कारगिल विजय दिवस : कुर्बानी के जज्बे को सलाम, पिता ने दी जान तो बेटों ने थामी कमान
कारगिल विजय दिवस पर शहीदों के संग उनके बहादुर परिवारों के जज्बे को भी सलाम है। कारगिल युद्ध में पिता शहीद हो गए तो बेटों ने भी सीमाओं की रखवाली का प्रण लिया व उसे पूरा किया।

तरनतारन, [धर्मवीर मल्हार]। देश के लिए बलिदान के इस जज्बे को सलाम है। कारगिल विजय दिवस पर शहीदों के सर्वोच्च बलिदान के संग उनके परिवार का जज्बे को रगों में जोश भर देता है। दुश्मनों से लाेहा लेते हुए पिता ने शहादत दे दी तो बेटों ने सीमा पर कमान संभाल लिया। कारगिल विजय दिवस पर ऐसे ही बहादुर परिवाराें की दास्तान पेश है।
शहीद अमरजीत के बाद बेटे गुरप्रीत ने संभाली सीमा की जिम्मेदारी
तरनतारन के कस्बा श्री गोइंदवाल साहिब के समीप गांव धूंदा के रहने वाले सैनिक अमरजीत सिंह कारगिल युद्ध में 16 मई 1999 को शहीद हो गए। उनकी पत्नी ने तभी तय कर लिया था कि अपने बेटों को भी जांबाज सिपाही बनाएंगी। इस फैसले ने हकीकत के कदम भी चूमे। बड़ा बेटा गुरप्रीत सिंह फौज में है। पति की शहादत के बाद रंजीत कौर गहरे सदमे में थीं। इस घटना ने उनके दिल को पत्थर जैसा बना दिया। गुरप्रीत उस समय महज चार साल का था।

गुरप्रीत और उसका परिवार।
रंजीत कौर ने जागरण को बताया कि गुरप्रीत के वो शब्द उन्हें आज भी याद हैं जब शहीद पति के पार्थिक शरीर को गांव लाया गया था। गुरप्रीत ने पूछा, ‘पिता जी तो कहते थे कि वह उसे स्कूल में दाखिल करवाने जाएंगे लेकिन अब ये उठ क्यों नहीं रहे। मां आप पिताजी से कहें कि मुझे गन चाहिए।’
बात करते हुए रंजीत कौर का गला भर आया। वह बोलीं, पति की शहादत पर उसे नाज है और बेटे को वर्दी में देख लगता है कि मेरा परिवार देश सेवा के लिए ही बना है।' गुरप्रीत सिंह की एक साल पहले शादी हुई है। वह इस समय असम में तैनात हैं। वहीं उसका छोटा भाई हरप्रीत सिंह भी देश सेवा के लिए फौज में जाना चाहता है। छोटी बहन संदीप कौर तो रक्षा बंधन के लिए दर्जनों राखियां केवल इसलिए इसलिए तैयार कर रही है ताकि गुरप्रीत के साथ ड्यूटी पर तैनात बाकी फौजी भी राखी बांध सकें।
शहीद बलविंदर के बाद बेटा कर रहा सीमा की रखवाली
कारगिल युद्ध में शहीद हुए गांव मल्लमोहरी निवासी लांस नायक बलविंदर सिंह का बेटा सिमरजीत सिंह भी अब देश की सरहद की रखवाली में जुटा है। कारगिल युद्ध में बलविंदर सिंह 13 जून 1999 शहीद हुए। परिवार पर जैसा दुख का पहाउ़ टूट गया, लेकिन वीर सैनिक के परिवार का जज्बा भी खास हाेता है। शहीद बलविंदर की पत्नी बलजीत कौर ने अपने पति की चिता के सामने जो संकल्प लिया उसने सबका सिर गर्व से उठा दिया। बलजीत कौर ने इसे पूरा भी किया।

शहीद बलविंदर सिंह की फोटो और दाएं- बेटे सिमरजीत सिंह।
शहीद का पार्थिव शरीर जब अंतिम संस्कार के लिए घर लाया गया तो बलजीत कौर की गोद में उस समय चार वर्षीय इकलौता बेटा सिमरजीत सिंह बिलख रहा था। पति के अंतिम संस्कार समय बलजीत संकल्प लिया कि सिमरजीत की शादी तभी करेंगी, जब वह फौज में भर्ती होगा। सिमरजीत ने भी मां का संकल्प पूरा किया और 19 साल की उम्र में ही फौज में भर्ती हो गया।
बलजीत कौर कहती हैं, बेटे के फौज में भर्ती होने के साथ ही उसके जीवन में खुशियों के रंग फिर से भर गए हैं। वह भर्ती के लिए जाने से पहले मुझ से आशीर्वाद लेकर गया और लौटने पर खुशखबरी दी कि वह देश की सेवा के लिए चुना लिया गया है। सिमरजीत इन दिनों श्रीनगर में सेवाएं दे रहे हैं। बलजीत कौर ने बताया कि वह पति की शहादत के बाद विधवा के रूप में सफेद दुपट्टा लेती थीं। अब मेरी जिंदगी मेरे ही लाल ने खुशियों के रंग भर दिए हैं।

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