जंग पर विशेष.बीएमजी से मुकाबला करने वाली पाक फौज को चटाई थी एमएमजी से धूल
वर्ष 1971 की जंग के दौरान कश्मीर सिंह जम्मू कश्मीर के बांदीपुर क्षेत्र में तैनात थे।
धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : वर्ष 1971 की जंग के दौरान कश्मीर सिंह जम्मू कश्मीर के बांदीपुर क्षेत्र में वायरलेस पर तैनात थे। जंग के दौरान कश्मीर सिंह को भी पाकिस्तानी फौज के साथ दो-दो हाथ करने का अवसर मिला। भारतीय फौज की बहादुरी के किस्से सुनाते हुए कश्मीर सिंह भावुक हो गए और केंद्र व पंजाब सरकार से नाराजगी जाहिर की।
खेमकरन निवासी हेड मास्टर संत सिंह के घर 2 मई 1946 को पैदा हुए कश्मीर सिंह ने 24 दिसंबर 1965 को पीएपी ज्वाइन की थी। बाद में बीएसएफ के अस्तित्व में आने पर जून 1967 में बीएसएफ में शामिल हो गए। 1968 में कश्मीर सिंह वायरलेस विभाग में तैनात किया गया। 1971 में जम्मू कश्मीर के बांदीपुर क्षेत्र में उनकी तैनाती थी। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ जब लड़ाई हुई तो बांदीपुर से 65 किलोमीटर का सफर करने बाद बीएसएफ की टुकड़ी के साथ कश्मीर सिंह बड़ा पोस्ट (जगदीश गली) नीरूगरेज भेज दिए गए। लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी फौज ऊंचाई वाले क्षेत्र में थी। जबकि भारतीय क्षेत्र में मोर्चा संभाली बैठे बीएसएफ के जवान निचले स्तर पर थे। 14 दिन की लड़ाई के दौरान कश्मीर सिंह ने बहादुरी से पड़ोसी मुल्क की फौज का मुकाबला किया। इस समय कश्मीर सिंह नायब ऑपरेटर की पोस्ट पर थे। दैनिक जागरण से बात करते हुए कश्मीर सिंह ने बताया कि 1971 की लड़ाई के बाद सरकार ने उन्हें संग्राम मेडल से नवाजा था। साथ ही रिवार्ड भी दिया गया था। कश्मीर सिंह बताते हैं कि पाकिस्तानी फौज के पास उस समय बीएनजी गन थी। जबकि भारतीय जवानों के पास छोटी तोपों (81 र्मोटार) के अलावा एमएमजी मशीन गन थी। एमएमजी मशीन गंन इस लड़ाई में पाकिस्तानी फौज पर पूरी तरह से भारी पड़ गई थी। भारतीय जवानों ने बहादुरी के साथ यह लड़ाई लड़ी और मैदान फतेह किया। 1971 की लड़ाई को समाप्त हुए 46 वर्ष का समय गुजर चुका है। कश्मीर सिंह को याद है कि आज ही के दिन पाकिस्तानी फौज 93 हजार सैनिकों ने भारतीय फौज के आगे घुटने टेक दिए थे। कश्मीर सिंह मई 2003 में इंस्पेक्टर रैंक से सेवामुक्त हुए। उन्होंने बताया कि 12 जुलाई से 16 जुलाई 1976 तक पाकिस्तानी फौज के साथ फिर गोलीबारी हुई थी। जिसमें बहादुरी दिखाने पर कश्मीर सिंह को 20 रिवार्ड मिले थे। उनका कहना है कि सेवामुक्ति के बाद महकमे में उनको समय-समय पर सम्मान तो मिलता रहा लेकनि, सरकार ने उन्हें कभी याद नहीं किया। 26 जनवरी हो या 15 अगस्त उन्हें कभी भी प्रशासनिक तौर पर याद नहीं किया जाता।