Child Marriage: अशिक्षा और गरीबी है बाल विवाह के कारण
Child Marriage In Rajasthan. बाल विवाह रोकथाम के लिए वर्ष 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम लागू किया गया लेकिन इसके बाद भी इस पर रोक नहीं लगा।
जोधपुर, रंजन दवे। Child Marriage In Rajasthan. देश भले ही विश्व स्तर पर महाशक्ति के रूप में उभरता जा रहा है, लेकिन मासूमों के बचपन से खिलवाड़ करने वाली बाल विवाह की कुप्रथा अब भी कायम है। सतही तौर पर सरकार द्वारा रोकथाम के प्रयास भी हुए हैं, लेकिन जानकारों के अनुसार अशिक्षा और गरीबी ही ऐसे मूल कारण हैं, जिनसे ये कुप्रथा अभी भी पैर पसारे बैठी है। यही वहज है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में ये कुप्रथा अधिक गहरी है। पुलिस महकमे की भी वर्ष 2019 की जोधपुर जिले की रिपोर्ट में तीन दर्जन से अधिक ऐसे मामलों का जिक्र है, जिसमें बाल विवाह रुकवाए गए हैं साथ ही परिजनों को भी पाबंद किया गया।
बाल विवाह रोकथाम के लिए वर्ष 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम लागू किया गया, लेकिन इसके बाद भी इस पर रोक नहीं लगा। जोधपुर ग्रामीण में बाल विवाह के 2019 में 38 मामले सामने आए। जिले के ग्रामीण पुलिस अधीक्षक राहुल बारहठ के अनुसार थानावार सामने आए ऐसे प्रकरणों में सबसे अधिक नौ मामले बिलाड़ा में और पीपाड़ थाना में सात मामले सामने आए, जहां पुलिस ने कार्रवाई करते आयोजकों को पाबंद किया। वहीं जोधपुर के भोपालगढ़ , बोरुंदा, जांबा और चाखू में बाल विवाह से जुड़ा एक भी मामला सामने नहीं आया । इसके अलावा परिस्थितिनुकुल बाप थाना क्षेत्र से जुड़े ऐसे ही एक मामले में आइपीसी की धारा 273 में परिवाद भी दर्ज किया गया।
सामाजिक ताने बाने से गुंथे ग्रामीण परिवेश में जातिगत पंचों के दबदबे के अलावा भी पड़ताल में कई ऐसे अनछुए पहलू सामने आए, जो दिखने में तो सामान्य जान पड़ते हैं। चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) में बतौर अध्यक्ष रहे जोधपुर के राजेंद्र चावड़ा जातिगत व्यवस्थाओं का भी जिक्र करते हैं, जिनके मूल में गरीबी ही एक प्रमुख कारण के रूप में उभर कर आई है। पश्चिमी राजस्थान में प्रभावी जातियों के रूप में जाट, विश्नोई व दलित समुदाय में मेघवाल, सरगरा आदि जातियों में न्यात परंपरा का होना खर्चे को बढ़ाता है।
ऐसे में बड़ी बेटी-बेटा के साथ छोटी का विवाह कर देना खर्चा तो बचाता है। जाने अनजाने में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को बढ़ा कर अपराधी की श्रेणी में ला खड़ा कर देता है। विश्नोई समाज मे मौत के तीसरे दिन और बारहवें दिन बड़ा खाना 'न्यात' का रिवाज है, जिसमें भी शौक तोड़ने के साथ बालक बालिकाओं का विवाह (डोरे लेना देना प्रथा) कर दिया जाता है। इसकी वजह भी 'न्यात गंगा' के नाम से होने वाला धन खर्च प्रमुख वजह है। अब तक 40 बाल विवाह निरस्त करवाने वाली डॉ. कृति के अनुसार निरस्त होने वाले इन विवाहों में 90 फीसद से अधिक बाल विवाह मौसर के अवसर पर हुए थे।
जाति पंचायतों की दबंगई भी है महत्वपूर्ण वजह
देश के ग्रामीण अंचलों में जाति पंचायतों की दबंगई के चलते स्वयंभू जाति पंच मौसर और अन्य अवसरों पर बाल विवाह के लिए दबाव बनाते हैं। बाल विवाह करवाने से इन्कार करने और विवाह के बाद बाल विवाह निरस्त करवाने की कोशिशों पर तो अर्थदंड से लेकर जाति बाहर तक कर देती है। वहीं इनके खिलाफ हिम्मत जुटाने वाले परिवार और बालिका के पुर्नवास की राह भी आसान नहीं है।
जानें, किसने क्या कहा
बाल विवाह जैसे मामलों में सुरक्षित वातावरण प्रदान करना समाज की जिम्मेदारी है। हमें समाज को शिक्षित बनाना होगा, शिक्षा बदलाव का बड़ा माध्यम है।
संगीता बेनीवाल, अध्यक्ष, राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग
---
तमाम प्रयासों से बाल विवाह की संख्या में कमी तो आई है, लेकिन इसे पूरी तरह से रोका नहीं जा सका है। इस विषय पर समुदाय और सरकार के साझे प्रयास से ही हम राजस्थान को बाल विवाह मुक्त बना पाएंगे।
-वीना प्रधान, आयुक्त, बाल अधिकारिता विभाग, राजस्थान
---
कई फंडिंग एजेंसियां महज प्रचार पर फंड उपलब्ध करवाती है, निरस्त के लिए फंड नहीं दिया जाता है। बाल विवाह रोकथाम व निरस्त के लिए इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
-कृति भारती, मैनेजिंग ट्रस्टी, सारथी ट्रस्ट