लावारिस अस्थियों को 'मोक्ष के द्वार' पहुंचा रहीं कश्मीर की डॉ. बीना
कश्मीर की लेखिका डॉ. बीना बुद्दकी साहित्य अनुवाद के जरिये न केवल कश्मीर के साहित्य व संस्कृति को अन्य प्रदेशों में पहुंचा रहीं हैं बल्कि वे लावारिस अस्थियों को मोक्ष के द्वार तक पहुंचा रही हैं ।
सुरेश कामरा, पटियाला
कश्मीर की लेखिका डॉ. बीना बुद्दकी साहित्य अनुवाद के जरिये न केवल कश्मीर के साहित्य व संस्कृति को अन्य प्रदेशों में पहुंचा रहीं हैं बल्कि वे लावारिस अस्थियों को मोक्ष के द्वार तक पहुंचा रही हैं । वे अब तक 3 हजार से अधिक लावारिस अस्थियों को मोक्ष के लिए हरिद्वार पहुंचा चुकी हैं। उनमें दुबई से भारत आईं 687 अस्थियां भी शामिल हैं। 28 सितंबर से शुरु होने वाले पितृ पक्ष (श्राद्ध) से पहले पाकिस्तान के कराची से भी कुछ अस्थियां उनके पास आने वाली हैं जिनको वे हरिद्वार पहुंचा कर उनको ¨हदू रीति रिवाज के साथ गंगा में परवाह करेंगी ।
श्रीनगर वासी डॉ. बीना बुदकी रविवार को स्थानीय भाषा विभाग में काव्योत्सव-2018 में शिरकत करने आई थीं। दैनिक जागरण के साथ अपने अनुभव बांटते हुए उन्होंने कहा कि एक दिन कश्मीर में वे सेमिनार में शिरकत करने गईं तो उसके पास एक महिला अपने पति का शव लेकर बैठी थीं। जब उन्होंने पूछा तो उसने पति के शव का अंतिम संस्कार करने में असमर्थता जताई। डॉ. बीना ने उसके पति के शव का अंतिम संस्कार किया। जब बात आई पति की अस्थियों को हरिद्वार लेकर जाने की तो महिला ने फिर मना कर दिया तो उन्होंने व्यक्ति की अस्थियों को मोक्ष के द्वार यानी गंगा में प्रवाहित करवाया। उसके बाद उन्होंने शमशान घाट में जाकर वहां पर रखी लावारिस अस्थियों को गंगाजल में पहुंचाने का बीड़ा उठाया और 2013 से 2016 तक केवल कश्मीर के लोगों की लावारिस अस्थियों को हरिद्वार तक पहुंचाया। अब वे देश विदेश की अस्थियों को हरिद्वार में ले जाकर ¨हदू रस्म के मुताबिक गंगा में प्रवाहित करवाती हैं। हाल ही में उन्होंने बेटी बचाओ अभियान के साथ-साथ मां बचाओ परिवार बचाओ अभियान शुरु किया है।
3 बच्चे बनाए आईएएस
1976 बैच के आईपीएस दीपक बुद्दकी की पत्नी डॉ. बीना बुद्दकी को आतंकवाद के दौर में आतंकवादी उठाकर ले गए थे तो उनको कश्मीर छोड़कर जाना पड़ा। दो साल लंदन व 10 साल तक दुबई में रहने के बाद बीना 2010 में वापस कश्मीर में बस गई । ¨हदी कश्मीर संगम संस्था बनाने के बाद अब वो कश्मीर के साहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद करवाती हैं और दूसरे प्रदेशों के साहित्य को कश्मीरी भाषा में अनुवाद करवाती हैं । इसी कड़ी में उन्होंने पुलवामा के पास गांव विधवा में तीन महीने तक रहकर वहां की महिलाओं व बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और गांव के 3 बच्चे आइएएस आफिसर बन चुके हैं । सबसे पहले आइएएस करने वाले फैजल का श्रीनगर में शिक्षा विभाग में तैनाती हुई है। इसके अलावा उन्होंने बाढ़ पीड़ित 70 बच्चों को संभाल कर न केवल उनके विवाह करवाए हैं बल्कि कई बच्चों को अच्छे घरों में सैटल किया है ।