1965 के जंग के हीरो वीर अब्दुल हमीद को दी श्रद्धांजलि
शहीद की यादगार पर दो फूल चढ़ाने भी मुनासिब नहीं समझे। हालांकि गांव की पंचायत ने शहीद की यादगार पर चादर चढ़ाने की रस्म पूरी की।
जागरण संवाददाता, खेमकरण : 1965 की जंग में पाकिस्तान को लोहे के चने चबाने वाले भारतीय सेना के हवलदार शहीद वीर अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि भेंट करने लिए न तो हलका विधायक सुखपाल सिंह भुल्लर पहुंचे और न ही डीसी कुलवंत सिंह धूरी ने समय निकाला। कोरोना महामारी के चलते प्रशासन ने गांव आसल उताड़ में शहीद की यादगार पर दो फूल चढ़ाने भी मुनासिब नहीं समझे। हालांकि गांव की पंचायत ने शहीद की यादगार पर चादर चढ़ाने की रस्म पूरी की।
भारतीय सेना की चार ग्रेनेडियर रेंजीमेंट की अग्रिम पंक्ति में तैनात हवलदार वीर अब्दुल हमीद ने 1965 की जंग में पाक को लोहे के चने चबाते हुए अपनी गन माउंटेड जीप से 170 टन वजनी सात पैंटन उखाड़कर भारतीय फौज का परचम फहराया था। नौ सितंबर को टैंक का एक गोला लगने से उन्होंने शहादत का जाम पिया था। इसकी अधिकारित तौर पर घोषणा 10 सितंबर को करते हुए शहीद का पार्थिव शरीर उत्तर प्रदेश के गांव धामूपुर (गाजीपुर क्षेत्र) में पहुंचाया गया था। शहीद का यादगार पर हर वर्ष मेला लगता था, परंतु इस बार कोरोना महामारी के चलते बहुत ही सादा कार्यक्रम रखा गया। गांव के सरपंच तरलोचन सिंह, मार्केट कमेटी के चेयरमैन अमृतबीर सिंह बिट्टू, पूर्व चेयरमैन सुरिदर सिंह आसल, हरभजन सिंह, गुरविंदर सिंह, लक्ष्मण सिह, महिदर सिंह, कुलवंत सिंह, गुरप्रीत सिंह, सकत्तर सिंह ने शहीद अब्दुल हमीद की यादगार पर चादर चढ़ाकर उन्हें याद किया।
पूर्व सैनिकों ने भी किया याद
1965 की जंग लड़ने वाले सेवानिवृत्त कैप्टन धर्मपाल सिंह, कैप्टन दया सिंह, कैप्टन कुलवंत सिंह, कैप्टन गुरमीत सिंह ने शहीद अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि भेंट करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के चलते भले ही इस बार पहले की तरह कार्यक्रम नहीं किया गया, परंतु 1965 की जंग के हीरो को सदा याद रखा जाएगा।