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भगवान विष्णु के अवतार से जुड़ा है वामन द्वादशी का महत्व

पटियाला के वामन द्वादशी मेले का इतिहास महत्वपूर्ण है। भगवान वामन विष्णु के पांचवें तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे, जो मानव बौने ब्राह्माण रूप में प्रकट हुए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 05 Sep 2018 07:56 PM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2018 07:56 PM (IST)
भगवान विष्णु के अवतार से जुड़ा है वामन द्वादशी का महत्व
भगवान विष्णु के अवतार से जुड़ा है वामन द्वादशी का महत्व

जागरण संवाददाता, पटियाला

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पटियाला के वामन द्वादशी मेले का इतिहास महत्वपूर्ण है। भगवान वामन विष्णु के पांचवें तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे, जो मानव बौने ब्राह्माण रूप में प्रकट हुए। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। गवान वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वह आदित्यों में बारहवें थे। भागवत कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुन: स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुर राजा बली ने हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रहलाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। भगवान वामन, एक बौने ब्राह्माण के वेश में बली के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दिया। वचन मिलने के बाद भगवान वामन ने आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप ली। इसके बाद देवलोक नाप लिया। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। बली ने भगवान वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। भगवान वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए। बली के दादा प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, भगवान वामन (विष्णु) ने बली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुंच गए।

पटियाला से भगवान वामन का संबंध

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मांड में पृथ्वी को भूलोक कहा जाता है। भूलोक में सप्त द्वीप में जम्बू द्वीप से हमारे इस महाद्वीप को परिभाषित किया गया है। जम्बू द्वीप में भारत देश का भरतखंड नाम प्रसिद्ध है। भरतखंड में आज के वर्तमान पंजाब क्षेत्र को पांचाल देश कहा गया। वर्तमान में आज जिस स्थान पर पटियाला नगर बसा हुआ है, इस स्थान पर सतयुग में सरस्वती महानदी बहती थी, जिसकी चौड़ाई 25 किलोमीटर से ज्यादा थी। भगवान विष्णु ने त्रेता युग मे मानव रूप मे अपने पहले अवतार से पूर्व सरस्वती महानदी के किनारे पातालेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक किया था। जिस स्थान पर भगवान ने पातालेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक किया था, उस स्थान पर आज मन्दिर तालाब, डेरा बाबा श्री नारायण दास जी स्थित है। इसे भगवान श्री वामन अवतार मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

मेला वामन द्वादशी

पटियाला में इस स्थान पर पुराने समय से ही भगवान श्री वामन के प्रकट दिवस को वामन द्वादशी के रूप में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता रहा है। मान्यता के मुताबिक भगवान वामन रात्रि के समय अपने रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने के लिए नगर भृमण पर निकलते थे। जिनके पीछे पीछे भक्त नाचते गाते भगवान की सुंदर सुंदर झांकियों, टिप्परी हिन्डोला आदि से भगवान का भजन कीर्तन करते हुए जाते थे। समाज के गणमान्य लोग नगर में अलग-अलग स्थानों पर मंच सजा कर भगवान की पालकी की पूजा अर्चना और स्वागत करते और भगवान के पीछे चलने वालों को सम्मानित करते थे। इस तरह यह सिलसिला आदिकाल से चलता आ रहा था। जो बाद में मेले का रूप धारण कर गया।

बदलता रहा प्रारूप

1960 के आसपास डेरा नारायण दास अथवा मंदिर श्री वामन अवतार के महंत की मौत के बाद भगवान के प्रारूप के साथ रथ का नगर भ्रमण बंद हो गया। परन्तु हर वर्ष इस मौके पर मेला चलता रहा। समय के साथ इस पवित्र त्योहार का रूप धार्मिक की जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम के रुप में बदल गया। वर्तमान में जानकारी के अभाव से मेले शहर तक सीमित होकर गया है। जो मेला सारी रात को शुरू होकर सुबह 4 बजे खत्म होता था आज 12 बजे के बाद इसकी रौनक कम हो रही है।


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