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पठानों के बसाए गांव कोट मोहम्मद खां के वर्षों से सभी 26 कुएं पानी से प्यासे

1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो टकसाली अकाली जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ के गांव के पड़ोस में पठानों ने एक गांव बसा लिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 05:35 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 05:35 PM (IST)
पठानों के बसाए गांव कोट मोहम्मद खां के वर्षों से सभी 26 कुएं पानी से प्यासे
पठानों के बसाए गांव कोट मोहम्मद खां के वर्षों से सभी 26 कुएं पानी से प्यासे

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो टकसाली अकाली जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ के गांव के पड़ोस में पठानों ने एक गांव बसा लिया। यह गांव चौधरी मुहम्मद खां ने बसाया जिसे अब गांव कोट मुहम्मद खां के नाम से जाना जाता है। इस गांव में पठानों द्वारा खुदवाया गया कुआं अब नजर नहीं आता और न ही बाकी के दो दर्जन कुएं अपना वजूद बचा पाएं हैं।

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कुश्ती के क्षेत्र में नाम कमाने वाले पहलवानों के गांव शेरों से लिंक रोड पर बसे गांव कोट मुहम्मद खां की आबादी 3 हजार से ऊपर है। इस गांव का कुल रकबा 1480 एकड़ है। जिसमें से 1226 एकड़ जमीन उपजाऊ है। इस गांव में कृषि के लिए किसानों द्वारा 62 ट्यूबवेल लगाए गए हैं। गांव तुड़ की तरफ खेतों में सबसे पहले पठानों ने 10 फीट चौड़ा, 60 फीट गहरा कुआं खुदवाया था। यह कुआं अब कहां है, इसका कोई नामो निशान नजर नहीं आता। यह गांव वहीं है जहां पर देश के उप-राष्ट्रपति रहे श्री कृष्णकांत खेल कूद कर बड़े हुए थे। श्री कृष्णकांत के देहांत के बाद अब उनका परिवार दिल्ली में रहता है। गांव में उनकी पुश्तैनी हवेली है। जिसके पास एक कुआं होता था। इस कुएं से गांव के पठान और ब्राह्मण परिवार एक साथ पानी भरा करते थे। चक्क माहिर की और खेतों में जो बड़ा कुआं कृषि के काम आता था। उसका वजूद आतंकवाद के दौर में समाप्त हो गया। गांव चब्बा, फैलोके गांवों की तरफ कई कुएं थे। बुजुर्गों मेवा सिंह, फग्गण सिंह, सितारा सिंह व बुध सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि गांव कोट मुहम्मद खां के चारों ओर कुल 26 कुएं थे। गांव के केंद्र में हल्टों वाला कुआं होता था। इस कुएं पर रोज शाम को मेले वाला माहौल होता था। गिर रहे भूजल स्तर का असर इस गांव पर इतना पड़ा कि 15 वर्ष के दौरान सभी कुएं पानी से प्यासे हो गए। अब इन कुओं में ग्रामीणों द्वारा कूड़ा फेंक दिया जाता है। न रहे कुएं, न रहा पानी

पूर्व सूबेदार बूटा सिंह कहते हैं कि देश की आजादी के बाद गांव को पठानों ने बसाया था। पहले यह सारी जगह खेत-खलियान थी। गांव बसते ही पानी के कुएं खुदवाए गए क्योंकि उस समय पीने वाले पानी का और कोई प्रबंध नहीं था। अब गिर रहे भूजल स्तर का इतना बुरा असर पड़ा कि कुएं नहीं रहे।

कुएं पर लगता था शाम को मेला

पंडित हरि चंद बताते हैं कि देश के उप राष्ट्रपति बन कर गांव कोट मुहम्मद खां का नाम दुनिया के नक्शे में लाने वाले श्री कृष्णकांत के परिजन भी ऊच्चे कुएं से पानी भरा करते थे। कुएं के एक तरफ कपड़े धोने के लिए सिल लगी होती थी। शाम को इस कुएं पर मेले जैसा माहौल होता था जो अब सपना बन गया है। सौगात की तरह संभाले जाएं कुएं

ब्लॉक समिति के पूर्व चेयरमैन बलदेव सिंह कोट कहते हैं कि गांव के अधिक लोग कृषि पर आधारित हैं। कृषि अब आसान नहीं रही क्योंकि धरती का पानी लगातार सूख रहा है। जिसको बचाने लिए समय की सरकारों द्वारा कोई भी गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। उन्होंने कहा कि पुरातन कुओं को सौगात के तौर पर संभाला जाए। युवा पीढ़ी ने नहीं की कुओं की कदर डॉ. जज शर्मा कहते हैं कि पुरातन समय में पीने वाले पानी के जब अधिक प्रबंध नहीं होते थे तो कुओं की कदर होती थी। जमाना हाइटैक होते ही युवा पीढ़ी कुओं को भूल बैठी। अब हालात ऐसे हैं कि कहीं भी पुरातन कुओं में पानी नहीं रहा। अगर कोई कुआं नजर आता है तो वर्षों से पानी से मोहताज है।


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