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'फौजियां दा पिंड' के नाम से जाना जाता है गांव पंडोरी सिध्वां

तरनतारन जिले के गांव पंडोरी सिध्वां ने अपना नाम इस कदर रोशन किया है कि इस गांव को लोग फौजियां दा पिंड कहने लगे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 12:39 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 06:10 AM (IST)
'फौजियां दा पिंड' के नाम से जाना जाता है गांव पंडोरी सिध्वां
'फौजियां दा पिंड' के नाम से जाना जाता है गांव पंडोरी सिध्वां

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : देश की सीमाओं पर तैनाती का जिक्र हो या फिर फौज की बहादुरी का। तरनतारन जिले के गांव पंडोरी सिध्वां ने अपना नाम इस कदर रोशन किया है कि इस गांव को लोग 'फौजियां दा पिंड' कहने लगे हैं। जी हां.. कहें भी क्यू ना, इस गांव के युवाओं में देश सेवा का जजबा इस कदर है कि पीढ़ी दर पीढ़ी युवक फौजी बन रहे हैं।

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विधानसभा हलका तरनतारन के गांव पंडोरी सिधवा की आबादी लगभग 2500 है। यहां के करीब 200 से अधिक युवा सेना में तैनात हैं। कारगिल की चोटियों पर शहादत का जाम पीने वाले जवानों के बच्चे भी इसी जज्बे से लबरेज होकर देश की सेवा कर रहे हैं।

बुंट्टर परिवार है देश सेवा को समर्पित

यहां बुंट्टर परिवार का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है। बीएसएफ में तैनात जवान सतवंत सिंह 1972 में ड्यूटी के दौरान इस दुनिया को अलविदा कह गया था। सतवंत सिंह की मौत के बारे में उनकी पत्नी जसबीर कौर गर्भवती थी। जसबीर कौर ने बेटे परमजीत सिंह को जन्म देकर उसे भी बीएसएफ में भर्ती करवाने का सपना लिया। मां का सपना पूरा करते हुए परमजीत सिंह बीएसएफ में तैनात हो गया। दुर्भाग्य से 27 दिसंबर 2013 को परमजीत सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई। उसका शव जब गांव लाया गया तो सुहागन से विधवा हुई कर्मजीत कौर ने अपने परिवारिक जज्बे को आगे ले जाना बेहतर समझा। पति की जगह बीएसएफ में कर्मजीत कौर को 2015 में भर्ती कर लिया गया। कर्मजीत कौर अब हरियाणा में सेवाएं दे रही है। कर्मजीत कौर की सास जसबीर कौर ने दैनिक जागरण को बताया कि उनका परिवार देश सेवा को समर्पित है।

दोनों जुड़वा भाई एक साथ हुए सेना में भर्ती

किसान सुखदेव सिंह के पास अधिक जमीन नहीं थी। वह खेती से परिवार का गुजारा चलता है। सुखदेव सिंह के दो जुड़वा बेटे निशान सिंह और गुरदित्त सिंह हैं। यह दोनों भाई अपने गांव के उन सैनिकों के बच्चों से खेला कूदा करते थे, जो फौज में भर्ती हो गए। गांव के युवाओं का फौज में जाने का जज्बा इन दोनों जुड़वा भाइयों के मन में पूरी तरह बैठ गया। दोनों ने कड़ी मेहनत की। नतीजा यह निकला कि निशान सिंह और गुरदित्त सिंह दोनो एक साथ फौज में भर्ती हो गए। यह दोनों फौज की ट्रेनिंग कर रहे हैं। मां बलविंदर कौर का कहना है दोनों जुड़वा लड़कों को फौजी बनाकर खुश है। यह भी है पीढ़ी दर पीढ़ी सैनिक

कारगिल की चोटियों पर शहादत का जाम पीने वाले सैनिक दलजीत सिंह का लड़का कुलदीप सिंह भारतीय फौज में सैनिक है। कुलदीप सिंह ने सेना में जाने की जिद्द नहीं की थी। बल्कि गांव में एक ऐसी परंपरा बन चुकी है कि बड़े होकर सेना में ही जाना है। फौज से सेवामुक्त सूबेदार गुरमीत सिंह का लड़का बलजिंदर सिंह भी सैनिक है। पूर्व सैनिक अमरजीत सिंह का लड़का मनजिंदर सिंह भी सैनिक है। महिला परमजीत कौर बताती है कि उसके ससुर मंगत सिंह सेना में थे। जिसके बाद जेठ सेवा सिंह सैनिक बने और परमजीत कौर के पति दलबीर सिंह भी फौजी बन गए। कारगिल की जंग में सैनिक कश्मीर सिंह ने जब अपने प्राणों की आहूति दी थी तो उस समय उनका लडका दलजीत सिंह भी सेना में था। गांव देश के लिए है रोल मॉडल : सांसद डिंपा

खडूर साहिब हलके के सांसद जसबीर सिंह डिंपा का कहना है कि पूरा गांव देश को समर्पित हो। यह बहादुरी की मिसाल है। यह गांव पंजाब में ही नहीं बल्कि देश के लिए रोल मॉडल है। इस गांव को मैं सलाम करता करता हूं। मेरा प्रयास है कि तरनतारन के युवा फौज में देश की सेवा करें, जिसके लिए सैनिक ट्रेनिंग सेंटर बनाने लिए सरकार द्वारा मंजूरी दी जा रही है। वह दिन दूर नहीं, जब गांव पंडोरी सिध्वां की तरह ओर गांवों के युवक भी सैना में जाएंगे।


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