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18 वर्ष पहले लगाया जंगल और बाग, पौधों को बेटों की तरह पाला, आज दे रहे फल और शुद्ध हवा

शिअद नेता व पर्यावरण प्रेमी बलजीत सिंह गिल की ओर से भी पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दिया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 06:00 AM (IST)
18 वर्ष पहले लगाया जंगल और बाग, पौधों को बेटों की तरह पाला, आज दे रहे फल और शुद्ध हवा
18 वर्ष पहले लगाया जंगल और बाग, पौधों को बेटों की तरह पाला, आज दे रहे फल और शुद्ध हवा

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : लगातार गिर रहे भूजल स्तर को बचाने के लिए पौधे लगाना जरूरी है। कई समाज सेवी संगठनों की ओर से पौधे लगाने के लिए जहां पहलकदमी की जा रही है, वहीं शिअद नेता व पर्यावरण प्रेमी बलजीत सिंह गिल की ओर से भी पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दिया जा रहा है। गांव पलासौर में उन्होंने 18 साल पहले दो एकड़ जमीन में 300 से अधिक फलों के पौधे और जंगल लगाया था। यह आज बड़े हो चुके हैं और फलों के साथ-साथ भू-जलस्तर सही बनाए रखने और ठंडी हवा भी दे रहे हैं।

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बलजीत सिंह बताते हैं कि जैसे एक किसान अपनी फसल की संभाल बेटों की तरह करता है, ठीक उस तरह वह भी इन पौधों की संभाल अपने बच्चों की तरह करते हैं। साथ ही अन्य लोगों को भी अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए उन्हें जागरूक करते हैं। उन्होंने बताया कि 18 वर्ष पहले जंगल और आम व जामुन के पौधे लगाए गए थे। अब यहां पर आम, अनार, बब्बूगोशा, किन्नू, लीची, आड़ू, शहतूत, सागवान, अगम, बेल पत्र, पीपल, सुहंजना, देसी आंवला, टाहली, अशोका, पाम के पौधे लगे हुए हैं जो बड़े हो चुके हैं। बलजीत सिंह गिल ने बताया कि साल भर में दस से अधिक प्रकार के फल होते हैं। जंगल में एक किन्नू का पौधा है, जो प्रत्येक सीजन में एक क्विंटल के करीब फल देता है। उन्होंने बताया कि सुहंजना का पौधा प्रत्येक मनुष्य की सेहत के लिए वरदान साबित हो रहा है। सुहंजना की पत्तियों की चटनी, भुर्जी भी आसानी से तैयार की जाती है। वहीं पत्तियों को सूखाकर चाय और सब्जी में प्रयोग करना सेहत के लिए लाभदायक है। फलों को बेचते नहीं, लोगों में बांट देते हैं

बलजीत सिंह गिल ने बताया कि साल भर में दस से अधिक प्रकार के फल होते हैं। जंगल में एक किन्नू का पौधा है, जो प्रत्येक सीजन में एक क्विंटल के करीब फल देता है। वह बताते हैं कि इन पौधों से मिलने वाले फलों को बेचते नहीं, बल्कि जरूरतमंद लोगों को बांटते हैं। इसके अलावा आसपास के लोग अकसर फल खाने के लिए जब आते हैं तो उन्हें भी वह मना नहीं करते। वह उन्हें पौधे लगाने के लिए जागरूक करते हैं और तभी फल देते हैं।


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