चार सदी पुराने रोजा शरीफ में इस बार नहीं अदा कर सकेंगे ईद की नमाज
कोरोना संकट के चलते चार सदी पुराने अल्लाह के दरबार में ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को घरों से ही नमाज अदा करनी होगी।
धरमिदर सिह, फतेहगढ़ साहिब : कोरोना संकट के चलते चार सदी पुराने अल्लाह के दरबार में ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को घरों से ही नमाज अदा करनी होगी। फतेहगढ़ साहिब में हजरत शेख अहमद फारूकी सरहिदी मुजद्द अलफसानी की दरगाह पर बने रोजा शरीफ का इतिहास करीब चार सौ साल पुराना है। तभी से इस दरबार में हर ईद पर पंजाब के विभिन्न जिलों से मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करने आते थे। हजारों की तादाद में आने वाले श्रद्धालुओं की आमद को देखते हुए रोजा शरीफ में एक सप्ताह पहले ही ईद की तैयारियां शुरू हो जाती थीं।
रोजा शरीफ के बाहर का बाजार एक सप्ताह पहले ही गुलजार होने लगता था। बाजार में कपड़े की खरीदारी को लेकर लोग काफी उत्साहित होते थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते धार्मिक स्थलों को खोलने पर पाबंदी लगाई हुई थी। वहीं कोरोना के इस संकट में विभिन्न राज्यों से आकर रोजा शरीफ के बाहर दुकानें लगाने वाले भी नदारद हैं। आलम यह है कि रोजा शरीफ सुनसान पड़ा है। बाजार की सभी दुकानें भी बंद हैं। सोमवार को यहां किसी को नमाज अदा करने की इजाजत नहीं होगी।
खलीफा की अपील, घरों में नमाज पढ़ें
रोजा शरीफ के खलीफा सैयद मोहम्मद सादिक रजा मुजद्दीने मुस्लिम समुदाय के लोगों को घरों में रहकर नमाज पढ़ने की अपील करते हुए कहा कि विश्व भर में कोरोना का जो संकट आया है, वो भी अल्लाह की मौज है। इस संकट से उभारने की ताकत भी अल्लाह ही रखता है। सरकार का जो भी आदेश है, उसकी पालना करना हमारा फर्ज है। इसी में सभी की भलाई है।
रोजा शरीफ का इतिहास
रोजा शरीफ फतेहगढ़ साहिब में हजरत शेख अहमद फारूकी सरहिदी मुजद्द अलफसानी की दरगाह है। इसे मुस्लिम समुदाय का दूसरा मक्का मदीना भी कहा जाता है। यहां पर चार सदियों से वार्षिक उर्स होते आ रहे हैं। वार्षिक उर्स में पाकिस्तान, बांग्लादेश, समेत कई अरब देशों से मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल होते हैं। शेख अहमद फारूकी 1563 ई. से 1624 तक अकबर और जहांगीर के समय इस स्थान पर रहते थे।