विधायक ने फिलहाल अलग रहने की घोषणा की है ।