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Rajasthan Temple: आमल देवी मंदिर में लगे 16 बीघा भूमि पर फैला विशालकाय पेड़ को देवता की तरह पूजते हैं श्रद्धालु

कुंभलगढ़ तहसील के जुड़ की बड़ली गांव में आमल माता का मंदिर है। यहां मंदिर प्रांगण में लगे बरगद के पेड़ को लेकर लोगों का दावा है कि यह भारत के विशालतम पेड़ों में एक है। जितनी श्रद्धा लोगों की आमज माता में हैं उतनी ही इस पेड़ के प्रति।

By Jagran NewsEdited By: PRITI JHAPublished: Mon, 03 Oct 2022 03:17 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 03:17 PM (IST)
Rajasthan Temple: आमल देवी मंदिर में लगे 16 बीघा भूमि पर फैला विशालकाय पेड़ को देवता की तरह पूजते हैं श्रद्धालु
उदयपुर के कुंभलगढ़ के जुड़ की बड़ली में लगा बड़ का विशालतम पेड़ जो सोलह बीघा क्षेत्रफल में फैला है।

उदयपुर, सुभाष शर्मा। हर शक्तिपीठ को लेकर लोगों की अपनी-अपनी आस्था है। क्षेत्र के लोग ही नहीं, दूरदराज के लोग वहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। किन्तु उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले में ख्यातनाम कुंभलगढ़ दुर्ग के पास शक्ति देवी आमज माता का ऐसा मंदिर है, जिसके आंगन में लगे बड़ यानी बरगद के पेड़ को देवता की तरह पूजा जाता है। जिसके पीछे हैं कि देवी मां के आंगन में लगे बरगद का पेड़ इतना विशाल है कि यह 16 बीघा भूमि पर फैला हुआ है।

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राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ तहसील के जुड़ की बड़ली गांव में आमल माता का मंदिर है। यहां मंदिर प्रांगण में लगे बरगद के पेड़ को लेकर लोगों का दावा है कि यह भारत के विशालतम पेड़ों में एक है। जितनी श्रद्धा लोगों की आमज माता में हैं, उतनी ही इस पेड़ के प्रति। जिसे ग्रामीण देवता की तरह पूजते हैं।

नवरात्रि में माता के सााथ की जाती है बरगद की भी पूजा

नवरात्र में जुड़ की बड़ली गांव के लोग ही नहीं, बल्कि आसपास कई गांव के लोग आमज माता के दर्शन करने पहुंचते हैं और बड़ के पेड़ की भी पूजा करते हैं। यह बरगद का पेड़ कितना पुराना है, इसको लेकर कोई स्पष्ट नहीं बता पाता लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उनकी दस पीढियां आमज माता की पूजा करते आ रहे हैं और इस पेड़ की भी।

अकाल-सुकाल में भी फैलता रहा पेड़, 1000 साल पुराना है पेड़

लोगों का यहां तक दावा है कि यह पेड़ एक हजार साल से पुराना है। इस बीच अकाल पड़ा और अतिवृष्टि भी हुई लेकिन पेड़ की विशालता लगातार बढ़ती रही। पर्यावरणविद् डॉ. अनिल मेहता बताते हैं कि देश के विशालतम पेड़ों में जुड़ की बड़ली का बड़ का पेड़ है। यह कितने साल पुराना है पता नहीं, लेकिन ग्रामीण बताते हैं कि उनकी दस-बारह पीढियां इसकी पूजा करते आ रहे हैं।

ग्रामीण इस पेड़ के संरक्षण को लेकर खुद चौकीदार की भूमिका निभाए हुए हैं। जुड़ की बड़ली ही नहीं, आसपास गांवों के लोग इस पेड़ का पत्ता तक नहीं तोड़ते और ना ही बाहर से आने वाले लोगों को तोडऩे देते। उनकी आस्था इस पेड़ के प्रति इतनी गहरी है कि वे मानते हैं कि इस पेड़ की पूजा करने तथा कुछ पल इसकी छांव में बिताने वालों का भी दुख दूर हो जाता है। हालांकि इस पेड़ और आमली माता मंदिर तक पहुंचना बाहरी लोगों के लिए आसान नहीं। यहां तक पहुंचने के लिए पैदल ही मार्ग है, जहां वाहन चलाना दूभर है। इसके बावजूद हर साल यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

टूरिस्ट पोइंट की विकसित करने की मांग

ग्रामीण यहां हर रविवार को माता के दर्शन करने आते हैं लेकिन नवरात्र में नौ दिनों तक यहां लोगों का आना बढ़ जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि राज्य सरकार चाहे तो इस जगह को टूरिस्ट पोइंट की तरह विकसित कर सकती है। बस राज्य सरकार को आमलमाता तथा इस पेड़ तक पहुंचने के लिए पक्का रास्ता बनाना होगा।

पेड़ की वजह से पक्का मंदिर बनाने की तमन्ना छोड़ दी

जुड़ की बड़ली के लोगों का कहना है कि आमज माता के प्रति उनकी ही नहीं, आसपास के दर्जनों गांव के लोगों की गहरी आस्था है। वह यहां आमज माता का पक्का मंदिर बनाना चाहते थे। इसके लिए जब नक्शा बनवाया तो पता चला कि मंदिर निर्माण के लिए पेड़ को काटना होगा तो उन्होंने पेड़ को संरक्षण दिए जाना ज्यादा बेहतर समझा। हालांकि लोगों ने यहां कुछ माता की जोत के लिए थोड़ा सा पक्का निर्माण कराया है, जहां बरसों से अखंड ज्योत चालू है।


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