चोहला साहिब में थे एक दर्जन कुएं, सिर्फ एक का ही वजूद बचा
सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने सिखी के प्रचार के लिए चोहला साहिब को बसाया था। इस नगरी में अब आबादी 20 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है।
धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने सिखी के प्रचार के लिए चोहला साहिब को बसाया था। इस नगरी में अब आबादी 20 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। इस नगरी में एक दर्जन पुरातन कुएं थे जो अब अपना वजूद खो चुके हैं। गांव के गुरुद्वारा साहिब में एक कुआं ऐसा है जिसका वजूद अभी भी बचा हुआ है और वर्ष में एक दिन इस कुएं से पानी निकाला जाता है।
विधान सभा हलका खडूर साहिब का केंद्र माने जाते चोहला साहिब में बाग में एक कुआं होता था। अब न तो बाग का नामो निशान है और न ही कहीं कुआं दिखता है। यहां पर अब खेल स्टेडियम है जो बरसात के दौरान पानी से भरता है तो लोगों को पुरातन कुएं की याद आती है। छत्ती ड्योढ़ी में एक कुआं होता था जो 80 फीट गहरा था। इस कुएं का पानी कृषि के लिए भी प्रयोग किया जाता था। गांव रुड़ीवाला के मोड़ पर एक बड़ा कुआं होता था जो आतंकवाद के दौर समय वीरान हो गया था। देखते ही देखते इस कुएं में लोग फालतू सामान और पत्थर फेंकने लगे। अब यह कुआं पानी को तो तरसा ही रहा है साथ ही कूड़े कर्कट से भर रहा है। चोहला साहिब के पंचायत घर के समीप 100 फीट गहरा कुआं होता था। इस कुएं का पानी पेट रोग के लिए वरदान साबित होता था। कहते थे कि किसी साधु के श्राप के कारण यह कुआं पानी से सूख गया। ग्रामीणों द्वारा निशानी के तौर पर इस कुएं को संभाला गया है। पश्चिम की तरफ खेतों में एक बड़ा कुआं होता था। इस कुएं से पानी लेने के लिए आस-पास गांवों के लोग यहां आते थे।
ग्रामीण सेवा सिंह, चमन सिंह, कपूर सिंह बताते हैं कि इस कुएं के पास काफी समय पहले पंचायत लगती थी। गांवों के फैसले करवाते समय पंचायत द्वारा पानी की महत्ता पर रौशनी डालते हुए इस कुएं का पानी पिलाकर दोनों पक्षों को शांत कर दिया जाता था। श्री गुरु अर्जुन देव जी की याद में बनाए गए गुरुद्वारा पातशाही पांचवीं के पास एक कुआं अभी भी है। ग्रामीणों की ओर से पुरातन रीति को कायम रखते हुए कुएं में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है। बैसाखी के मौके इस कुएं पर खेल मेला लगता है। मेले मौके कुएं पर लगी हल्टों से पानी निकाल कर ग्रामीणों व मेले में आए लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
दुख है नही संभाल पाए कुएं
ग्रामीण शिंगारा सिंह कहते हैं कि कुदरती स्रोत माने जाते कुओं को ना बचा पाने का बहुत अफसोस है। हमें आने वाली पीढ़ी जब पुरातन कुओं के बारे में पूछेगी तो हमारे पास कोई जवाब नही होगा। हमें अपना भविष्य संवारने के लिए धरती के पानी को बचाना होगा।
वरदान था कुओं का पानी
पूर्व मेंबर पंचायत सूरता सिंह कहते हैं कि पुरातन कुओं का पानी कई बीमारियों से मुक्त रखता था। अब कुएं नहीं रहे तो बीमारियां बढ़ रही हैं। हमें चाहिए कि जो कुएं बाकी बचे हैं उनकी सेवा संभाल का जिम्मा उठाया जाए ताकि पुरातन विरसे क ो बचाया जा सके।
गांवों के चारों तरफ थे कुएं
गांव के युवक दिलबाग सिंह संधू कहते हैं कि पूर्व समय में गांव के चारों तरफ कुएं होते थे। यह कुएं आपसी सांझ को बढ़ाते थे। अब कुएं नही रहे तो लोगों का आपस में स्नेह भी नही रहा। हमें चाहिए कि उन चीजों को बचाएं जो हमें पुरातन विरसा याद दिलाती है। स्कूलों में मिले कुओं का ज्ञान
ग्रामीण बब्बी सिंह भिखी कहते हैं कि जो कुएं हम बचा नहीं पाए उनका मौखिक तौर पर दुख करना हमारे लिए ठीक नहीं। चाहिए तो यह है कि कुदरती स्रोत माने जाते धरती के पानी को बचाने के लिए प्रयास किए जाएं। किसानों को चाहिए कि वह फसली चक्र से निकल कर धरती का पानी बचाने के लिए पहलकदमी करें।