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किसान हुए जागरूक, पराली को आग लाने की जगह खेतों में जोत रहे

बेशक धान की पराली को आग लाने के मामलों पर नियंत्रण करना एक बड़ी चुनौती है, परंतु पंजाब सरकार की तरफ से इस बाबत किसानों के सहयोग के साथ लाई जा रही जागरुकता भी रंग दिखा रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 06:52 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 06:52 PM (IST)
किसान हुए जागरूक, पराली को आग लाने की जगह खेतों में जोत रहे
किसान हुए जागरूक, पराली को आग लाने की जगह खेतों में जोत रहे

जागरण संवाददाता, पटियाला

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बेशक धान की पराली को आग लाने के मामलों पर नियंत्रण करना एक बड़ी चुनौती है, परंतु पंजाब सरकार की तरफ से इस बाबत किसानों के सहयोग के साथ लाई जा रही जागरुकता भी रंग दिखा रही है। पराली को खेतों में ही जोतने और इसे आग न लगा कर अन्य साधनों से इसका सदुप्रयोग करने में खासी वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि एवं सहकारिता विभाग सहित पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पर्यावरण इंजीनियरों की तरफ से गांव-गांव जाकर किसानों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक करने का बीड़ा उठाया गया है। बोर्ड के पर्यावरण इंजीनियरों की तरफ से जिले के हर ब्लॉक के लगभग 5-6 गांवों में जाकर किसानों के साथ खेतों में बातचीत करके उन्हें पराली जलाने के फायदे और नुकसान से अवगत करवाने के साथ-साथ उन्हें पर्यावरण की संभाल के बारे में भी बताया जा रहा है। मुख्य पर्यावरण इंजीनियर गुलशन राय, वातावरण इंजीनियर एसएस मठाड़ू और सहायक पर्यावरण इंजीनियर मोहित बिश्ट जब कुछ गांवों में गए तो जागरूक किसानों ने अपने तजुर्बे साझा किए।

इस दौरान गांव पहाड़ीपुर का किसान हर¨वदर ¨सह ने बताया कि उसने धान की कंबाइन के साथ कटाई करवा कर एक बार रोटावेटर फिरवाया और बिना आग लगाए पराली को खेतों में मिला कर पानी देकर बरसीम का छिट्टा मार दिया, क्योंकि यह विधि बहुत बढि़या है और दूसरे किसान भी उस के खेत देखने आते हैं। इस टीम के दौरे के दौरान सामने आया गांव पंजोला के किसान सु¨रदर शर्मा ने बताया कि उसने रोटावेटर के साथ दो बार खेत को वाह कर पराली को खेतों में ही मिलाया हैं। उसके मुताबिक बिना आग लगाए 2400 रुपए एकड़ का खर्चा आता है, जबकि आग लगाने पर खर्च अधिक आता है। शर्मा का कहना था कि यह बहुत लाभदायक है, खादों का खर्चा घटा, आगे वाली बार धान की फसल लगाने पर जैसे एक देसी खाद की 5 ट्रालियां डालते हैं, उतना ही यह काम करता है। उधर, राजपुरा ब्लाक के गांव महमदपुर का एक किसान 40 एकड़ में और गांव दौणकलां का एक किसान 35 एकड़ में बिना आग लगाए हैपीसीडर के साथ गेहूं की बिजाई करते हैं। इसी तरह कक्केपुर, तेपला और मरदांपुर के कुछ किसान भी बिना आग लगाए पराली को खेतों में मिलाते हैं और उनका कहना था कि आग लगा कर खेत जोतने के साथ भी खर्चा 3500 रुपये के करीब आता है, जबकि रोटावेटर के साथ जोती हुई गई जमीन पर खर्च कम आता है।

पर्यावरण इंजीनियर एसएस मठाड़ू ने कहा कि मिशन तंदुरुस्त पंजाब के तहत लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध पर्यावरण मुहैया करवाने के लिए पराली जलानी बंद करवाने के लिए वह डीसी कुमार अमित के नेतृत्व में किसानों को जागरूक कर रहे हैं। मठाड़ू ने कहा कि पराली जलाने से मानव, जीव जंतुओं की सेहत और धरती पर बहुत ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है और इसे रोकने के लिए जिला मैजिस्ट्रेट की तरफ से धारा 144 के अंतर्गत पाबंदी के आदेश जारी किए गए हैं, जबकि बोर्ड की तरफ से एयर एक्ट 1981 की धाराओं के अंतर्गत अलग तौर पर कार्रवाई की जाती है। पराली को आग न लगाने के बाबत जागरुकता पैदा करने के लिए जिले के गांवों में दो वैन भी भेजी गई हैं। पराली जलाने वाले किसानों को पंचायती चुनाव लड़ने के लिए एनओसी नहीं मिलेगी और उन्हें जुर्माने अलग से किए जा रहे हैं।


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