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Rajasthan: कचरे को बनाएं आर्थिक संपदा, कचरे में है सोनाः डॉ. रविंद्र मुखोपाध्याय

Gold In Waste. डॉ. रविंद्र मुखोपाध्याय नाकारा हो चुके दुपहिया और चार पहिया वाहनों से प्रतिवर्ष अस्सी लाख टन स्टील निकाला जा सकता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 01:59 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 01:59 PM (IST)
Rajasthan: कचरे को बनाएं आर्थिक संपदा, कचरे में है सोनाः डॉ. रविंद्र मुखोपाध्याय
Rajasthan: कचरे को बनाएं आर्थिक संपदा, कचरे में है सोनाः डॉ. रविंद्र मुखोपाध्याय

उदयपुर, सुभाष शर्मा। Gold In Waste. सोने की खदान के एक टन अयस्क से केवल डेढ़ ग्राम सोने की प्राप्ति होती है। एक टन मोबाइल कचरे से डेढ़ किलो सोना प्राप्त हो सकता है। इसी तरह लैपटॉप, कंप्यूटर, एलसीडी इत्यादि के एक टन ई-वेस्ट से साढ़े छह सौ ग्राम सोने को प्राप्त किया जा सकता है। यहां तक वाशिंग मशीन के कचरे में भी सोना होता है। यह कहना है इंडियन रबर इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष और देश के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रविंद्र मुखोपाध्याय का। वह विद्या भवन में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने उदयपुर आए थे।

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उन्होंने बताया कि देश में पैदा हो रहा कचरा और गंदगी एक तरह की संपदा है। इसके सही प्रबंधन, उपचार से पर्यावरण सुधरेगा एवं देश की आर्थिक स्थिति मजबूत बनेगी। अपशिष्ट (वेस्ट) के निस्तारण और उपचार के पांच आयामों रीडयूस, रीयूज, री-साइकिल, रीन्यू, रीफ्यूज से पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ मिलता है। उन्होंने कहा कि नाकारा हो चुके दुपहिया और चार पहिया वाहनों से प्रतिवर्ष अस्सी लाख टन स्टील निकाला जा सकता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि एपल कंपनी ने अपने नाकारा और पुराने उत्पादों से पांच हजार लाख अमेरिकन डॉलर मूल्य का सोना और अन्य धातुएं प्राप्त कर लीं। यह उदहारण साबित करता है कि भारत में भी कचरे के सही प्रबंधन से संपदा का निर्माण हो सकता है। इसके लिए व्यापक जनजागृति की जरूरत है। कचरे के प्रबंधन में नागरिक सहभागिता को मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने वेस्ट मेनेजमेंट के क्षेत्र में स्किल प्रशिक्षण की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इससे कचरे का लाभदायक उपयोग होना तो सुनिश्चित होगा, उसके साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

प्लास्टिक थैलियां छोड़ें, स्टार्च से बनाएं थैली

डॉ. मुखोपाध्याय ने कहा कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए जरूरी है कि प्लास्टिक थैलियां का परित्याग आम नागरिक करना शुरू करें। आम व्यक्ति जब इनसे दूरी बनाने लगेगा तो यह अपने आप बाजार से गायब हो जाएंगी। उन्होंने प्लास्टिक थैली की जगह स्टार्च से बनी थैलियां को बेहतर विकल्प बताया। उनका कहना है कि स्टार्च से बनी थैली बायो डीग्रेडेबल होती हैं। साथ ही, यह दिखने और मजबूती में पॉलीथिन से बेहतर होती हैं।

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