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पंजाब के ये किसान बन रहे नजीर, पराली को खेत में ही नष्ट करने के खोज रहे नए तरीके

पंजाब के संगरूर में 2019 में 62 फीसद रकबे में धान की पराली नहींं जलाई गई थी। 58 हजार किसानों ने पराली न जलाकर पर्यावरण को बचाने में सहयोग दिया था। किसानों ने 20 लाख 74 हजार 400 टन पराली आग लगने से बचाई।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 10:23 AM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 10:23 AM (IST)
पंजाब के ये किसान बन रहे नजीर, पराली को खेत में ही नष्ट करने के खोज रहे नए तरीके
संगरूर के किसान जो पराली जलाने के बजाय खेतों में ही उसे अन्य तरीके से नष्ट कर रहे हैं। जागरण

संगरूर [मनदीप कुमार]। 2019 में 62 फीसद रकबे में पराली को आग न लगाकर पर्यावरण को दूषित होने से बचाने वाले संगरूर के किसानों ने एक बार फिर कमर कस ली है। आगामी सीजन को देखते हुए एक महीना पहले ही पराली को मिट्टी में मिलाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। किसान अभी से मशीनें खरीदने में भी जुट गए हैं और कई गांवों में मशीनों के लिए आवेदन भी कर दिए गए हैं।

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यही नहीं, वे पराली को खेत में ही नष्ट करने के लिए नए-नए तरीके खोज रहे हैं। इसके अलावा सुपर सीडर से गेहूं की सीधी बिजाई की भी तैयारी है। 2019 में जिले के 58 हजार किसानों ने चार लाख 48 हजार 500 एकड़ जमीन पर पराली को आग न लगाकर गेहूं की सीधी बिजाई की थी। करीब 20 लाख 74 हजार 400 टन पराली आग लगने से बचाई गई थी। किसानों का कहना है कि इस बार वे नया रिकॉर्ड कायम करेंगे।

2012 से बिना पराली के कर रहे खेती

गांव लोंगोवाल के किसान निर्मल सिंह ने बताया कि वे 2012 से लगातार बिना पराली जलाए खेती कर रहे हैं। न केवल अधिक झाड़ मिलता है, बल्कि पर्यावरण भी दूषित होने से बच रहा है। आधुनिक तरीके से खेती को आगे बढ़ा रहे हैं।

गांव वालों को भी कर रहे जागरूक

गांव खेड़ी के ग्रेजुएट किसान गुरपाल सिंह ने पराली को आग लगाने के बजाय उन्होंने मशीनरी की मदद से बिजाई का विकल्प चुना। गांव में जागरूकता भी फैला रहे हैं। आज आधा गांव पराली जलाने से मुंह मोड़ चुका है।

पिता के फैसले को आगे बढ़ा रहे

गांव भद्दलवड़ के किसान संदीप सिंह ने बताया कि 2005-06 से उनके पिता हरिंदर सिंह ने अवशेषों को जमीन में दबाकर गेहूं की बिजाई की थी। 23 एकड़ रकबे से शुरुआत की थी, जिसे 38 एकड़ तक पहुंचा दिया है। इस बार वह सुपरसीडर की मदद से बिजाई करेंगे।

खुद अपनाई नई तकनीक, हुए सफल

गांव पुन्नावास के किसान कुलविंदर सिंह धान की बिजाई के लिए डब्ल लाइन (डब्बी विधि) तकनीक अपना रहे हैं। उनका कहना है कि इससे धान की घनी बिजाई होती है। मशीनरी के इस्तेमाल से जहां पानी व लेबर का खर्च कम हुआ, वहीं पराली का निपटारा आसान है। इस बार वे सुपरसीडर का इस्तेमाल करेंगे।

किसान हो रहे जागरूक

कृषि विज्ञान केंद्र के सहायक निदेशक डॉ. मनदीप सिंह का कहना है कि किसानों को लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है। इसी कारण किसान मशीनरी का इस्तेमाल और पराली को आग लगाए बिना ही सीधी फसलों की बिजाई कर रहे हैं।


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