Move to Jagran APP

तीन बार विधायक बने लालपुरा को नहीं मिली मंत्रिमंडल में जगह

माझा क्षेत्र के विधानसभा हलका तरनतारन में 1972 से 2017 तक दस बार विधानसभा के चुनाव हुए।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 08:04 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 10:59 AM (IST)
तीन बार विधायक बने लालपुरा को नहीं मिली मंत्रिमंडल में जगह
तीन बार विधायक बने लालपुरा को नहीं मिली मंत्रिमंडल में जगह

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन

loksabha election banner

माझा क्षेत्र के विधानसभा हलका तरनतारन में 1972 से 2017 तक दस बार विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें पांच बार शिअद, तीन बार कांग्रेस, दो बार आजाद प्रत्याशियों ने यह चुनाव जीता। परंतु राज्य की कैबिनेट में तरनतारन को केवल एक बार ही नूमाइंदगी मिल पाई। हालांकि दो बार शिअद के हरमीत सिंह संधू सीपीएस बनने में कामयाब रहे।

वर्ष 1972 में कांग्रेस पार्टी के दिलबाग सिंह डालेके ने 11 हजार 769 मतों के अंतर से शिअद के मनजिदर सिंह बहिला को हराया। पंजाब में ज्ञानी जैल सिंह की अगुआई में कांग्रेस सरकार बनी। इस सरकार में दिलबाग सिंह डालेके ट्रांसपोर्ट मंत्री बने। उन्होंने सिविल अस्पताल व बस अड्डा के अलावा अनाज मंडी की सौगात दी। 1977 में मनजिदर सिंह बहिला ने शिअद से बागी होकर आजाद चुनाव लड़ा और विधायक बने। उन्होंने शिअद के प्रेम सिंह लालपुरा को 1069 मतों के अंतर से हराया था। परंतु राज्य में प्रकाश सिंह बादल की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल की सरकार बनी और तरनतारन को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल पाया।

1980 में शिअद के लालपुरा ने कांग्रेस के दिलबाग सिंह डालेके को पराजित किया व राज्य में दरबारा सिंह की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी। 1985 में लालपुरा ने कांग्रेस के डा. सुरिदर सिंह शाही को 9270 मतों से पराजित किया। लालपुरा अकाली दल के विधायक तो बने, परंतु अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला ने उनको मंत्री नहीं लिया। 1992 में आतंकवाद के दौर में शिअद ने विस चुनावों का बायकाट किया। फिर कांग्रेस के दिलबाग सिंह डालेके निर्विरोध विधायक बने। राज्य में बेअंत सिंह की सरकार बनने के बावजूद डालेके को कैबिनेट में स्थान नहीं मिला। हरचरन बराड़ ने डालेके को मंत्रिमंडल से दूर ही रखा

बेअंत सिंह की हत्या के बाद 1995 में चीफ मिनिस्टर की कुर्सी हरचरन सिंह बराड़ को मिली। बराड़ की कैरों परिवार से रिश्तेदारी थी और डालेके का कैरों परिवार से छत्तीस का आंकड़ा था। इस कारण बराड़ ने डालेके को मंत्रिमंडल से दूर ही रखा। जनवरी 1996 में बराड़ सरकार का तख्ता पलटाकर रजिदर कौर भट्ठल सीएम बनीं। भट्ठल ने दिलबाग सिंह डालेके को विधानसभा का स्पीकर नियुक्त किया। डालेके को 21 जनवरी 1996 से 11 फरवरी 1997 तक स्पीकर रहे। 1997 में शिअद के प्रेम सिंह लालपुरा ने कांग्रेस के दिलबाग सिंह डालेके को हराया। डालेके को इस चुनाव में 19902 वोट पड़े। लालपुरा की यह जीत सबसे बड़ी थी। परंतु राज्य में बादल की सरकार में उनको कैबिनेट में जगह नहीं मिली। हरमीत सिंह संधू बादल सरकार में दो बार सीपीएस बने

वर्ष 2002 में हरमीत सिंह संधू ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा व शिअद के अलविदरपाल सिंह पखोके को मात दी। इस चुनाव में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बेटे गुरिदरप्रताप सिंह कैरों ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे। 2007 में संधू ने शिअद से टिकट पर चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के मनजीत सिंह घसीटपुरा को हराया। बादल की सरकार में संधू को मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) बनाया गया। 2012 के चुनाव में संधू ने कांग्रेस के डा. धर्मबीर अग्निहोत्री को 4621 मतों से पराजित किया और बादल की सरकार में दोबारा सीपीएस बने। 2017 के चुनाव में कांग्रेस के डा. धर्मबीर अग्निहोत्री ने शिअद के हरमीत सिंह संधू को 14629 मतों से पराजित किया। राज्य में कांग्रेस की सरकार तो बनी, परंतु पहली बार विधायक बनने के कारण डा. अग्निहोत्री को कैबिनेट में स्थान नहीं मिला।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.