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पावरकॉम का आश्वासन: 2004 की पॉलिसी में बदलाव कर मृतकों के आश्रितों को देंगे नौकरी

पटियाला नौकरी की मांग पर छठे दिन तक पानी की टंकी पर चढ़े मृतकों के आश्रितों को पावरकॉम प्रबंधन ने एक बार फिर आश्वासन देकर टंकी के नीचे उतारा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 11:56 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 06:04 AM (IST)
पावरकॉम का आश्वासन: 2004 की पॉलिसी में बदलाव कर मृतकों के आश्रितों को देंगे नौकरी
पावरकॉम का आश्वासन: 2004 की पॉलिसी में बदलाव कर मृतकों के आश्रितों को देंगे नौकरी

जागरण संवाददाता, पटियाला : नौकरी की मांग पर छठे दिन तक पानी की टंकी पर चढ़े मृतकों के आश्रितों को पावरकॉम प्रबंधन ने एक बार फिर आश्वासन देकर टंकी के नीचे उतारा। संघर्ष कर रहे मृतकों के आश्रितों से मीटिग करते हुए डायरेक्टर प्रशासनिक आरपी पांडव ने कहा कि साल 2004 में बनी पॉलिसी में बदलाव कर कानूनी अड़चन दूर की जाएगी और मृतकों के आश्रितों को नौकरी दी जाएगी। मृतक आश्रित संघर्ष कमेटी के प्रधान अजय कुमार ने कहा कि पावरकॉम ने लिखित में आश्वासन दिया है, जिस कारण वे अपना संघर्ष स्थगित कर रहे हैं।

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इससे पहले पावरकॉम के प्रबंधकीय सदस्य से मृतक आश्रित संघर्ष कमेटी के सदस्यों की बातचीत बेनतीजा रही थी। जिस कारण प्रदर्शनकारी छठे दिन तक टंकी पर डटे रहे। वीरवार को विरोध प्रदर्शन करते हुए मृतक आश्रित संघर्ष कमेटी के आठ सदस्य राजपुरा कॉलोनी के 66 केवी ग्रिड कालोनी की पानी की टंकी पर चढ़ गए थे। नौकरी की मांग पर अड़े आश्रित तमाम प्रयासों के बावजूद भी टंकी पर ही रहे और नौकरी का पत्र देने की शर्त पर ही टंकी से नीचे उतरने को कहा। पानी की टंकी पर चढ़ने वालों में अरुण मित्तल बठिडा, विजय कुमार बठिडा, बलजीत सिंह तरनतारन और बुजुर्ग महिला परमजीत कौर लुधियाना शामिल हैं। इस दौरान खराब मौसम के कारण लुधियाना की परमजीत कौर की तबीयत भी बिगड़ गई थी।

संघर्ष कमेटी के प्रधान अजय कुमार ने कहा कि 2002 से 2010 तक पावरकॉम में ड्यूटी दौरान मौत का शिकार हुए मुलाजिमों के पारिवारिक सदस्य लंबे समय से नौकरी की मांग पर लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनावों से पहले भी उनके संघर्ष के दौरान पावर कॉम के प्रशासनिक सदस्य आरपी पांडव ने चुनावों के बाद नौकरी देने का वायदा किया था, परंतु आज मंगलवार को उन्होंने 2004 की पॉलिसी में बदलाव कर कानूनी अड़चन दूर करने को कहा है।

छह हजार परिवार है सरकारी आंकड़ों के मुताबिक

ड्यूटी के दौरान मुलाजिम की मौत के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छह हजार परिवार हैं, परंतु नौकरी के लिए केवल दो सौ परिवार ही संघर्ष कर रहे हैं। 2002 से लेकर 2010 के बीच हुए हादसों में आश्रित परिवार के सदस्यों की उम्र अधिक होने के भी कई मामले हैं। कमेटी के प्रधान के मुताबिक आयु सीमा में छूट देने और मुलाजिम की मृत्यु पर तीन-तीन लाख रुपये मुआवजा लेने वालों से नौकरी मिलने पर किश्तों में मुआवजा वापस लेने की बात की गई है। पॉलिसी में बदलाव नहीं आसान

पावर सेक्टर के विशेषज्ञों के मुताबिक बिजली बोर्ड के विघटन के समय तय हुई शर्तों के मुताबिक 2004 में पॉलिसी बनाई गई थी, जिसके तहत नौकरी दौरान हादसे में जान गंवाने वाले परिवारों को 3-3 लाख मुआवजा दिया गया था। 16 साल बीत जाने के बाद इस पॉलिसी में बदलाव आसान नहीं है।


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