अरावली की पहाडि़यां हुईं बाघविहीन, गहलोत सरकार ने उठाए बाघ पुनर्वास के लिए कदम
अरावली की पहाडि़यों और जंगलों में 1970 तक बाघ पाए जाते थे परंतु मानवीय दखल से जंगल सिमटने लगे और बाघ भी गायब हो गए।
सुभाष शर्मा, उदयपुर। अरावली की पहाडि़यों और जंगलों में 1970 तक बाघ पाए जाते थे, परंतु मानवीय दखल से जंगल सिमटने लगे और बाघ भी गायब हो गए। अब राज्य सरकार बाघ का पुनर्वास करने जा रही है, ऐसे में बाघ के साथ क्षेत्र में समृद्धि आएगी। इस तरह की बात अब कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के समीपवर्ती गांवों के लोगों तक पहुंचाई जा रही है। इसके लिए वन विभाग, वन्यजीव प्रेमियों तथा विशेषज्ञों की टीम अरावली तलहटी के गांवों में सक्रिय है।
सरकार की मंशा है बाघ के पुनर्वास, जंगल और वन्यजीवों का संरक्षण की
अरावली की तलहटी में पाली जिले के घाणेराव के पास गुड़ा भोपसिंह, माण्डीगढ़, घाणेराव, पिपाणा व कुंभलगढ़ आदि गांवों में वन विभाग राजसमंद और वन्यजीव प्रेमियों की टीमें ग्रामीण चौपाल आयोजित कर लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं। वे ग्रामीणों को बता रहे हैं कि सरकार की मंशा बाघ के पुनर्वास के साथ ही क्षेत्र में जंगल और वन्यजीवों का संरक्षण की है। इसके माध्यम से क्षेत्र में पर्यटन विकास हो। इससे ना केवल रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी और स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलने के साथ गांवों में समृद्धि आएगी।
कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य बाघ के लिये उपयुक्त क्षेत्र
इस टीम के सदस्य उदयपुर के पर्यावरणविद विनय दवे बताते हैं कि कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र बाघ के निवास के लिये बहुत ही उपयुक्त क्षेत्र हैं। अरावली से बाघ का नाता सदियों पुराना हैं। यहां के जंगलों में 1970 तक बाघ विचरण किया करता था। इस कार्य में पर्यावरणविद् डॉ. राम मेघवाल, वन्यजीव प्रेमी डॉ. कमलेश शर्मा, ऋतुराज सिंह राठौड़ और उत्कर्ष प्रजापति के अलावा वन विभाग के कार्मिकों में रुगाराम जाट और मोहर सिंह मीणा जुटे हुए हैं।
होम स्टे बनेगा आमदनी का जरिया
ऋतुराज सिंह राठौड़ बताते हैं कि इस क्षेत्र में बाघ पुनर्वास के बाद पर्यटन विकास की दृष्टि से कोई भी ग्रामीण अपने घर में एक या दो कमरों को होम स्टे के रूप में पंजीकृत करवा सकता है। इस रूप में ग्रामीणों को प्रतिमाह 10 से भी 20 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त हो सकेगी। इसके लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया बाघों के पुनर्वास के बाद ही शुरू की जाएगी।