लाल चंद की तीन पीढियों बना रहीं दशहरा के लिए पुतले
संगरूर दशहरे के त्योहार आने वाला है और लोग रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के विशाल काया पुतले देखने के लिए बेहद उत्सुक हैं। भले ही दशहरे के मेले में रावण का पुतला चंद मिनट में राख होता देख लोग बेहद खुश होते हैं, लेकिन संगरूर का एक परिवार ऐसे भी है जो लोगों के चेहरे पर कुछ पल की यह खुशी देखने के लिए महिना भर दिन रात मेहनत करता है। खास बात यह है कि आजादी के बाद से स्वर्गीय लाल चंद लालू का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी रावण बनाने के कार्य की विरासत को संभाले हुए हैं। तीन पीढि़यां रावण के पुतला बनाने में आज भी जुटी हुई हैं।
मनदीप कुमार, संगरूर : दशहरे के त्योहार आने वाला है और लोग रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के विशाल काया पुतले देखने के लिए बेहद उत्सुक हैं। भले ही दशहरे के मेले में रावण का पुतला चंद मिनट में राख होता देख लोग बेहद खुश होते है, लेकिन संगरूर का एक परिवार ऐसे भी है जो लोगों के चेहरे पर कुछ पल की यह खुशी देखने के लिए महीने भर दिन रात मेहनत करता है। खास बात यह है कि आजादी के बाद से स्वर्गीय लाल चंद लालू का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी रावण बनाने के कार्य की विरासत को संभाले हुए हैं। तीन पीढि़यां रावण के पुतला बनाने में आज भी जुटी हुई हैं।
स्थानीय शाही समाध के समक्ष रावण के पुतले बनाने के काम में जुटे 56 वर्षीय विजय कुमार का पक्का अड्डा है। वर्ष भर वह बांस की चिक्के बनाने का काम करने वाला विजय दशहरे से करीब डेढ़ माह पहले ही रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले बनाने के काम में जुट जाता है। जिले के बाहर से भी मिलते हैं आर्डर
संगरूर ही नहीं बल्कि अन्य शहरों से भी यह पुतले बनाने के आर्डर मिलते हैं। आर्डर को पूरा करने के लिए विजय कुमार के साथ उसका पूरा परिवार इस काम में दिन रात जुटा रहता है। विजय कुमार ने कहा कि यह काम उसे उसके पूर्वजों से विरासत में मिला है। आजादी के बाद से उसका परिवार इस काम में लगा हुआ है। पहले उसके पिता स्व. लाल चंद लालू यह काम करते थे, जिनकी मदद में वह भी हाथ बटाता रहता था। पिता बुजुर्ग होते गए तो काम उसने सीख लिया और वह अकेला भी इस काम में लग गया। उसके पिता कहते थे कि रावण के पुतले बनाने का काम भगवान की मर्जी से ही उसे मिला है, जिससे उनके हाथों में यह कला आई है। इसलिए इस काम से वह कभी भी मुंह नहीं मोड़ेगा। पिता की इसी बात पर वह आज भी पहरा दे रहा है और इस काम को अपने परिवार के साथ मिलकर करने में जुटा हुआ है। 35-35 फीट के आठ पुतले बनाने का काम जारी
विजय कुमार कहता है कि इस वर्ष उसे आठ पुतले बनाने के काम मिला है। जिसके लिए वह छह सितंबर से लगातार बनाने में लगा हुआ है। संगरूर के बग्गीखाना रामलीला कमेटी के तीन पुतले, धनौला की रामलीला कमेटी के तीन, घाबदां मील में मनाए जाने वाले दशहरे के लिए एक व सुनाम के शहीद ऊधम ¨सह रोज गार्डन के लिए रावण का एक पुतला बना रहा रहा है। इन पुतलों का आकार 35 फीट का है, जिसमें बांस की मदद से शिकंजा बनाया गया है, फिर पेपर की मदद से इसे रूप दिया जाएगा। इसके बाद अंत में रंग बिरंगे कागजों की मदद से इन्हें पोशाक पहनाई जाएगी। इनके हाथ में अस्त्र-शस्त्र भी थमाए जाएंगे। उनके द्वारा बनाए जाने वाले पुतलों को देखने के लिए मेले में दूर-दराज से भीड़ जमा होती है। कमाई की बजाए श्रद्धा को देते हैं तवज्जो
विजय कुमार कहते हैं कि रावण व अन्य पुतले बनाने का उनका मकसद कोई कमाई करना नहीं, बल्कि श्रद्धा व अपने परिवार की विरासत को संभालना है। पुतले के निर्माण पर होने वाले खर्चे अनुसार ही इनकी कीमत वसूल करते हैं। उनसे पुतले बनवाने वाले सभी रामलीला कमेटियों के प्रबंधक उनके पक्के ग्राहक हैं, जो उनकी मेहनत अनुसार उन्हें पुतले बनाने की कीमत अदा कर देते हैं। चार पुत्रों को सौंपेंगे पुतला बनाने की विरासत
विजय कुमार कहते हैं कि उनके पिता से यह काम उन्हें मिला है तथा अब वह आगे अपने चार पुत्र रा¨जदर कुमार, ईश्वर चंद, राम कुमार व रामेश्वर दास को यह काम विरासत में सौंपेंगे। उन्हें उम्मीद है कि उनका परिवार अपने इस विरासत काम को आगे बढ़ाएगा। संगरूर शहर सहित अन्य इलाकों के लोग भी उन्हें रावण के पुतले बनाने वाले परिवार के नाम से ही जानता है। यहां किया जाएगा दशहरे पर पुतलों को दहन
बग्गीखाना रामलीला कमेटी द्वारा सरकारी रणबीर कालेज के खेल मैदान, श्री रामलीला वेलफेयर कमेटी शेखुपुरा बस्ती द्वारा मैगनम पैलेस समीप स्थानीय महाराजा रणजीत ¨सह मार्केट, रामलीला मैदान शेखुपुरा बस्ती, रामलीला मैदान सुंदर बस्ती संगरूर में दशहरे के मेला आयोजित किया जाएगा।