चिता चिता समान हैं, बीमारियों का बनती है गढ़: समर्थ
जैन स्थानक मोहल्ले में जारी धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी की पाठशाला में ज्ञान के मोती बांटे जा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, संगरूर
जैन स्थानक मोहल्ले में जारी धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी की पाठशाला में ज्ञान के मोती बांटे जा रहे हैं। संसार में बहुत कम भाग्यशाली लोग हैं, जो मोतियों को हंसों की भांति चुगकर जीवन सफल बनाते हैं। बाकी संसार तो दुनिया के चकाचौध वाले झूठे पदार्थों की लालसा में जीवन व्यर्थ गंवा देते है।
हिदी वर्णमाला के छ शब्द पर चर्चा करते हुए कहा कि छह शब्द से शिक्षा मिलती है कि चिता को छोड़कर सुख में विचरना चाहिए। चिता की बीमारी सभी को लगी है। बार-बार सोचने से अगर परिणाम सही आता है, तो चितन बन जाता है। वरना चिता चिता समान हो जाती है। इसमें इंसान खत्म हो जाता है, लेकिन चिता कभी खत्म नहीं होती। इंसान के मरने के बाद उसकी चिता एक बार जलती है, लेकिन चिता इंसान को बार-बार जलाती है।
समर्थ महाराज ने कहा कि एक सेठ के घर बेटी ने जन्म लिया। दो चार दिन खुशी मनाई। बाद में सेठ को बेटी की पढ़ाई व शादी के लिए दहेज की चिता सताने लगी। सेठ ने खाना छोड़ दिया। पत्नी ने बहुत समझाया लेकिन सेठ नहीं माना। पत्नी ने बताया कि एक ज्योतिष ने उसने कुल चालीस वर्ष की आयु बताई है। अब वह 28 वर्ष की हो चुकी है। उसे बारह वर्ष और काम करना होगा। आटा पीसना पड़ेगा, कपड़े धोने पड़ेंगे, पोंछा लगाना होगा। सेठ ने हंसते कहा कि शुक्र करो कि तुम्हे यह काम एक दिन में नहीं करने पड़ेंगे। तभी पत्नी ने कहा कि यही मैं तुम्हे समझा रही हूं कि बेटी के दहेज की चिता मत करो। धीरे-धीरे सब कुछ बन जाएगा। एक दम से कुछ नहीं होता। व्यर्थ चिता करने से शरीर को रोग लगते हैं। इसलिए इससे बचने की जरूरत है।
समर्थ श्री महाराज ने कहा कि संसार में सभी को मिलकर काम करना चाहिए। एक दूसरे में कमी निकालने की बजाय खुद में कमी खोजनी चाहिए और सुधार करना चाहिए। इस मौके सहमंत्री सत भूषण जैन ने बताया कि कल महाराज श्री चिता से मुक्ति कैसे पाए पर चर्चा करेंगे।