दूसरों की सहायता करना व्यवदान : आदर्श मुनि
जागरण संवाददाता, संगरूर : व्यवधान करने से आत्मा शुद्ध अवस्था में प्रवेश हो जाती है। यह बात स्
जागरण संवाददाता, संगरूर :
व्यवधान करने से आत्मा शुद्ध अवस्था में प्रवेश हो जाती है। यह बात स्थानीय जैन स्थानक में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मधुर वक्ता आदर्श मुनि जी महाराज ने कहीं। वह भगवान महावीर स्वामी की अंतिम वाणी उत्तराध्यय सूत्र में बताए 72 प्रश्नों में से 23 प्रश्न पर चर्चा करते हुए समझा रहे थे कि जब तक मन में परमात्मा के प्रति ज्योति नहीं जगेंग तब तक आत्मा का आनंद की अनुभूति नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति दूसरों की सहायता के बारे में सोचता है, उसे व्यवधान कहा जाता है। जरूरी नहीं कि दान केवल पैसों का किया जाए यदि आप किसी असहाय व्यक्ति को सहारा देकर उसकी मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करते हो, वह भी दान है। मेहनत करना पुरुषार्थ करना भी व्यवधान है। अगर हम किसी को सहयोग देते हैं तो वह दान से बढ़कर है। सहयोग लेने व सहयोग देने से जीवन चलता है। मुनि ने कहा कि जैन धर्म की यह विशेषता है कि वह किसी भी धर्म के खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं करते किंतु सहयोग के मामले में हम पीछे हैं। जबकि सहयोग अति आवश्यक है। हमें दूसरों के लिए भी कुछ करना होगा। मुनि ने कहा कि बिना भाव का दान देने से अच्छा है कि भाव से भले ही एक रुपये का दान दे दो वह अच्छा है। आज इंसान दूसरों के बारे में तो सोच रहा है ¨कतु अपने बारे में नहीं सोच रहा। आज इंसान-इंसान से पिस रहा है, इसलिए आज हम पशु की गारंटी तो ले सकते हैं ¨कतु इंसान की नहीं क्योंकि इंसान को इंसान पर भरोसा नहीं है। आज गलत कार्य हम खुद करते हैं और इल्जाम दूसरों को देते हैं। लेकिन मुनि जी ने कहा कि याद रखना हम जैसा कर्म करेंगे हमें फल भी वैसा ही मिलेगा। इसलिए हमें दूसरों की सहायता करनी चाहिए तभी हमारा कल्याण हो सकता है। स्वाति जी महाराज भी अपनी शिष्य मंडली सहित संगरूर में विराजमान हैं। जिनके आने से चारों तीर्थो की संपन्नता हो गई है, वह भी हमें ज्यादा से ज्यादा धर्म लाभ देने का प्रयास कर रही है, इसलिए सभी धर्म प्रेमी प्रवचन में समय पर पहुंचकर धर्म ज्ञान प्राप्त करें।