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शेर शाह सूरी मार्ग पर बसे फतेहाबाद में होते थे 8 कुएं थे, आज वजूद खत्म

1550 से पहले इस गांव को बजाजां वाला के नाम से जाना जाता था। उसे अब कस्बा फतेहाबाद का नाम दिया जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 05:06 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 05:06 PM (IST)
शेर शाह सूरी मार्ग पर बसे फतेहाबाद में होते थे 8 कुएं थे, आज वजूद खत्म
शेर शाह सूरी मार्ग पर बसे फतेहाबाद में होते थे 8 कुएं थे, आज वजूद खत्म

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : 1550 से पहले इस गांव को बजाजां वाला के नाम से जाना जाता था। उसे अब कस्बा फतेहाबाद का नाम दिया जाता है। मुगलकाल के समय यह गांव किले का रूप होता था। समय में आए बदलाव के चलते यहा किले धवस्त हो गए। वहीं पुरातन 8 कुओं का भी नामोनिशान मिट गया।

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अटारी-कपूरथला मार्ग पर बसे कस्बा फतेहाबाद की आबादी 20 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। यह कस्बा विधानसभा हलका खडूर साहिब का केंद्र माना जाता है। शेर शाह सूरी ने फतेहाबाद को किले के रूप में विकसित किया था। दिल्ली से लाहौर जाते समय शेर शाह सूरी यहां पर रुका करते थे। इस कस्बे में कुल 8 कुएं होते थे। समय में आए बदलाव के साथ अब यहां पर एक भी कुआं बाकी नहीं बचा। लोगों द्वारा अपनी दुकानें और घरों को नए जमाने की तरह बनाते हुए नानकशाही ईटों से बने कुओं को दरकिनार कर दिया था। मुहल्ला बाविया वाला में एक कुआं होता था। जबकि बेरी के नीचे वाले कुएं को बेरियां वाला कुआं कहा जाता था। एक अन्य कुएं वाली जगह पर अब गुरुद्वारा नानक पड़ाव बनाया गया। जबकि शेखों के मुहल्ले वाले कुएं का पानी 15 वर्ष पहले खत्म हो गया था। कर्म शाह दातेवाल वाला कुआं आतंकवाद के दौर से पहले लोगों की प्यास बुझाता था। यह कुआं गांव के बाहरवार होता था। यहां पर अब लड़कियों का सीनियर सेकेंडरी स्कूल है। ग्रामीण मंगल सिंह, कारज सिंह, सज्जन सिंह व बुद्ध सिंह बताते हैं कि गांव में एक ऐसा कुआं था जिस पर लोहे की घंटी बंधी होती थी। यह घंटी ग्रामीणों को दिन में समय बताने के लिए बजाई जाती थी। इस कुएं को खड़ैल वाला कुआं कहा जाता था। जो 80 के दशक में अपना वजूद गंवा बैठा। इस कुएं के पास पीपल का पेड़ अब भी दिखाई देता है परंतु कुएं का कुछ हिस्सा ही बाकी बचा है। कुओं पर कभी लगते थे मेले

मास्टर पुरषोत्तम सिंह कहते हैं कि हमारे जमाने में कुदरती स्रोत माने जाते कुओं की बहुत महत्ता होती थी। कुओं पर अक्सर मेले लगते थे। समय में आए बदलाव के दौरान कुएं अब सपना बनकर रह गए हैं।

आपदा आने का डर बरकरार

विकास मंच पंजाब के अध्यक्ष डॉ. कश्मीर सिंह सोहल कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से जागरूक न होने कारण अब पानी के लाले पड़ रहे हैं। प्राकृतिक संसाधन जब बंद हो जाते हैं तो कोई आपदा आने का डर बन जाता है।

अब भी जला रहे हैं नाड़ और पराली

तर्कशील सोसायटी माझा जोन के अध्यक्ष मुखविंदर सिंह चोहला कहते हैं कि अपनी जरूरत और शौक को पूरा करने लिए मनुष्य ने पानी का दुरुपयोग किया है। अब हालात ऐसे हैं कि खेतों में नाड़ और पराली को जलाया जा रहा है। जो हमारे लिए बुरा संकेत है। पुरातन कुओं की होनी चाहिए संभाल

फतेहाबाद के सरपंच भुपिंदर सिंह भिंदा कहते हैं कि हमने अपने बचपन में कुओं का पानी पिया था। हमारी आने वाली पीढ़ी कुओं के इतिहास से दूर हो जाएगी। गिर रहे भूजल स्तर से हमें अभी से सबक सीखना चाहिए। पुरातन कुएं अगर बचे हैं तो उनकी संभाल होनी चाहिए।


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