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पिता की शहादत की शहादत के एक साल भीतर बेटे ने भी दी थी कुर्बानी

यह पंक्तियां गांव दारापुर के शहीद मनजिंदरपाल सिंह की कुर्बानी पर सटीक बैठती हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 11:25 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 06:13 AM (IST)
पिता की शहादत की शहादत के एक साल भीतर बेटे ने भी दी थी कुर्बानी
पिता की शहादत की शहादत के एक साल भीतर बेटे ने भी दी थी कुर्बानी

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : लहराएगा तिरंगा अब सारे आसमान पर, भारत का नाम होगा सबकी जुबान पर, लें लेंगे उसकी जान या दे देंगे अपनी जान, कोई जो उठाएगा आंख हमारे हिदुस्तान पर.. यह पंक्तियां गांव दारापुर के शहीद मनजिंदरपाल सिंह की कुर्बानी पर सटीक बैठती हैं। उन्होंने कारगिल की लड़ाई में अपने प्राणों की उसी तरह आहूति दी थी, जिस तरह एक वर्ष पहले उसके पिता सूबेदार अमरीक सिंह ने आतंकियों से मुकाबला करते हुए दी थी।

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खडूर साहिब के गांव दारापुर की आबादी 1500 के करीब है। गांव के निवासी सूबेदार अमरीक सिंह भारतीय सेना में पांच सिख रेजीमेंट में जब जम्मू-कश्मीर में तैनात थे तो 10 मई 1998 को आतंकियों के साथ लोहा लेते सूबेदार अमरीक सिंह ने अन्य जवानों के साथ शहादत का जाम पीया था।

सूबेदार अमरीक सिंह की शहादत के बाद उनकी पत्नी गुरमीत कौर ने अपने बड़े लड़के मनजिंदरपाल सिंह को सेना में भेजने का फैसला किया। अभी मनजिंदरपाल सिंह को सेना में गए वर्ष भी नहीं हुआ था कि कारगिल की चोटियों पर दुश्मन मुल्क की सेना को लोहे के चने चबाते मनजिंदरपाल सिंह ने (9 सितंबर 1999) शहादत का जाम पिया। उस समय मां गुरमीत कौर अपने लाल के माथे पर शगुन का सेहरा देखने की तैयारी कर रही थी।

मनजिंदरपाल सिंह के छोटे भाई हरपाल सिंह ने बताया कि पहले पिता और फिर भाई ने देश के लिए शहादत दी, लेकिन दुख की बात यह है कि शहीद मनजिंदरपाल सिंह का जिस पंचायती जगह पर अंतिम संस्कार किया गया, वहां पर बनाई गई यादगार को जाने वाला रास्ता अभी तक नहीं बनाया गया है। गांव में शहीद के नाम ना तो स्वागती गेट बना है और ना ही स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा है। हरपाल सिंह की पत्नी कवलप्रीत कौर अपने बच्चे सनताज सिंह, बनताज सिंह, सुखमनदीप कौर को उनके ताया और दादा की शहादत के किस्से सुनाती रहती है। अब 14 वर्षीय सनताज सिंह अपने ताया की तरह फौजी वर्दी पहनने के लिए बेताब है।

पिता की तरह सेना में जाने की तैयारी कर रहा है निशान सिंह

27 जून 1999 की शाम को गांव कंग निवासी कुलवंत कौर की गोद में ढाई वर्ष का जब निशान सिंह खेल रहा था तो खबर आई कि इस परिवार के हिस्से बड़ी कुर्बानी आई है। उस समय कुलवंत कौर के पति कुलदीप सिंह ने कारगिल की चोटियों पर शहादत का जा पी लिया था। कुलदीप सिंह (9 सिखलाई रेजीमेंट) की बरसी मौके कुलवंत कौर अपने इकलौते लड़के निशान सिंह को मेडल दिखाकर उसे सैनिक बनने लिए तैयार कर रही है। परिवार को इस बात का रंज है कि गांव के स्कूल में बनाई गई यादगार पर किसी भी नेता या प्रशासनिक अधिकारी ने समय निकालकर दो फूल कभी नहीं चढ़ाए।

नायब सूबेदार करनैल सिंह को शहादत के बाद मिला था वीर चक्र

आठ सिख रेंजमेंट में 17 वर्ष सेवाएं देने वाले नायब सूबेदार करनैल सिंह की शहादत को भुलाना बहुत मुश्किल है कारगिल की चोटियों पर छह जुलाई 1999 पाकिस्तानी फौज के कई सैनिकों को मारने के बाद शहादत का जाम पीने वाले नायब सूबेदार करनैल सिंह को मरणोप्रांत वीर चक्र से नवाजा गया था। गांव राणीवलाह निवासी करनैल सिंह का विवाह कस्बा रइया के गांव घग्गा निवासी रंजीत कौर के साथ हुआ था। कस्बा चोहला साहिब में रंजीत कौर गैस एजेंसी चलाती है। उनके साथ बड़ा लड़का गुरप्रीत सिंह होता है। जबकि छोटा लड़का यादविंदर सिंह कानून की पढ़ाई कर रहा है। रंजीत कौर ने बताया कि कारगिल शहीद की पत्नी होने का गर्व तो है, परंतु दुख इस बात का है कि 20 वर्ष गुजर जाने के बावजूद ना तो गांव में स्वागती गेट बना और ना ही सरकारी स्कूल का नाम शहीद के नाम से जोड़ा गया। रंजीत कौर कहती है कि जब भी गांव राणीवलाह की नई पंचायत बनती है तो उनको शहीद को मिला वीर चक्र दिखाकर कुर्बानी याद दिलाती है, परंतु सुनवाई नहीं हुई।


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