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हमारी खुशियों के लिए 3600 परिवारों ने झेला था विस्थापन का दर्द

नंगल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वर्ष 1908 में जब भारतीय जनमानस में बगावत की भावना तूफान जैसे उफान पर थी, तब इसी हुकूमत के लेफ्टिनेंट गवर्नर पंजाब सर लुइस डैन ने चीते की छलांग को देखकर मानवता के लिए भाखड़ा डैम के रूप में लंबी छलांग लगाने का सपना संजोया था। हालांकि, सपने को साकार करने से पहले ही लुइस को भारत छोड़ना पड़ा था, लेकिन तब तक समृद्धि के प्रतीक भाखड़ा बांध निर्माण का ख्याल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दिल में घर कर चुका था।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 09:43 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 09:43 PM (IST)
हमारी खुशियों के लिए 3600 परिवारों ने झेला था विस्थापन का दर्द
हमारी खुशियों के लिए 3600 परिवारों ने झेला था विस्थापन का दर्द

सुभाष शर्मा, नंगल

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ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वर्ष 1908 में जब भारतीय जनमानस में बगावत की भावना तूफान जैसे उफान पर थी, तब इसी हुकूमत के लेफ्टिनेंट गवर्नर पंजाब सर लुइस डैन ने चीते की छलांग को देखकर मानवता के लिए भाखड़ा डैम के रूप में लंबी छलांग लगाने का सपना संजोया था। हालांकि, सपने को साकार करने से पहले ही लुइस को भारत छोड़ना पड़ा था, लेकिन तब तक समृद्धि के प्रतीक भाखड़ा बांध निर्माण का ख्याल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दिल में घर कर चुका था। पहली बार गोर्डन नामक इंजीनियर ने 1909 में बांध निर्माण के लिए इस स्थल को उपयुक्त करार दिया था। इसके बाद निर्माण की रूपरेखा तैयार हुई और वर्ष 1944 में अमेरिका के ब्यूरो आफ रिक्लेमेशन के चीफ इंजीनियर डॉ. जेएल साबेज ने इस स्थल का निरीक्षण करने के बाद 225.55 मीटर ऊंचा बांध निर्माण को हरी झंडी दिखाई। देश की आजादी के बाद जहां लोग गुलामी से निजात पाने के बाद खुशी मना रहे थे, तब भाखड़ा गांव के लोग गहरी चिंता में डूब गए थे, क्योंकि वे विदा होने जा रहे थे अपने प्यारे से छोटे गांव भाखड़ा से जहां कुछ समय बाद उनका गांव जलमग्न होने जा रहा था। बेहद उपजाऊ भूमि वाले भाखड़ा गांव सहित कुल 371 गांव भाखड़ा बांध की गोबिंद सागर झील में जलमग्न हो गए थे। इन गांवों से विस्थापित हुए करीब 3600 परिवार इन दिनों हरियाणा प्रांत के जिला फतेहाबाद के इर्दगिर्द गांवों में बसे हुए हैं। विस्थापितों को नहीं मिला कोई श्रेय

भाखड़ा गांव की पुरानी यादों को अपने मन में संजोए बैठे अमर सिंह देवी बताते हैं कि नम आंखें लिए रोते हुए हरियाणा की ओर विदा हुए थे भाखड़ा बांध क्षेत्र से हजारों परिवार। हरियाणा के जिला फतेहाबाद के टोहाणा, रत्ता टिब्बा, बोसोवाल तथा टिब्बी चंदेली में बस चुके परिवारों में से करीब 20 प्रतिशत ऐसे हैं जो आज तक यहां हिमाचल में वापस नहीं लौटे हैं। कुछ वर्ष पहले जब विस्थापित हुए पुराने बुजुर्गो को यह पता चला कि बांध का पानी काफी नीचे चला गया है, तब कई लोग यहां दूर दराज से अपने खंडहरनुमा घरों को नम आंखों से देखने आए थे। विस्थापितों में यह रोष है कि उन्हें विस्थापित करने के बाद न तो हिमाचल व भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड ने कोई श्रेय दिया है व न ही केंद्र सरकार ने विस्थापितों के लिए बीबीएमबी में नौकरियों जैसा कोई आरक्षण दिया है। इन हालातों में उजड़ चुके लोग जैसे-तैसे जीवन निर्वाह करने को मजबूर हैं। बुजुर्गो के अनुसार भाखड़ा गांव व इससे सटे अन्य इलाकों में हिमाचल के जिला कांगड़ा के इर्दगिर्द वाली उपजाऊ भूमि जैसे ही खेत थे, जहां धान, गन्ना, मक्की व गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार हुआ करती थी। मौसम भी काफी अच्छा था, लेकिन इसके विपरीत परिस्थितियों में जहां विस्थापन के बाद हरियाणा में हिमाचली लोगों को भेजा गया वहां उनके जीवन निर्वाह के बिल्कुल विपरीत न केवल तापमान का ग्राफ दोगुना यानि 45 डिग्री के आसपास था वहीं पानी तथा सुरक्षा का अभाव भी इस कद्र बना हुआ था जिसे यहां से विस्थापित हुए लोग बर्दाश्त नहीं कर सके। भाखड़ा बांध बनने के बाद यहां रहने वाले लोग परेशानी भरे हालातों में रहना सीख चुके हैं व जैसे-तैसे अपने परिवारों के पेट पाल रहे हैं। हाल ही में हिमाचल सरकार की ओर से विस्थापितों के लिए गठित की गई सलाहकार कमेटी के सदस्य बलदेव राज खुलमीं बताते हैं कि अब उम्मीद है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों से हिमाचल को बीबीएमबी से मिले 7.19 फीसदी हिस्से के चलते इस इलाके की हालत सुधर जाएगी। खुशहाल नहीं आर्थिक तंगी का दंश झेल रहे हैं भाखड़ा बांध के विस्थापित---

भाखड़ा बांध के निर्माण समय विस्थापित हुए लोगों की संस्कृति ही बदल गई है , जबकि कई परेशानी से जूझते हुए जैसे-तैसे जीवन निर्वाह करने को मजबूर हैं। विस्थापित होने के बाद इन दिनों हरियाणा के टोहाणा व अन्य इलाकों में रह रहे भाखड़ा बांध विस्थापितों के करीब 800 परिवार ऐसे हैं जो वापस भाखड़ा नहीं आए हैं। हरियाणा की संस्कृति से जुड़ चुके सभी हिमाचली अब तो हिमाचल की भाषा भी भूल चुके हैं। पुराने बुजुर्ग ही कभी-कभार अपनों व अपने पुराने गांव देखने के लिए यहां आते रहते हैं। हरियाणा के गर्म इलाके में रहना सीख चुके हिमाचली विस्थापित आज भी सेना की डोगरा रेजीमेंट में भर्ती नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि हरियाणा में रहने के कारण अब उन्हें हिमाचली नहीं माना जा रहा है। हरियाणा वाले भी उन्हें अपना नहीं मान रहे हैं। इसके अलावा भाखड़ा बांध का संचालन कर रहे बीबीएमबी में भी विस्थापितों को नौकरी की कोई व्यवस्था नहीं है।

विस्थापितों को मिले भारत सरकार की पुनर्वास योजना का लाभ

विस्थापित चाहते हैं कि उन्हें भी हाल ही में बने टीहरी व कोल डैम जैसे बांधों के विस्थापितों की तरह भारत सरकार की पुनर्वास योजना का लाभ मिलना चाहिए। अमर सिंह देवी बताते हैं कि बांध निर्माण के समय 44256 एकड़ जमीन बांध के लिए अधिग्रहित की गई थी। दूसरी तरफ यदि बात करें भाखड़ा बांध के इर्दगिर्द रह रहे विस्थापितों की, तो उनके हालात भी बेहतर नहीं हैं। परेशानी भरे हालातों में जीवन निर्वाह करने को मजबूर बांध क्षेत्र में रहने वाले लोग जहां की सुरक्षा व्यवस्था से बेहद परेशान हैं वहीं थोड़ी बहुत जमीन पर की जाने वाली खेती को जंगली जानवर भारी नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं। रोजगार के साधनों का अभाव होने के चलते एक नहीं कई ब्राह्मण परिवारों के लोग मछली पकड़ने का धंधा अपना चुके हैं। भाखड़ा गांव व इसके आसपास न तो कोई खेल स्टेडियम है व न ही कोई कालेज तथा न ही स्कूल में साईस लैब है। दूर जाकर चिकित्सा व शिक्षा हासिल करनी पड़ रही है। बांध बनने के बाद हरियाणा के हिसार के निकट बोसोवाल में सेटल न होने के बाद इन दिनों में जिला सोलन के गांव रतयोड़ में रह रहे अमर नाथ गौतम के परिजनों तिलक राज, जगदेव गौतम चाहते हैं कि वे अपने गांव की वादियों में आकर अपनी हिमाचली संस्कृति से जुड़ें, लेकिन अपनों के लिए तरस रही आंखों की सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार ने भी भाखड़ा बांध विस्थापितों के उत्थान के लिए कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है। विस्थापितों की बदोलत ही आज भाखड़ा बांध देश की प्रगति में करोड़ों का नहीं बल्कि अरबों रुपए का योगदान दे रहा है।

283.90 करोड़ की लागत से 1962 में बना था बांध बांध की ऊंचाई देश की राजधानी दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार की ऊंचाई के तीन गुना से भी अधिक है। 283.90 करोड़ की लागत से वर्ष 1962 में बन कर पूरा हुआ भाखड़ा बांध उस समय एशिया में सबसे ऊंचा व विश्व में ऊंचाई में दूसरे स्थान पर था। जलस्तर 1680 फीट तक पहुंचने पर भाखड़ा बांध 2 इंच तक झुकने की क्षमता रखता है। खास बात यह है कि जल स्तर कम होते ही डैम अपनी सामान्य स्थिति पर आ जाता है। भाखड़ा बांध के निर्माण में कुल एक लाख टन सरिये का इस्तेमाल होने के कारण यह इंजीनिय¨रग में एक चमत्कारी परियोजना है। भाखड़ा बांध के निर्माण में उपयोग की गई सीमेंट, कंक्रीट की मात्रा धरती के भू-मध्य रेखा पर 2.44 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण हेतु पर्याप्त है। भाखड़ा बांध का तकनीकी विवरण ---

बांध की किस्म गुरुत्वाकर्षण पर आधारित कंक्रीट संरचना

बांध की नींव के निम्न स्तर से ऊंचाई 225.55 मीटर

बांध की नदी तल से ऊंचाई 167.64 मीटर

बांध की ऊपर की लंबाई 518.16

ऊपर से चौड़ाई 9.14 मीटर

तल पर लंबाई 99.00 मीटर

आधार तल की चौड़ाई 190.50 मीटर

बांध की समुद्र तल से ऊंचाई 518.16 मीटर

बिजली की लागत 27 पैसे प्रति यूनिट बोर्ड के संचालक

फोटो 21 एनजीएल 13, 14, 15

भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड के चेयरमैन पद पर तैनात इंजी. डीके शर्मा के अलावा इंजी. एके अग्रवाल भाखड़ा बांध में मुख्य अभियंता (सिंचाई) तथा इंजी. जेके गुप्ता मुख्य अभियंता उत्पादन पद पर तैनात हैं। इनकी देखरेख में जल भंडारण व विद्युत उत्पादन का कार्य चल रहा है। इस समय बोर्ड सदस्य के दो पद खाली पड़े हैं। आज मनाया जाएगा स्थापना दिवस

भाखड़ा बांध का 55वें समर्पण दिवस आज 22 अक्तूबर सोमवार को मनाया जा रहा है। बांध के साथ शहीद स्मारक पर सुबह 10 बजे बीबीएमबी के वरिष्ठ अधिकारी व कर्मचारी श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। भाखड़ा तक कर्मचारियों को पहुंचाने के लिए विशेष ट्रेन सुबह 9.10 बजे पर नंगल से रवाना होगी वहीं 9.30 बजे तक शहीद स्मारक तक बसें भी चलाई जाएंगी। निराशाजनक है कि प्रतिवर्ष राष्ट्र निर्माण में अरबों के राजस्व का योगदान दे रहे भाखड़ा बांध के समर्पण दिवस पर कोई भी केंद्र स्तर का नेता व बड़ा अधिकारी नहीं पहुंच रहा है जबकि स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू भाखड़ा बांध बनवाने के लिए यहां 13 बार आए थे।


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