लोकसभा चुनाव 2019: राजस्थान में कांग्रेस को सीएम गहलोत की साफ छवि और योजनाओं से उम्मीद
लोकसभा चुनाव 2019 राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव दो चरणों में संपन्न हो गए। अब 23 मई को होने वाली मतगणना का इंतजार है।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव दो चरणों में संपन्न हो गए। अब 23 मई को होने वाली मतगणना का इंतजार है। करीब दो माह तक चले चुनाव अभियान में कांग्रेस का चुनावी गणित भाजपा की कमेस्ट्री के आगे कमजोर नजर आया। प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पहले तो कांग्रेस चुनावी मुद्दों के चयन में गलती करती नजर आई।
दरअसल, कांग्रेस ने अपना पूरा ध्यान गणित में लगा दिया और भाजपा कमेस्ट्री की मास्टर निकली। भाजपा ने जहां पूरा चुनाव राष्ट्रवाद और पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा,वहीं कांग्रेस जातिगत समीकरणों को साधने में जुटी रही। चुनाव अभियान की शुरूआत में कांग्रेस ने जिस तरह से प्रत्येक लोकसभा क्षेत्रवार जातिगत समीकरण बिठाए,उससे एक बार तो प्रदेश के भाजपा नेताओं में बेचैनी बढ़ी। लेकिन फिर जिस तरह से भाजपा ने गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैँसला और जाट समाज के युवाओं में लोकप्रिय राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल को साथ लिया उसके बाद धीरे-धीरे माहौल बदला उसमें कांग्रेस की जातिगत गणित से भाजपा की केमिस्ट्री आगे निकल गई।
राष्ट्रवाद के मुद्दे को लेकर भाजपा ने जिस तरह से आक्रामक ढंग से चुनाव अभियान चलाया,उसमें राहुल गांधी की न्याय योजना के साथ ही अशोक गहलोत सरकार की किसान कर्ज माफी और बेरोजगारी भत्ते की योजनाएं मुद्दा नहीं बन सकी। जानकारों का मानना है कि शुरू से ही कांग्रेस का चुनाव अभियान भाजपा के मुकाबले कमजोर रहा। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की साफ छवि और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की युवाओं में पकड़ के भरोसे कांग्रेस को अभी भी काफी उम्मीद है ।
टिकट वितरण से बढ़ा कांग्रेस में असंतोष
कांग्रेस ने जातिगत समीकरण साधने का काफी प्रयास किया। सीएम अशोक गहलोत ने जातिगत आधार पर प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र की रणनीति बनाई। विभिन्न समाजों के नेताओं को कांग्रेस में शामिल किया। लेकिन प्रत्याशियों के चयन से ही कांग्रेस में गड़बड़ी शुरू हो गई। 25 में से 7 सीटों पर तो कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को मैदान में उतार दिया जो या तो जातिगत समीकरण में फीट नहीं बैठ रहे थे या फिर क्षेत्र में उनका कोई आधार नहीं था। इनमें भीलवाड़ा से रामपाल शर्मा,राजसमंद से देवकीनंदन गुर्जर,चित्तोडगढ़ से गोपाल सिंह ईडवा,झालावाड़ से प्रमोद शर्मा,जयपुर शहर से ज्योति खंडेलवाल और झुझुनूं से श्रवण कुमार शमािल है।
जाट और गुर्जर बहुल भीलवाड़ा सीट पर ब्राहम्ण,रावत और राजपूत बहुल सीट पर गुर्जर एवं ब्राहम्ण बहुल जयपुर सीट पर खंडेलवाल समाज के प्रत्याशी को मैदान में उतारना कांग्रेस की कमी रही। कुछ माह पूर्व भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले प्रमोद शर्मा को झालावाड़ से टिकट देने पर स्थानीय कांग्रेसी खिलाफ हो गए और वे पूरे चुनाव अभियान में नदारद रहे। नागौर निवासी गोपाल सिंह ईडवा को चित्तोडगढ़ से टिकट देना भी कांग्रेस की गलती मानी जा सकती है। ईडवा तो पूरे चुनाव अभियान के दौरान स्थानीय कार्यकर्ताओं को नहीं मना सके ।
दिल्ली के हाथ में रही भाजपा की कमान
भाजपा के चुनाव अभियान की कमान पूरी तरह से राष्ट्रीय नेतृत्व के हाथ में रही। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा-निर्देश पर चुनाव अभियान संचालित करते रहे। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सहित अन्य प्रदेश के नेताओं को अधिक तवज्जो नहीं दी गई। भाजपा ने काफी सोच-विचार कर टिकट देने के साथ ही चुनाव अभियान भी आक्रामक ढ़ग से चलाया। पार्टी का बूथ जीतो,चुनाव जीतो अभियान इस चुनाव में काम आया।
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