हौसले के पंख से ऊंची उड़ान: खेतों में मजदूरी से बैंकर्स कमेटी तक पहुंचीं पंजाब की शिंदरपाल
पंजाब के पटियाला के गांव मवी सपां शिंदरपाल कौर कभी खेतों में मजदूरी करती थीं और आज वह बैंकर्स कमेटी की बैठकों को संबोधित करती हैं। शिंदर ने हौसले के पंख से ऊंची उड़ान भरी है।
पटियाला, [दीपक मौदगिल]। हौसले, मेहनत और जज्बे की ताकत से सपने को साकार कर ऊंची मंजिल हासिल कैसे की जा सकती है यह पंजाब की शिंदरपाल से सीखें। पटियाला के गांव मवी सपां की शिंदरपाल कौर महिला सशक्तीकरण की अद्भूत उदाहरण हैं। यह महिला उद्यमी कठिन परिश्रम से खुद आत्मनिर्भर और कामयाब हुईं ही, अन्य जरूरतमंद महिलाओं की आजीविका का जरिया भी बन गई हैं। दो बच्चों की मां 42 वर्षीय शिंदरपाल कौर किसी समय कपड़ों की सिलाई व खेतों में मजदूरी कर घर चलाने के लिए जद्दोजहद करती थीं। आज महज दस दिन में 60 हजार रुपये से अधिक मुनाफा अकेले कमा लेती हैं।
मजदूरी करने वाली शिंदरपाल आज राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी की बैठक को करती हैं संबोधित
शिंदरपाल की कामयाबी का यह सफर 2017 में चार हजार रुपये के कर्ज से शुरू हुआ। शुरूआत में शिंदरपाल कौर ने माता गुजरी सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़कर टोका करने वाली मशीन (चारा काटने की मशीन) के लिए चार हजार रुपये पर कर्ज लिया। यह काम चल पड़ा और आमदनी होने लगी तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा। उन्होंने आगे कदम बढ़ाने के लिए लोन पर सेकेंड हैंड थ्रीव्हीलर खरीद लिया। उसके बाद फुलकारी और खिलौने बनाने का प्रशिक्षण लेकर इसका काम शुरू किया। इसके बाद शिंदर ने फुलकारी और खिलौने बनाकर सरस मेलों में जाना शुरू किया। यहां से आमदनी तीन गुना तक बढ़ गई और सारे कर्ज चुका दिए।
इसके बाद भी शिंदरपाल के आगे बढ़ने का सफर जारी रहा। उन्होंने खेतीबाड़ी लोन लेकर थोड़ी जमीन भी खरीदी और खेती के लिए उसे ठेके पर दे दिया। इसी दौरान उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी के टूरिज्म व होटल मैनेजमेंट डिपार्टमेंट से खाना बनाने व परोसने की ट्रेनिंग हासिल की।
इसके बाद उन्होंने सरकारी मीटिंगों के लिए खाना उपलब्ध कराना और परोसना शुरू किया। इसी साल हुए पटियाला हेरिटेज फेस्टिवल में उन्हाेंने पंजाबी फूड स्टाल लगाकर दो लाख रुपये से ज्यादा की बिक्री की। कामयाबी की सीढिय़ां चढ़ने के दौरान आठवीं पास शिंदर ने दसवीं भी पास कर ली। अब वह राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की मीटिंग को अकसर संबोधित करती हैं।
सुच्चा मोती महिला ग्राम संगठन बनाया
शिंदरपाल कौर बताती हैं कि माता गुजरी सेल्फ हेल्प ग्रुप से सहायता के बाद उम्मीद जगी तो अपने ही गांव में 'सुच्चा मोती महिला ग्राम संगठन' नाम से समूह बना लिया। इस समूह में 17 महिलाओं को जोड़ा, अब उनकी संख्या 31 हो गई है। उनको फुलकारी और खिलौने बनाने का प्रशिक्षण दिया और सरस मेलों में भेजना शुरू किया। वह कहती हैं,' मैं वाहेगुरु की शुक्रगुजार हूं कि आज इन महिलाओं के घरों में भी चूल्हे जलने लगे हैं। किसी चीज के लिए उनके परिवार अब हाथ फैलाने को मजबूर नहीं हैं।'
सकारात्मक सोच हो तो भाग्य भी साथ देता है
शिंदरपाल का यह सफर गांव तक ही नहीं थमा, वह दूसरे गांवों में जाकर जरूरतमंद महिलाओं का सहारा बन रही है। बकौल, शिंदरपाल कौर शुरू-शुरू में उन्हें इस तरह अलग-अलग कार्य आगे बढ़ाने में दिक्कत तो हुई लेकिन महज तीन साल में सब सहज हो गया। उनके साथ-साथ गांव की दूसरी महिलाओं की आर्थिकता मजबूत हुई तो उसका हौसला भी बढ़ा। वह कहती हैं, 'प्रयास सफल हो जाएं तो हर प्रकार की दिक्कत इंसान भूल जाता है, थकावट उतर जाती है। सकारात्मक रवैया हो तो कोई काम छोटा-बड़ा या महिला-पुरुष का नहीं लगता, फिर भाग्य भी साथ देता है।'
सरबजीत कौर।
सरबजीत कौर भी उसी राह पर
शिंदरपाल कौर के सेल्फ हेल्प ग्रुप के साथ जुड़ी सरबजीत कौर ने बताया कि अब घर का खर्च वह खुद ही चलाती है। कुछ बचत भी होने लगी। वह भी शिंदरपाल कौर की तरह ही अलग-अलग कामों में भाग्य आजमा रही है। सिलाई-कढ़ाई करने के साथ साथ विभिन्न सरकारी आयोजनों में कुकिंग का काम शुरू किया है।
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