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बड़ों का सम्मान और गरीब की सेवा से मिलता है सुख : बाबा प्यारा सिंह

सर्व धर्म सत्कार तीर्थ धमाना में बैसाखी से जारी सत्संग समागम के समापन के बाद सोमवार को साधु-संतों व संगत को बाबा प्यारा सिंह ने सिरोपा भेंट करते हुए विदा किया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 11:31 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 11:31 PM (IST)
बड़ों का सम्मान और गरीब की सेवा से मिलता है सुख : बाबा प्यारा सिंह
बड़ों का सम्मान और गरीब की सेवा से मिलता है सुख : बाबा प्यारा सिंह

संवाद सहयोगी, रूपनगर : सर्व धर्म सत्कार तीर्थ धमाना में बैसाखी से जारी सत्संग समागम के समापन के बाद सोमवार को साधु-संतों व संगत को बाबा प्यारा सिंह ने सिरोपा भेंट करते हुए विदा किया। इस दौरान विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में बाबा प्यारा सिंह जी की संगत पहुंची थी।

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इस दौरान संगतों ने बाबा प्यारा सिंह जी द्वारा बनवाए गए श्री दुर्गा मंदिर सहित श्री शेषनाग मंदिर, श्री शनिदेव मंदिर, सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर, श्री वरुण देव मंदिर, बाबा मस्त जी मंदिर, श्री विष्णु मंदिर, श्री सूर्य देव मंदिर में जहां सजदा किया वहीं इतिहासगढ़ साहिब में जाकर अखंड ज्योति के दर्शन करते हुए खुद को धन्य किया। इसके अलावा संगतों ने बाबा प्यारा सिंह की प्रेरणा से धमाना के जंगलों में जाकर जंगली जीवों को जहां चारा डाला, वहीं पक्षियों को विशेष रूप से तैयार करवाया गया अनाज भी डाला गया। जबकि जंगलों में बाबा जी द्वारा पशु पक्षियों के लिए विशेष रूप से बनवाए गए तालाबों में पानी भी भरवाया गया।

संगतों का मार्गदर्शन करते बाबा प्यारा सिंह जी ने कहा कि जीवन में जब सुख मिलता है। कोई भी परम पिता परमात्मा का शुकराना नहीं करता, लेकिन कभी थोड़ा सा दुख मिले तो हर कोई परमात्मा को याद करने लगता है। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि परमात्मा कभी किसी को सुख या दुख नहीं देते, बल्कि हम जो कर्म करते हैं उसी के हिसाब से फल देने का काम करते हैं। बाबा जी ने कहा कि अगर सुख लेना है, तो दूसरों को विशेषकर गऊ व गरीब तथा बुजुर्गो को सुख देना सीखना पड़ेगा। बाबा जी ने कहा कि उनके द्वारा संगत व समाज के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है वो सब परमात्मा के आदेश पर हो रहा है तथा स्पष्ट किया कि वो किसी को अपने पास से कुछ नहीं देते, बल्कि जिसके लिए जो कुछ परमात्मा ने देने का हुक्म दिया है उसी को पूरा कर रहे हैं। बाबा जी ने कहा कि पुरुषार्थ, सेवा व दान से जो आत्मिक शांति मिलती है उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता बस इतना समझ लेना चाहिए कि पुरुषार्थ, सेवा व दान करने के बाद ही इस सत्य का एहसास होता है। संगत व साधु समाज के लिए विशेष रूप से लंगर भी लगाया गया। बाबा जी के सेवादारों के द्वारा बाबा जी द्वारा रचित भजनों का गायन करते हुए संगतों को निहाल किया, जिसके बाद बाबा जी ने हर किसी को सिरोपा भेंट करते हुए विदा किया।


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