तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने सतलुज सदन से जुड़ी यादों को किया साझा
14वें तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा मंगलवार को नंगल के ऐतिहासिक विश्राम गृह सतलुज सदन पहुंचे।
सुभाष शर्मा, नंगल: चंडीगढ़ से मैकलोडगंज जा रहे 14वें तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा मंगलवार को नंगल के ऐतिहासिक विश्राम गृह सतलुज सदन पहुंचे। वे आज बुधवार को हिमाचल की ओर रवाना होंगे। सतलुज सदन पहुंचने पर भाखड़ा बांध के चीफ इंजीनियर एके अग्रवाल, एसडीएम कनु गर्ग व डिप्टी चीफ इंजीनियर एचएल कंबोज तथा तहसीलदार राम किशन आदि ने धर्म गुरु को पुष्प गुच्छ भेंट किए। उनके साथ करीब 30 लोग आए हुए हैं, वहीं गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि भी धर्म गुरु के साथ मौजूद हैं। इस दौरान धर्म गुरु ने मीडिया से कोई बात नहीं की। जैसे ही सतलुज सदन में वे प्रवेश करने लगे, तभी उन्होंने सतलुज सदन से जुड़ी यादों को साझा कर कोरिडोर में लगे सभी चित्रों को निहारा। उन्होंने वर्ष 1954 के उस चित्र को बड़े ध्यान से रुक कर देखा, जिसमें भाखड़ा बांध के निर्माण समय यहां आए चीन के पूर्व प्रधानमंत्री चऊं इन लेई को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू कुछ बता रहे थे। गौर हो कि अध्यात्मिक धर्म गुरु दलाई लामा गत 13 अक्टूबर रविवार को चंडीगढ़ जाते समय हिमाचल के जिला मुख्यालय ऊना में रुके थे, जहां उन्होंने अनौपचारिक बातचीत में भारत और चीन के बीच अच्छे रिश्ते होना आवश्यक बताया था। उस दिन उन्होंने कहा था कि दोनों देशों की सभ्यताएं बहुत पुरानी हैं व आर्थिक तौर पर भी दोनों ही देश बड़ी शक्तियां हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते बेहद जरूरी हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हम तिब्बती नालंदा दर्शन का अनुसरण कर रहे हैं और नालंदा दर्शन तर्क पर आधारित है। आज चीन के कुछ बुद्धिजीवी भी मानते हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म पौराणिक नालंदा परंपरा के अनुसार है, जो पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने राजनीतिक फैसलों से अपने आप को अलग कर लिया है। भारत में रहने वाले मुट्ठी पर तिब्बती शरणार्थियों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है। आज तिब्बतियों की चुनी हुई सरकार सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही है। नंगल में हुआ था भारत व चीन के बीच पंचशील समझौता
भारत व चीन के मध्य पंचशील समझौता नंगल में उस समय हुआ था, जब चीन के पूर्व प्रधानमंत्री चऊं इन लेई निमंत्रण मिलने पर भाखड़ा बांध के चल रहे निर्माण को देखने आए थे। 28 अप्रैल 1954 को समझौता होने के बाद ही 'हिदी चीनी भाई-भाई' का नारा लगा था। बता दें कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू विभिन्न देशों के प्रधान मंत्रियों व जनप्रतिनिधियों को समय-समय पर यहां बुला कर बांध के चल रहे निर्माण कार्यो की जानकारी दिया करते थे। इसके पीछे उनका मकसद यह भी था कि विभिन्न देशों के साथ भारत के संबंध मधुर बन सकें। उस दौरान जब चीन के प्रधानमंत्री चऊं इन लेई भारत आए, तो पं. नेहरू ने चीन के साथ बेहतर सबंधों की नींव रख दी। तिब्बत संबंधी भारत-चीन समझौते में सर्वप्रथम इन पांच सिद्धातों को आधारभूत मानकर संधि की गई। भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड के नंगल स्थित ऐतिहासिक सतलुज सदन विश्राम गृह में आज भी उस समय की पुरानी यादों को संजोए रखा गया है, जहां पर बने ग्लास हाऊस यानि शीशे के कमरे में किसी समय पूरे विश्व भर में चर्चित रहे पंचशील समझौते पर भारत व चीन के मध्य हस्ताक्षर हुए थे। यह स्थल तिब्बत के राष्ट्र अध्यक्ष दलाई लामा को बेहद पसंद है। इस लिए वे अक्सर यहां रुक कर रात बिताना पसंद करते हैं। बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है 'पंचशील' शब्द
'पंचशील' शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पांच निषेध होते हैं। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था। पंचशील शब्द की परिभाषा है 'हत्या न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, असत्य न बोलना तथा मदिरापान न करना'। मानव कल्याण तथा विश्वशाति के आदशरें की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पांच आधारभूत सिद्धात हैं, जिन्हें पंचसूत्र अथवा पंचशील कहते हैं।