जिले के सांसदों की सियासत बादलों में डूब गई
लोकसभा चुनावों की तैयारी से पहले रूठों को मनाने की कवायद होती है, परंतु शिरोमणि अकाली दल में सबकुछ उल्टा हो रहा है। माझे के टकसाली अकालियों को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। शिअद के इतिहास पर नजर डाले तो तरनतारन से जो भी सांसद बन चमका उसी को ही पार्टी ने बौना बना दिया। इसका जीता जागता प्रमाण उसी समय से दिख गया था, जब कांग्रेस सरकार को देश में एमरजेंसी का सामना करना पड़ा।
धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : लोकसभा चुनावों की तैयारी से पहले रूठों को मनाने की कवायद होती है, परंतु शिरोमणि अकाली दल में सबकुछ उल्टा हो रहा है। माझे के टकसाली अकालियों को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। शिअद के इतिहास पर नजर डाले तो तरनतारन से जो भी सांसद बन चमका उसी को ही पार्टी ने बौना बना दिया। इसका जीता जागता प्रमाण उसी समय से दिख गया था, जब कांग्रेस सरकार को देश में एमरजेंसी का सामना करना पड़ा। 1975 में देश में आपातकालीन हालात थे। जिसके कारण तरनतारन हलके से कांग्रेस का किला ध्वस्त हो गया। 1977 में अकाली दल के अध्यक्ष जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ (शिअद अध्यक्ष) पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े। उन्होंने गुरदयाल सिंह ढिल्लों को मात दी। तीन वर्ष बाद तुड़ के बड़े बेटे एडवोकेट लहिणा सिंह तुड़ मध्यकालीन चुनाव में शिअद के प्रत्याक्षी बनाए गए। उन्होंने यह चुनाव जीता। लेकिन शिअद ने उनको सरगर्म सियासत के हाशिये पर खड़ा कर दिया।
जीतने के बाद भी मान ने नहीं देखी लोकसभा
1985 में जत्थेदार तरलोचन सिंह तुड़ ने चुनाव जीता। 1989 में जेल में बंद सिमरनजीत सिंह मान को प्रत्याक्षी बनाया गया। इस चुनाव में कांग्रेसी प्रत्याक्षी अजीत सिंह मान की जमानत जब्त हो गई। मान जेल से रिहा हो गए। परंतु लोकसभा में नहीं गए। 1992 के चुनाव में आतंकवाद जब चर्म पर था तो शिअद ने चुनावों का बॉयकाट किया। इस चुनाव में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बड़े लड़के सु¨रदर सिंह कैरों ने बसपा के हरभजन सिंह को हराया और कांग्रेस से सांसद बने।
पिता को दरकिनार तो बेटे ने बदला दल
1996 के चुनाव में शिअद ने जत्थेदार मेजर सिंह उबोके (पूर्व माल मंत्री पंजाब) को प्रत्याक्षी बनाया। उबोके ने कांग्रेस के कैरों को चित करते सांसद का चुनाव जीता परंतु पार्टी ने उबोके को सरगर्म सियासत से दूर कर दिया गया। उबोके का बेटा सज्जन सिंह उबोके पहले आम आदमी पार्टी में था जो अब कांग्रेस पार्टी में है।
लालपुरा का विरोध खुद पर ही पड़ गया भारी
1998 की 12वीं लोकसभा में पूर्व विधायक जत्थेदार प्रेम सिंह लालपुरा को टिकट दिया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के छोटे लड़के गु¨रदरप्रताप सिंह कैरों कांग्रेस के प्रत्याक्षी थे। इस चुनाव में जत्थेदार लालपुरा ने एक लाख से अधिक मतों से कांग्रेस को चित किया। इसके बाद देश में अटल बिहारी वाजपयी की सरकार में सुखबीर सिंह बादल को केंद्रीय राज्यमंत्री नियुक्त किया गया। जिसका विरोध जत्थेदार लालपुरा ने किया। 13 दिन बाद वाजपयी की सरकार गिर गई। जत्थेदार लालपुरा को शिअद से बाहर का रास्ता दिखाया।
तुड़ की शिअद को जीत दिलाने की भूल
दोबारा हुए चुनावों में शिअद ने जत्थेदार तरलोचन सिंह तुड़ को टिकट दिया। उन्होंने कांग्रेसी प्रत्याक्षी दिलबाग सिंह डालेके को रिकार्ड तोड़ मतों से हराया। वाजपयी सरकार 13 माह चली। इसके बाद अगले चुनाव में शिअद ने जत्थेदार तुड को दोबारा टिकट दिया। तुड़ ने फिर जीत का झंडा लहराया और तीसरी बार सांसद बने। जत्थेदार तुड़ को पंजाब की सियासत से बादल परिवार ने साइड पर ही रखा। 2004 के चुनाव में सांसद तुड़ का टिकट काट अजनाला के विधायक डॉ. रतन सिंह को प्रत्याक्षी बनाया। डॉ. अजनाला ने कांग्रेस के सुखबिंदर सिंह सरकारिया को हराया। तुड़ ने आजाद तौर पर चुनाव लड़ा और जमानत जब्त हो गई। इस दौरान शिअद ने तुड़ को पार्टी से निष्कासित कर दिया। बाद में तुड़ आम आदमी पार्टी से जुड़ गए।
बेटों सहित अजनाला व ब्रह्मपुरा को भेज दिया घर
नई हलकाबंदी में लोकसभा हलका तरनतारन की जगह नया हलका खडूर साहिब बन गया था। डॉ. अजनाला को 2009 में दोबारा प्रत्याक्षी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के राणा गुरजीत सिंह मात दी। शिअद की हाइकमान ने जत्थेदार अजनाला को पंजाब की सियासत में दखल नहीं देने दिया। 2015 के चुनाव में डॉ. अजनाला का टिकट काट माझे के जरनैल रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा को दिया गया। ब्रह्मपुरा ने यह चुनाव जीता। हाल ही में शिअद ने डॉ. रतन सिंह अजनाला व जत्थेदार रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा को उनके लड़कों समेत बाहर का रास्ता दिखा दिया है।