लॉकडाउन ने बदली जीवनशैली, शुद्ध हुआ पर्यावरण
कोरोना की रोकथाम के लिए लगाए गए कर्फ्यू व लॉकडाउन से जहां लोग घरों में बंद होने के लिए मजबूर हो गए वहीं दो माह की अवधि ने आम लोगों की जीवनशैली में भी बड़े बदलाव किए हैं
संवाद सहयोगी, रूपनगर : कोरोना की रोकथाम के लिए लगाए गए कर्फ्यू व लॉकडाउन से जहां लोग घरों में बंद होने के लिए मजबूर हो गए, वहीं दो माह की अवधि ने आम लोगों की जीवनशैली में भी बड़े बदलाव किए हैं और वातावरण भी काफी हद तक शुद्ध हो गया है, जिससे अस्थमा एवं सांस के रोगियों को जहां बड़ी राहत दी है
कर्फ्यू के पहले कुछ दिन आम लोगों पर भारी जरूर पड़े लेकिन उसके बाद लोगों की दिनचर्या में बदलाव होना भी शुरू हो गया। स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन, पुलिस व प्रशासन की घुड्डकी और कोरोना के भय ने लोगों को सुबह व शाम व्यायाम करने के लिए प्रेरित किया वहीं लोग मांसाहार को भूल शाकाहारी तो बने साथ घर के पौष्टिक भोजन के साथ भी जुड़ गए।
इसके अलावा जिले का वातावरण इतना शुद्ध हो गया कि एक लंबे अरसे के बाद आसमान गहरे नीले रंग का देखने के मिलने लगा, आसपास की पहाड़ियों पर हरियाली चमकने लगी, खुले वातावरण में पक्षियों के झुंड भी दिखने लगे हैं परिवार से मिलकर की गेहूं की कटाई : भाग सिंह
किसान भाग सिंह ने कहा कि कोरोना वायरस ने किसानों को को बाहरी मजदूरों के चंगुल से मुक्त कर दिया है व इस बार परिवारों ने मिलकर फसल की कटाई की है।
गांवों में बढ़ी एकता : रूपिंदर सिंह
गांव ख्वासपुर के किसान रूपिदर सिंह रूपा के अनुसार कोरोना वायरस के खतरे कारण लगे कर्फ्यू ने गांवों में रहने वालों में एकता को बढ़ा दिया है। मजदूरों की कमी को खलने नहीं दिया गया व सभी ने बिना किसी भेदभाव एक दूसरे की मदद करना सीख लिया है। बाहर का खाना पीना छूटा : प्रेम कुमार
रिटायर्ड अधिकारी प्रेम कुमार शर्मा के अनुसार कर्फ्यू ने परिवारों को एकजुट होकर रहना व इकट्ठे बैठकर खाना पीना जहां सिखा दिया है वहीं सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि बाहरी खाना पीना लगभग हर किसी का छूट गया है।
40 फीसद कम हुई अस्थमा व हार्ट अटैक के मरीज : डॉ. परमार
डॉ. आरएस परमार ने कहा कि कोरोना वायरस का जहां हर किसी को खतरा बना हुआ है वहीं इस खतरे के बीच प्रदूषणरहित हुआ वातावरण हर किसी के स्वास्थ्य के लिए विशेषकर सांस या अस्थमा के बीमारों के लिए संजीवनी का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों की तुलना में इस बार अस्थमा के अटैक से पीड़ित मरीजों की संख्या व अन्य बीमारियों में लगभग 40 फीसदी कम हुई है।