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लावारिस पशुओ व आवारा कुत्तों के आतंक से लोग परेशान

अरुण कुमार पुरी, रूपनगर सड़कों, गलियों तथा मोहल्लों में घूमते व आम लोगों पर जानलेवा ह

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Jun 2018 04:11 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jun 2018 04:11 PM (IST)
लावारिस पशुओ व आवारा कुत्तों के आतंक से लोग परेशान
लावारिस पशुओ व आवारा कुत्तों के आतंक से लोग परेशान

अरुण कुमार पुरी, रूपनगर

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सड़कों, गलियों तथा मोहल्लों में घूमते व आम लोगों पर जानलेवा हमला करते लावारिस सांड व कुत्तों की दहशत लगातार बढ़ती जा रही है। इस मामले में प्रशासन ही नहीं, बल्कि राज्य की सरकार भी लाचार बनी बैठी है। विडंबना यह है कि अगर कोई व्यक्ति लावारिस सांड या आवारा कुत्ते को मारता है अथवा उसे किसी प्रकार की क्षति पहुंचाता है तो उसके लिए तो सजा का प्रावधान है, लेकिन अगर कोई कुत्ता किसी बच्चे या बड़े पर हमला करते हुए उसे मौत के घाट उतार देता है तो प्रशासन के पास कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं है। बस इतना कहकर टाल दिया जाता है कि कुत्तों की नसबंदी करवाते हुए इनकी संख्या को नियंत्रित किया जाएगा तथा लावारिस सांडों को पकड़कर गोशाला में छोड़ दिया जाएगा। हालात यह है कि सरकार के पास कुत्तों की नसबंदी करने के लिए तो स्टाफ एवं वेटनरी डॉक्टर तो हैं, लेकिन कुत्तों को पकड़कर पशु अस्पताल पहुंचाने के लिए पंचायतों व नगर कौंसिलों के पास साधन व स्टाफ का अभाव बना हुआ है। जबकि लावारिस सांडों को गोशाला पहुंचाना तो दूर उसे पकड़ पाना भी नगर कौंसिल या पंचायतों के बस की बात नहीं है। पांच सालों में सांडों के हमले से 14 की गई जान, 50 हुए घायल

पिछले पांच साल के दौरान लावारिस पशुओं के कारण हुए विभिन्न हादसों की अगर बात करें तो बीते पांच साल के दौरान सांडों के हमले से जिला रूपनगर में लगभग 50 व्यक्ति घायल हो चुके हैं, जिनमें से 14 व्यक्तियों की जान गई। इसी प्रकार आवारा कुत्तों के हमलों में पांच साल के दौरान 80 व्यक्ति घायल हुए जिनमें 22 बच्चे भी शामिल हैं। इनमें से चार बच्चों सहित 11 अन्य व्यक्तियों को कुत्तों के हमले कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। इतने हादसे होने के बाद भी न तो प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाया तथा न ही राज्य सरकार ने कोई ठोस योजना बनाई। सरकार की इस उदासीनता के चलते आम लोगों में रोष के साथ-साथ दहशत भी पाई जा रही है। लावारिस पशुओं से निजात दिलाने की सरकार के पास कोई योजना नहीं

इंसान लावारिस पशुओं से परेशान है, जबकि इस समस्या से निजात दिलाने के लिए अभी तक सरकार के पास कोई योजना नहीं है। शहर में ही नहीं गांवों व कस्बों में लावारिस सांड व कुत्ते आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं। हर दिन आवारा कुत्ते किसी को नोच खाते हैं, जबकि सांड किसी न किसी पर हमला कर देते हैं, लेकिन सरकार व प्रशासन आंखे मूंदे बैठा है। सरकार को चाहिए या तो कुत्तों व लावारिस सांडों से स्थाई निजात दिलाएं अथवा लोगों को अपनी व बच्चों की सुरक्षा के लिए खुद कोई कार्रवाई करने की अनुमति दी जाए।

(समाज सेवक चरणजीत ¨सह रूबी) सरकार जल्द निकाले इसकी रोकथाम का हल

लगभग दो दशक पहले आवारा कुत्तों को सरकारी तंत्र द्वारा गोलियां खिलाकर मार दिया जाता था, जिसके चलते कुत्तों की संख्या नियंत्रित रहती थी तथा कभी कुत्तों का आतंक सुनने को नहीं मिलता था। लेकिन जब से कुत्तों व पशुओं को मारने पर रोक लगी है उस दिन से ही लावारिस पशुओं की संख्या व इनके हमले तो बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन इनसे बचाव का कोई ठोस उपाय नहीं खोजा जा सका है जिसे खोजने का दायित्व सरकार व प्रशासन का बनता है। सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कोई ठोस समाधान खोजना चाहिए।

(सरपंच सतनाम ¨सह, धमाना) मीट मार्केट के पास ज्यादा खतरा रहता है आवारा कुत्तों से

कुत्तों का सबसे अधिक आतंक मीट मार्केट व श्मशानघाटों के आसपास देखने को मिलता है, जबकि आवारा सांड जहां चाहे डेरा डाले देखे जा सकते हैं। इस मामले में सरकार व लोकल प्रशासन को ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे आवारा कुत्ते मीट मार्केट व श्मशान भूमि से दूर रहें। इसके अलावा कुत्तों की नसबंदी प्रक्रिया में जहां तेजी लाई जानी चाहिए वहीं जिन पालतु कुत्तों के मेडिकल कार्ड नहीं बने हुए हैं उनके मालिकों को जुर्माना करने का प्रावधान होना चाहिए। सरकार अगर ऐसा नहीं कर सकती है तो आवारा कुत्तों को मारने की छूट दी जानी चाहिए।

(समाज सेवी, ध्रुव नारंग) कुत्ते के काटने से रेबीज का खतरा फिर इसे मारना आपराध की श्रेणी में

हर कोई जानता है कि कुत्ते के काटने से रेबीज होने का खतरा मंडराता रहता है, जबकि पागल कुत्ते के काटने से मौत भी हो सकती है फिर भी कुत्ते को मारना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। जिस पर दोबारा विचार करते हुए इस नियम में संशोधन किया जाना चाहिए। अगर नियम नहीं बदला जा सकता है, तो जिस क्षेत्र में कुत्ते के काटने की घटनाएं हों उस क्षेत्र की नगर कौंसिल या पंचायत को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, क्योंकि आवारा कुत्तों व पशुओं की संख्या व हमलों को रोकना एवं नियंत्रित करना नगर कौंसिल व पंचायतों का दायित्व है।

(शिवसेना प्रदेश उपाध्यक्ष अश्वनी शर्मा)


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