विरोधी पार्टियों के कैडर को तोड़ने में जुटे कांग्रेस और अकाली दल
चुनावी दौर में छोटे-बड़े लीडरों की ओर से पार्टी बदलने का सिलसिला पुराना है और इस चुनाव में भी यह जारी है।
जागरण संवाददाता. पटियाला
चुनावी दौर में छोटे-बड़े लीडरों की ओर से पार्टी बदलने का सिलसिला पुराना है और इस चुनाव में भी यह जारी है। बहरहाल पाला बदलने का यह सिलसिला क्या रंग लाएगा, इसका तो बाद में पता चलेगा। मगर कांग्रेस और अकाली दल, दोनों प्रमुख पार्टियां इन दिनों एक-दूसरे के लीडर तोड़ने में जुटी हैं। पॉलिटिकल आब्जर्वर मानते हैं कि पार्टी बदलने के रुझान का किसी पार्टी को तभी फायदा होता है, जब उस लीडर की अपनी अलग पहचान हो। अगर कोई लीडर बार-बार पार्टी बदलता है तो वोटर भी यह सोचने को विवश हो जाता है कि लीडर अपने फायदे के लिए पार्टी बदल रहा है, समाज के विकास में उसकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं।
बता दें कि पटियाला संसदीय सीट पर जहां सभी प्रमुख दलों ने अपने कैंडिडेट घोषित कर दिए हैं। वहीं यहां अभी चुनावी माहौल गर्माना शुरू हुआ है। चुनावी गर्माहट के इस शुरूआती दौर में पार्टी बदलने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। पूर्व अकाली मंत्री स्वर्गीय जसदेव सिंह संधू के पुत्र व एसएसएस बोर्ड के पूर्व चेयरमैन तेजिदरपाल सिंह संधू अकाली दल छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं। तेजिदरपाल सिंह संधू साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सनौर से अकाली दल के कैंडिडेट थे लेकिन तब उन्हें सीनियर कांग्रेसी लीडर लाल सिंह के हाथों हार झेलनी पड़ी। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में तेजिदरपाल सिंह संधू को अकाली दल ने टिकट के मामले में दरकिनार किया तो उसके बाद से वह पार्टी की मेन लीक से ही बाहर हो गए। अब संधू पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
दूसरी ओर अकाली दल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के मेंबर जत्थेदार कुलदीप सिंह नस्सुपुर ने अब फिर से अकाली दल का दामन थाम लिया है। कै. अमरिदर के निजी आवास न्यू मोती बाग पैलेस में हुए एक विशेष समामग में कै. अमरिदर ने खुद नस्सुपुर को कांग्रेस में ज्वाइन करवाया था। चर्चा तो यह है कि शिरोमणि कमेटी के आगामी चुनाव के मद्देनजर ही नस्सुपुर ने दोबारा से अकाली दल का पल्ला थामा है।
एक्सपर्ट व्यू
लीडर के राजनीतिक रुतबे मुताबिक ही फायदा होता है नई पार्टी को
बहरहाल चुनावी दौर में पार्टियां बदलने के रुझान में आ रही तेजी के बारे पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर इंद्रजीत सिंह मानते हैं कि किसी भी पार्टी को इस बदलाव का तभी फायदा होता है जब शामिल होने वाले लीडर का राजनीतिक रुतबा प्रभावशाली हो। अगर कोई लीडर बार-बार पार्टी बदलता है तो उसकी नई पार्टी को उससे ज्यादा फायदा नहीं होता। डॉ. इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि अब तो वोटर किसी भी वोटर द्वारा किए गए कामों की समीक्षा भी करने लगे हैं। ऐसे में उसी लीडर का राजनीतिक रुतबा और उसका निजी शख्सियत काफी अहम होती है।