संस्कारशाला- पर्यावरण बचाएं, अच्छे नागरिक की जिम्मेदारी निभाएं
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन वीरवार को एसआर आर्य स्कूल में करवाया गया। सुबह मार्निंग असेंबली के बाद स्कूल अध्यापक नीना नंदा और प्रदीप कुमार ने विशेषज्ञ के तौर पर बच्चों को बेहतर पर्यावरण, बेहतर जीवन विषय पर पहल से मिलता है समाधान स्टोरी बच्चों के समक्ष रखी और मंच से संस्कारशाला अभियान की जानकारी दी।
जागरण संवाददाता, पटियाला
दैनिक जागरण के अभियान संस्कारशाला का आयोजन वीरवार को एसआर आर्य स्कूल में करवाया गया। सुबह मार्निंग असेंबली के बाद स्कूल अध्यापक नीना नंदा और प्रदीप कुमार ने विशेषज्ञ के तौर पर बच्चों को बेहतर पर्यावरण, बेहतर जीवन विषय पर पहल से मिलता है समाधान स्टोरी बच्चों के समक्ष रखी और मंच से संस्कारशाला अभियान की जानकारी दी। स्टोरी समापन के बाद विशेषज्ञ ने बच्चों से विषय पर प्रश्न पूछे, जिसका अधिकतर बच्चों ने सही जवाब दिया। दैनिक जागरण में प्रकाशित कहानी सुनने के बाद बच्चों ने ¨प्रसिपल चंद्रमोहन कौशल को भरोसा दिलाया कि अच्छे संस्कार सीखकर भविष्य को उज्ज्वल बनाएंगे। इस उपरांत स्कूल लाइब्रेरी के लिए संस्कारशाला विषय पर प्रकाशित पुस्तकें भी भेंट की गई। जिन्हें स्कूल ¨प्रसिपल ने एक अच्छा कदम बताते हुए बच्चों ने कहानी को प्रेरणादायक बताया और घर पर परिजनों व दोस्तों को कहानी सुनाने की बात भी कही। इसके बाद बच्चों से कहानी से संबंधित सवाल पूछे। विपिन, विशाली और धीरज ने सही जवाब दिए। इसके बाद बच्चों को एनिमेटिड मूवी भी दिखाई गई।
नीना नंदा ने कहा कि पर्यावरण को बचाना है तो प्लास्टिक को न कहना है। विद्यार्थी पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूक हों, अपने आसपास लोगों को प्लास्टिक के प्रयोग न करने के लिए प्रेरित करें। इससे पर्यावरण मजबूत होगा। प्लास्टिक सामग्री को मुख्य रूप से थर्मोप्लास्टिक (पॉलीटायरीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड) और थर्मोसे¨टग पॉलिमर (पॉलीइजोप्रीन) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनके अलावा, उन्हें बायोडिग्रेडेबल, इंजीनिय¨रग और इलाटोमेर प्लास्टिक के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि वे कई मायनों में अत्यधिक उपयोगी हैं और वैश्विक पॉलीमर उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हालांकि इसका उत्पादन और निपटान पृथ्वी पर सभी जीवन स्वरूपों के लिए एक बड़ा खतरा है। प्लास्टिक आमतौर पर लगभग 500-1000 वर्षों में खराब हो जाती है। हालांकि हम वास्तविकता में इसके खराब होने का समय नहीं जानते हैं। प्लास्टिक महंगा नहीं है, इसलिए यह अधिक उपयोग किया जाता है। एक बार ही प्रयोग के बाद अधिकांश लोग प्लाटिक की बोतलें और पॉलीथिन बैग को फेंक देते हैं। इससे भूमि और साथ ही महासागरों में प्रदूषण दर बढ़ जाती है। हमें प्लास्टिक को बंद करने की पहल करते हुए आगे आना चाहिए।
खुद से शुरुआत कर लोगों को जागरूक करें: ¨प्रसिपल चंद्रमोहन
प्लास्टिक का इस्तेमाल तभी पूर्ण तौर पर बंद हो सकता है। जब हम खुद से इसकी शुरुआत करेंगे। क्योंकि जितनी देर हम खुद प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद नहीं करेंगे, उतनी देर हम किसी को रोकने के हकदार नहीं। इसकी खुद शुरुआत खुद से करके परिवार, गांव, शहर, जिला, राज्य और इसके बाद पूरे देश को साथ में लेकर इसका इस्तेमाल पूर्ण तौर पर बंद कर सकते हैं। जरूरत है आगे आने की। भारत का भविष्य इसके स्टूडेंट्स हैं और अगर खुद स्टूडेंट्स ही इस मुहिम में शामिल हो गए तो प्लास्टिक का इस्तेमाल पूर्ण तौर पर बंद हो सकता है।
- चंद्रमोहन कौशल, ¨प्रसिपल