प्रतापगढ़ के जंगल में मिला दुर्लभ जेलानिकस प्रजाति का गिरगिट, सुरक्षित छोड़ा
यूं तो प्रतापगढ़ का जंगल जैव विविधता से भर हुआ है जहां तरह-तरह के पादप तथा जीवों का बसेरा है। हाल ही यहां दुर्लभ जेलनिकस प्रजाति का गिरगिट देखा गया। जो हरे रंग तथा धब्बेदार होता हैं। गिरगिट को रामपुरिया के कणजीपानी जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया।
उदयपुर, संवाद सूत्र। प्रतापगढ़ जिले के जंगल में दुर्लभ जेलानिकस प्रजाति का गिरगिट देखा गया है। हरे और धब्बेदार रंग का यह गिरगिट मुख्यतया दक्षिणी भारत और श्रीलंका में पाया जाता है। ऐसा पहली बार हुआ है कि यह जीव राजस्थान में मिला है। इसको लेकर पर्यावरणविदों ने खुशी जताई है और संरक्षित रखे जाने का आग्रह किया है। गिरगिट को रामपुरिया के कणजीपानी जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया।
मिली जानकारी के अनुसार यूं तो प्रतापगढ़ का जंगल जैव विविधता से भर हुआ है, जहां तरह-तरह के पादप तथा जीवों का बसेरा है। हाल ही यहां दुर्लभ जेलनिकस प्रजाति का गिरगिट देखा गया। जो हरे रंग तथा धब्बेदार होता हैं। वनपाल लक्ष्मीनारायण मीणा और वन रक्षक दिग्विजयसिंह जब एक साथ गश्त पर थे। तब उन्होंने इस गिरगिट को देखा, जो धीरे-धीरे चल रहा था। पास जाकर देखा तो यह गिरगिट प्रजाति का जेलानिकस था। इसकी जीभ और पैर अन्य आम गिरगिटों की तुलना में ज्यादा बड़े होते हैं। जिसे बाद में रामपुरिया के कणजीपानी जंगल में छोड़ दिया गया।
उदयपुर के सेवानिवृत्त वन्यजीव अधिकारी डॉ.सतीश शर्मा बताते हैं कि प्रतापगढ़ का जंगल विविध दुर्लभ प्रजाति के जीवों तथा पौधों के लिए मशहूर है। जेलानिकस प्रजाति का गिरगिट आमतौर पर दक्षिणी भारत या कहिए दक्षिणी ऐशियाई देशों में ही मिलता है लेकिन इसके राजस्थान में मिलना साबित करता है कि प्रतापगढ़ के जंगल भी इसके आवास हैं। हरे और धब्बेदार रंग का यह गिरगिट मुख्यतया दक्षिणी भारत और श्रीलंका में पाया जाता है। ऐसा पहली बार हुआ है कि यह जीव राजस्थान में मिला है। धीरे-धीरे चलने वाला यह गिरगिट आम गिरगिट से अलग है। इसकी जीभ और पैर अन्य आम गिरगिटों की तुलना में ज्यादा बड़े होते हैं। जिसकी औसतलन लंबाई लगभग सात इंच होती है। यह गिरगिट भी रंग बदलता है लेकिन जेलानिकस प्रजाति आम गिरगिट की तरह पृष्ठभूमि का रंग नहीं चुन पाते।