पदमचंद्र महाराज व नवीन महाराज का जैन स्थानक में मनाया जन्मदिन
संगरूर जैन स्थानक में शनिवार को संघ नायक शास्त्री पदमचंद महाराज व मधुर वक्ता नवीन मुनि महाराज का पावन जन्मदिन श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर प्रवचन भास्कर अजित मुनि महाराज ने बताया कि संघ नायक शास्त्री पदम चंद महाराज का जन्म 22 सितंबर 1940 को मदीना गांव के अग्रवाल सनातनी परिवार में मास्टर श्याम लाल के घर माता कलावंती की कोख से हुआ। मास्टर मदीना गांव से रोहतक आकर रहने लगे फिर दिल्ली में आकर स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दी।
जागरण संवाददाता, संगरूर :
जैन स्थानक में शनिवार को संघ नायक शास्त्री पदमचंद महाराज व मधुर वक्ता नवीन मुनि महाराज का पावन जन्मदिन श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर प्रवचन भास्कर अजित मुनि महाराज ने बताया कि संघ नायक शास्त्री पदम चंद महाराज का जन्म 22 सितंबर 1940 को मदीना गांव के अग्रवाल सनातनी परिवार में मास्टर श्याम लाल के घर माता कलावंती की कोख से हुआ। मास्टर मदीना गांव से रोहतक आकर रहने लगे फिर दिल्ली में आकर स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दी। मास्टर श्याम लाल अपने सुपुत्र पदम को जब वह दो वर्ष के थे वाचस्पति गुरुदेव मदन लाल महाराज के दर्शनों के लिए मालेरकोटला लेकर आए, तब पदम जी ने गुरुदेव की मुंह पत्ती खींच ली। तभी वाचस्पति गुरुदेव ने कहा कि यह हमारी मुंह पत्ती को संभालेगा। उन्हें 1950 में लगन लगी। दस वर्ष का आयु में पहला पौशध व्रच किया। गुरु सुदर्शन भी माता कलावंती के हाथों में ही पले बढ़े थे। माता कलावंती बचपन में गुरु सुदर्शन घर के काम भी करवाती थी बाद में फिर गुरु सुदर्शन ने दीक्षा ग्रहण कर ली थी। उसी ऋण को चुकाने के लिए माता कलावती अपना पुत्र गुरु सुदर्शन की सेवा में देने का मन बना लिया था। माता कलावंती को 42 वर्ष की आयु में कैंसर हो गया। मरने के एक सप्ताह पहले माता ने मास्टर जी से वचन लिया कि मेरे मरने के बाद पदम को वापस घर नहीं बुलाएंगे। पदम ने बाबा जग्गू मल महाराज, वाचस्पति मदन लाल महाराज व संघ शास्ता प्रभावक गुरुदेव सुदर्शऩ लाल महाराज, तपस्वी रत्न बद्री प्रसाद महाराज, मौनी बाबा वचन सिद्ध सेठ प्रकाश चंद महाराज, व भगवान श्री राम प्रसाद महाराज के चरणों में रहकर धर्म शिक्षा को प्राप्त कर दो फरवरी 1958 को चांदनी चौक दिल्ली में जैन दीक्षा अंगीकार की। गुरुदेवों की सेवा व स्वाध्याय में विशेष रुचि रहती थी। कदकाठ ऊंचा लंबा होने के कारण कई लोग उन्हें बड़े गुरु ही मानते थे। माता-पिता का पदम दीक्षा ग्रहण करने के बाद शास्त्री पदम चंद्र महाराज के नाम से उत्तरी भारत मे जाने जाना लगा। राम प्रसाद महाराज ने उनके नाम के आगे शास्त्री विशेषण लगाया और फिर वह शास्त्री महाराज के नाम से जाने जाने लगे। उन्होंने जैन धर्म के बारे में लोगों को विशेष जानकारी दी। गुरुदेव सुदर्शन लाल महाराज के देवलोक के उपरांत उन्होंने इस संघ की कमान को संभाला व गुरुदेवों के नाम को और चमकाने का भरपूर प्रयास किया। 29 अप्रैल 2016 को शालीमार बाग दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली व हजारों की गिनती में उपस्थित जनता द्वारा उनके पार्थिव शरीर को निगम बोध घाट में अग्नि को भेंट कर दिया गया। उनकी अंतिम यात्रा में जहां जैन समाज का बच्चा-बच्चा शामिल हुआ, वहीं दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अर¨वद केजरीवाल, स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन, केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने पार्थिव शरीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।