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20वां साल, राजस्थान विधानसभा में फिर पूरे नहीं 200 विधायक, माननीयों को भूत का भय

राजस्थान विधानसभा भवन में पिछले 20 सालों से पूरे 200 विधायक कभी एक साथ नहीं बैठने का संयोग इस बार भी रहेगा। कभी विधायक की मौत हुई तो कभी कोई जेल गया तत्कालीन राष्ट्रपति भी बीमार होने के कारण नहीं कर सके थे उद्धाटन

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 10:58 AM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 10:58 AM (IST)
20वां साल, राजस्थान विधानसभा में फिर पूरे नहीं 200 विधायक, माननीयों को भूत का भय
राजस्थान विधानसभा भवन में 20 सालों से पूरे 200 विधायक कभी एक साथ नहीं

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान विधानसभा भवन में पिछले 20 सालों से पूरे 200 विधायक कभी एक साथ नहीं बैठने का संयोग इस बार भी रहेगा। कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी की मंगलवार को कोरोना से हुई मौत के बाद विधानसभा की एक सीट फिर खाली हो गई। अब सदन में 199 ही विधायक बैठ सकेंगे।

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पिछले साल दो विधायकों के लोकसभा चुनाव जीतने के कारण दो सीट खाली हुई थी, उस समय सदन की सदस्य संख्या 198 रह गई थी। पिछले दो दशक में कभी विधायकों की मौत के कारण तो कभी सदन की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण कभी 200 विधायक पांच साल तक विधानसभा में नहीं बैठे। तीन बार एेसा भी संयोग आया कि 4 विधायकों को जेल जाना पड़ा।

अब त्रिवेदी की मौत के बाद अगले छह माह में उप चुनाव होगा तो फिर 200 सदस्य संख्या पूरी होने के आसार है। 200 सदस्यीय विधानसभा पूरे सदस्य एक साथ पांच साल तक नहीं बैठने के संयोग को लेकर विधायकों में भय व्याप्त होता जा रहा है। पिछले दस साल से विधायक विधानसभा भवन की गंगाजल से शुद्धि कराने, हवन-पूजन कराने और वास्तु विशेषज्ञ की सलाह लेने की सलाह अध्यक्षों को देते रहे हैं। राज्य विधानसभा में विपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौड़ ने तो एक जांच कमेटी बनाने तक की बात कही है।

पिछली विधानसभा में जब तत्कालीन सरकारी मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर ने कहा था कि कई सालों से ऐसी चर्चाएं जोर पकड़ती रही कि भवन में भूत का साया है। उस समय गुर्जर ने तत्कालीन अध्यक्ष कैलाश मेघवाल से हवन-पूजन कराने की मांग की थी। गुर्जर आज भी अपनी मांग पर कायम है। पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान ने सभी 200 विधायकों के एक साथ नहीं बैठने का कारण भूतों को बताया था। अब भाजपा विधायक मदन दिलावर कहते हैं कि विधानसभा भवन में गंगाजल का छिड़काव होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि 25 फरवरी 2001 को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायणन को नये विधानसभा भवन का उद्धाटन करना था,लेकिन वे बीमार हो गए थे। बिना उद्धाटन के ही विधानसभा शुरू हुई थी।

 नये भवन में शिफ्टिंग के बाद से पूरे पांच साल नहीं बैठे सभी विधायक

साल, 2000 तक विधानसभा जयपुर के पुराने शहर में चलती थी। 2001 में ज्योतिनगर में नया भवन बनकर तैयार हुआ तो विधानसभा यहां शिफ्ट हो गई। नये भवन में शिफ्टिंग के बाद से चला आ रहा संयोग है कि पिछले 20 साल से एक साथ 200 विधायक पूरे पांच साल मौजूद भवन में नहीं बैठे। नये भवन में शिफ्टिंग के साथ ही तत्कालीन दो विधायकों भीमसेन चौधरी व भीखा भाई की मौत हो गई थी। 2002 में कांग्रेस विधायक किशन मोटवानी व 2002 में भाजपा विधायक जगत सिंह दायमा की मौत हो गई।

उसके बाद साल, 2004 में गहलोत सरकार के तत्कालीन मंत्री रामसिंह विश्नोई की मौत हो गई। 2005 में विधायक अरूण सिंह व 2006 में नाथूराम अहारी का निधन हो गया। 2008 से 20013 के सदन का कार्यकाल तो कई विधायकों के लिए अपशुकन भरा रहा। तत्कालीन भाजपा विधायक राजेंद्र राठौड़ दारा सिंह एनकाउंटर मामले में जेल गए तो तत्कालीन गहलोत सरकार के मंत्री महीपाल मदेरणा और विधायक प्रदेश के चर्चित भंवरी देव हत्याकांड में जेल गए।

गहलोत सरकार के एक और मंत्री बाबूलाल नागर दुष्कर्म के मामले में जेल गए। 2014 के आम चुनाव में 4 विधायकों सांसद बन जाने के कारण फिर सभी 200 विधायक सदन में एक साथ नहीं बैठे। उप चुनाव हुए और सभी 200 सीटें भरी तो बसपा के तत्कालीन विधायक बाबूलाल कुशवाह जेल चले गए। भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी,धर्मपाल चौधरी व कल्याण सिंह की मौत हो गई। इस बार 2018 में विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान रामगढ़ सीट पर बसपा प्रत्याशी की मौत हुई तो 199 सीटों पर ही चुनाव हुए। इस तरह जब विधानसभा का पहला सत्र शुरू हुआ तो 199 विधायक ही बैठे।

रामगढ़ सीट पर उप चुनाव होकर कांग्रेस की साफिया जुबैर विधानसभा में पहुंची तो राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल संसद में पहुुंच गए। इस तरह फिर 199 सीट रह गई। अब विधायक त्रिवेदी की मौत हो गई। पिछले दो दशक में 12 विधायकों की मौत हुई है।

यह रहा इतिहास

साल, 2000 में विधानसभा भवन का निर्माण हुआ, लेकिन निर्माण के समय आधा दर्जन मजदूरों की विभिन्न कारणों से मौत हो गई। पुराने विधायकों व स्थानीय लोगों का कहना है कि इस विधानसभा भवन के निर्माण के लिए मोक्षधाम की जमीन ली गई थी । 17 एकड़ में फैले इस भवन से करीब 200 मीटर दूरी पर अब भी मोक्षधाम है । पास में ही एक मजार भी है । 


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