व्हीलचेयर को तरसते मरीज, स्ट्रेचर पर अस्पातल की व्यवस्था
साल 1970 में बने रूपनगर सरकारी अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड समेत ओपीडी के बाहर और अंदर न तो मरीजों के लिए पूरी व्हीलचेयर हैं और न ही स्ट्रेचर।
अजय अग्निहोत्री, रूपनगर
साल 1970 में बने रूपनगर सरकारी अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड समेत ओपीडी के बाहर और अंदर न तो मरीजों के लिए पूरी व्हीलचेयर हैं और न ही स्ट्रेचर। वहीं अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि यहां पर दस व्हीलचेयर और 15 स्ट्रेचर हैं, पर मौके पर सिर्फ एक - दो ही व्हीलचेयर और स्ट्रेचर नजर आए। । मौके का दौरा करने पर जागरण संवाददाता ने टीम के साथ सिविल अस्पताल में करीब चार घंटे बिताए। इस दौरान आए मरीजों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिली कि उन्हें स्ट्रेचर और व्हीलर ऑन दि स्पाट मिल जाएं। सिविल अस्पताल के गेट पर पार्किंग वाला जरूर रोकता है और पर्ची कटवाकर वाहन ले जाने देता है, लेकिन अस्पताल में पहुंचने वाले मरीज को अस्पताल के भीतर डाक्टर तक ले जाने के लिए प्रबंध नाकाफी हैं। ओपीडी में स्ट्रेचर तक भी दिखाई नहीं दिए, व्हीलचेयर मिलना तो दूर की बात है। रूपनगर सिविल अस्पताल में ओपीडी ग्राउंड फ्लोर पर है, लेकिन अस्पताल मे दाखिल होने के लिए रैंप बना है और सीढि़यां भी हैं। यहां ओपीडी में दाखिल होने वाले दरवाजों के पास या डाक्टरों के कमरों के पास कोई व्हील चेयर मौके पर नहीं मिली। जच्चा- बच्चा वार्ड के बाहर रैंप बना है, पर वहां भी व्हीलचेयर नहीं थी। इमरजेंसी वार्ड के बाहर दो स्ट्रेचर थे। एक स्ट्रेचर पर एक मरीज को उसके परिवार की महिलाएं खुद ले जा रही थीं। सिविल अस्पताल में पहली और दूसरी मंजिल पर मेडिकल और सर्जिकल वार्ड हैं। इनमें जाने के लिए सीढि़यां और रैंप की व्यवस्था है, लेकिन रैंप के बाहर भी व्हीलचेयर या स्ट्रेचर नहीं थे। इमरजेंसी वार्ड में जब नर्सिंग सिस्टर जैसमीन से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इमरजेंसी में ही चार व्हीलचेयर और पांच स्ट्रेचर हैं। जब उन्हें पूछा गया कि वह कहां हैं, तो उन्होंने कहा कि मरीज के परिजन ले जाते हैं, लेकिन वापस वार्ड में छोड़कर नहीं जाते। जब उनसे कहा गया कि क्या अटेंडेंट या क्लास फोर नहीं है जो व्हीलचेयर वापस वार्ड में ले जाए, तो उन्होंने कहा कि एक ही अटेंडेंट है।
1000: प्रतिदिन ओपीडी:
450: बुजुर्ग व दिव्यांग आते हैं इलाज करवाने।
3: मंजिलें हैं अस्पताल में।
6::: व्हीलचेयर डेढ़ साल पहले खरीदी थीं।
4:: माह पहले चार व्हीलचेयर और खरीदीं
5::: हजार है प्रत्येक की कीमत।
20: व्हीलचेयर की जरूरत।
ऐसी है अस्पताल में व्यवस्था ::: लिफ्ट नहीं है
::: ओपीडी ग्राउंड फ्लोर पर
::: पहली मंजिल में मेडिकल वार्ड।
:: दूसरी मंजिल में सर्जिकल वार्ड। नहीं मिली व्हीलचेयर सांस की तकलीफ की वजह से मुझे यहां 108 एंबुलेंस की मदद से यहां लाया गया। घुटने व पीठ में दर्द रहता है। इमरजेंसी वार्ड में ले जाने के लिए मौके पर व्हीलचेयर नहीं मिली।
तरसेम सिंह, सीनियर सिटीजन, चमकौर साहिब पैदल पहुंचा डॉक्टर के पास मैं वीरवार को अस्पताल में इलाज के लिए आया। मुझे शरीर के निचले हिस्से में तकलीफ है, इसलिए ज्यादा चल- फिर नहीं सकता। यहां आने पर मौके पर व्हीलचेयर तक नहीं मिली। मेरे साथ मेरा बेटा भी आया था। उसे पर्ची बनाने में ही करीब दो घंटे का समय लग गया। इसके बाद बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के कमरे तक पैदल ही पहुंचा।
निर्मल सिंह, भरतगढ़ ।
ओपीडी के पास हो स्ट्रेचर मैं ज्यादा चल- फिर नहीं सकता। मेरी रीढ़ की हड्डी में तकलीफ है। परिवार की महिलाएं खुद इमरजेंसी वार्ड में जाकर पहले स्ट्रेचर लेकर आई हैं। फिर किसी तरह स्ट्रेचर पर बिठाया। इसके बाद ओपीडी के गेट से 40 नंबर कमरे में ब्लड चढ़ाने के लिए ले जाया गया। स्ट्रेचर ओपीडी के पास भी होना चाहिए।
बलबीर सिंह , जटाणा।
स्टाफ को करेंगे जागरूक: एसएमओ उधर सिविल अस्पताल रूपनगर के एसएमओ डॉ. तरसेम सिंह ने कहा कि अस्पताल में पर्याप्त संख्या में व्हीलचेयर व स्ट्रेचर हैं, लेकिन मरीज के रिश्तेदार एक बार व्हील चेयर लेकर तब नहीं छोड़ते, जब तक उनका मरीज घर न चले जाए। और तो और मरीज को ले जाते वक्त व्हीलचेयर व स्ट्रेचर परिजन वहीं छोड़ देते हैं, जहां से वह मरीज को लेकर जाते हैं। लोगों को वापस वहीं व्हीलचेयर व स्ट्रेचर छोड़ने चाहिए, जहां से वो लेकर गए थे। अस्पताल स्टाफ को इस बारे जागरूक किया जाएगा।