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दुनिया के चार सबसे जहरीले सांप मिलते हैं यहां, मानसून में बढ़ जाती हैं सर्पदंश की घटनाएं

मानसून आते ही सांप बिलों से निकलने लगते हैं। लोगों के रोंगटे खड़े कर देने वाले सांपों में से 90 फीसदी सामान्य होते हैं यानी केवल दस फीसदी ही सांप विषैले होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 03 Jul 2019 02:40 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2019 02:40 PM (IST)
दुनिया के चार सबसे जहरीले सांप मिलते हैं यहां, मानसून में बढ़ जाती हैं सर्पदंश की घटनाएं
दुनिया के चार सबसे जहरीले सांप मिलते हैं यहां, मानसून में बढ़ जाती हैं सर्पदंश की घटनाएं

उदयपुर, संवाद सूत्र । मानसून आते ही सांप बिलों से निकलने लगते हैं। लोगों के रोंगटे खड़े कर देने वाले सांपों में से 90 फीसदी सामान्य होते हैं यानी केवल दस फीसदी ही सांप विषैले होते हैं। जहरीले सांपों के लिए पहचानी जाने वाली जगहों में राजस्थान का मेवाड़ क्षेत्र भी शामिल है। यहां दुनिया के सबसे विषैले माने जाने वाले दस सांपों में से चार प्रजातियां पाई जाती हैं। यही कारण है कि समूचे राजस्थान में सर्पदंश से होने वाली मौतों में से तीस फीसदी मेवाड़ से हैं।

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मेवाड़ में पाई जाने वाली सबसे जहरीली प्रजातियों में कॉमन क्रेट, रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर तथा इंडियन कोबरा शामिल हैं। एक आकलन के अनुसार राजस्थान में हर साल दो हजार से अधिक लोगों की मौत सर्पदंश से होती है। जिनमें सात सौ से अधिक लोगों की मौत अकेले मेवाड़ क्षेत्र में होती है।

पिछले ढाई दशक से हजारों सांपों को पकड़ने वाले एनिमल रेस्क्यू टीम के मुखिया चमनसिंह का कहना है कि उदयपुर में ही नहीं, बल्कि समूचे राजस्थान में विषैले सांपों की छह प्रजातियां रहती हैं। इनमें दो प्रजातियां रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती हैं, जबकि उदयपुर- मेवाड़ में आमतौर पर चार प्रजातियां ही देखी गई हैं। इनके लिए यहां की धरती अनुकूल जगह है। इस इलाके में पाए जाने विषैले सांपों में सबसे खतरनाक इंडियन कोबरा है जिसे आमतौर पर नाग भी कहा जाता है।

चमनसिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने करियर में एक भी मामला ऐसा नहीं देखा जब कोबरा सांप ने किसी को काटा हो। आज से दो दशक पहले तक खेतों में ही पाए जाने वाले सांप रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के काटने से अधिकांश मौतें हुई हैं।

हालांकि सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या पर काबू पाया जा सकता है। आदिवासी इलाकों में आधे से अधिक मामलों में लोग सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को तत्काल अस्पताल ले जाने की बजाय भोपे (ओझा) के पास ले जाते हैं अथवा अपनी मान्यताओं के अनुसार ही देसी उपचार में लगे रहते हैं और पीड़ित की मौत हो जाती है।

चमनसिंह बताते हैं कि उदयपुर में पाई जाने वाले सांपों की चारों विषैली प्रजातियां जंगल में ही पाई जाती हैं लेकिन अब ये आबादी वाले इलाकों में भी मिलती हैं। उनका कहना है कि सांपों ने अपनी जगह नहीं बदली है। व्यक्ति उनके घरों के पास पहुंच चुके हैं। रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर आमतौर पर बेहद छोटे सांप होते हैं और यह खेतों की मेड़ या पत्थर की बनी चारदीवारी में ही रहते हैं। खेत सिमटने के साथ वहां कॉलोनियां बसने लगी और सांप अपने-आप आबादी क्षेत्र में शामिल हो गए। इसी तरह कॉमन क्रेट तथा इंडियन कोबरा सांप भी आमतौर पर जंगल में पाया जाता है। इसके अलावा उदयपुर में रेट स्नेक, वूल्फ स्नेक, ट्रिंकेट, चेकड प्रजातियां भी पाई जाती हैं लेकिन ये सभी बिना जहर वाले

हैं।

हर रोज पकड़ते हैं आठ से दस सांप

सांप पकड़ने वालों की मानें तो मानसून से पहले सांपों को लेकर हर दिन 15-20 शिकायतें मिल रही हैं। इनमें से 8-10 सांप रोजाना पकड़कर जंगलों में छोड़े जाते हैं। जनवरी से लेकर अभी तक 300 से अधिक सर्पदंश के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से साठ से अधिक मामले जून महीने के हैं। जुलाई और अगस्त में भी सर्पदंश के मामले सर्वाधिक आते हैं।

वर्जन

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और इनसे बड़े सभी अस्पतालों में एंटी स्नैक वेनम इंजेक्शन निशुल्क में उपलब्ध हैं। सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को तत्काल अस्पताल लाया जाए तो उसे बचा पाना संभव है।

-डॉ. दिनेश खराड़ी, मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी, उदयपुर (राजस्थान) 


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