भविष्य को लेकर दुखी होने की बजाय वर्तमान में जीएं
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन शनिवार को मॉडर्न सीनियर सेकेंडरी स्कूल में करवाया गया। सुबह मॉर्निंग असेंबली के बाद शिरोमणि संस्कृत साहित्यकार अवार्ड विजयी और ¨हदी के रिटायर्ड लेक्चरर डॉ. महेश गौतम ने विशेषज्ञ के तौर पर प्रसन्नता के मंत्र विषय पर स्टोरी बच्चों के समक्ष रखी और मंच से संस्कारशाला अभियान की जानकारी दी।
जागरण संवाददाता, पटियाला
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन शनिवार को मॉडर्न सीनियर सेकेंडरी स्कूल में करवाया गया। सुबह मॉर्निंग असेंबली के बाद शिरोमणि संस्कृत साहित्यकार अवार्ड विजयी और ¨हदी के रिटायर्ड लेक्चरर डॉ. महेश गौतम ने विशेषज्ञ के तौर पर प्रसन्नता के मंत्र विषय पर स्टोरी बच्चों के समक्ष रखी और मंच से संस्कारशाला अभियान की जानकारी दी। स्टोरी समापन के बाद विशेषज्ञ ने बच्चों से विषय पर प्रश्न पूछे, जिसका अधिकतर बच्चों ने सही जवाब दिया। दैनिक जागरण में प्रकाशित कहानी सुनने के बाद बच्चों ने ¨प्रसिपल तृपतजीत कौर को भरोसा दिलाया कि अच्छे संस्कार सीख भविष्य को उज्ज्वल बनाएंगे। इस उपरांत स्कूल लाइब्रेरी के लिए संस्कारशाला विषय पर प्रकाशित पुस्तकें भी भेंट की गई। इसे स्कूल ¨प्रसिपल ने एक अच्छा कदम बताते हुए बच्चों ने कहानी को प्रेरणादायक बताया और घर पर परिजनों व दोस्तों को कहानी सुनाने की बात भी कही। इसके बाद बच्चों से कहानी से संबंधित सवाल पूछे। इसके कुदरत कौर, प्रभनूर कौर और नवजोत ने सही जवाब दिए। इसके बाद बच्चों को एनिमेटिड मूवी भी दिखाई गई।
डॉ. गौतम ने कहा कि संसार का हर व्यक्ति आज दुखी है। क्योंकि उसके पास जो है उसे पाकर भी उसे संतोष नहीं है। उसे इस बात से प्रसन्न होना चाहिए कि संसार में ऐसे भी व्यक्ति हैं, जिनके पास मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। हमें भविष्य या अतीत को लेकर दुखी होने की बजाय वर्तमान में जीना सीखना होगा। अगर ऐसा नहीं कर पाएंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे। इंसान का फर्ज मेहनत करना है और परिणाम को भगवान पर छोड़ देना चाहिए। अगर ऐसा करने में कामयाब हो जाएं तो ¨जदगी हमेशा खुशी से बिताई जा सकती है। प्रसन्नता ही सुखी जीवन का मूल मंत्र है। उन्होंने कहा कि प्रसन्नता तो व्यक्ति का मानसिक गुण है, जिसे व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन के अभ्यास में लाना होता है। प्रसन्नता व्यक्ति के अंतर्मन में छिपे उदासी, तृष्णा और मनोविकारों को सदा के लिए समाप्त कर देती है। प्रसन्नता दैवी वरदान तो है ही, यह व्यक्ति के जीवन की साधना भी है। व्यक्ति प्रसन्न रहने के लिए एक खिलाड़ी की भांति अपनी जीवन-शैली और दृष्टिकोण को अपना लेता है। उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता-असफलता, विजय-पराजय, और सुख-दुख उसके ¨चतन का विषय नहीं होता। वह तो अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है। प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है। यदि वह असफल भी हो जाता है तो निराश होने और अपनी विफलता के लिए दूसरों को दोष देने की अपेक्षा अपनी चूक के लिए आत्मनिरीक्षण करना ही उचित समझता है। कोऑडिनेटर चरनप्रीत कौर ने भी जागरण के संस्कारशाला अभियान की सराहना की।